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वीर विनोद
छाबड़ा
आज शाम हम
मुंशीपुलिया पर टहल रहे थे। तभी मोबाईल बजा। मेमसाब ने फ़रमाया। एक किलो मटर और पाव
भर अदरक लेने आना।
सुखद
आश्चर्य! मेमसाब का हम पर इतना विश्वास कि सब्जी लेते
आना। हम फ़ौरन से पेश्तर सब्ज़ी की दुकान पर पहुंचे।
सब्ज़ी वाले
ने हमें घूरा। थैला या झोला या पॉलिथीन की पन्नी है?
हमने कहा -
नहीं है।
सब्ज़ी वाले
ने हमें झिड़क दिया - तो सब्जी नहीं मिलेगी।
हमने पूछा -
क्यो भाई?
सब्जी वाले
ने कहा - सरकार का आदेश है। पढ़ा नहीं आज अख़बार में।
पॉलिथीन की पन्नी बनाने वाली फैक्टरियां एक के बाद एक बंद हो रही हैं।
हम परेशान
हुए। बिना सब्ज़ी लिए जाऊंगा तो निठल्ला कहलाऊंगा। साल भर बाद मेमसाब ने एक काम
कहा। वो भी नहीं कर पाये। आस-पास जान-पहचान वालों को टटोला। किरयाने की दुकान, केमिस्ट, दरजी और पेंटवाला। सबने मना कर दिया। कोई पन्नी
नहीं है। जेब में हाथ डाला। रुमाल भी छोटे साईज़ का निकला। इसमें तो छटांक भर मिर्च
भी न बंधे।
तभी एक
मित्र मिले। हमने उनसे अपना दुखड़ा रोया। वो बोले - हम भी सब्जी लेने ही निकले हैं।
हमें अंदेशा था कि तुम्हारे जैसे एक-आध दुखियारे ज़रूर मिलेंगे। इसलिए दो पन्नी रख
लीं। एक तुम रख लो। इस्तेमाल के बाद वापस कर देना। आजकल इसकी बड़ी कीमत है।
यह कहते हुए
उन्होंने जेब एक पन्नी निकाल कर दे दी। हमारा आज का काम तो चल गया। तकलीफ़ तो हुई।
लेकिन साथ ही ख़ुशी भी हुई कि सरकार के पॉलिथीन की पन्नी पर रोक का निर्णय आखिरकार
प्रभावी होता दिख रहा है। इसी बहाने थैला युग की वापसी हो रही है। पुराना ज़माना
लौटेगा अब फटी-पुरानी पेंटें-निक्करें और घुटन्ने पौंछे और झाड़न के काम की बजाये
थैले बनाने में इस्तेमाल होंगी। दर्जियों का काम बढ़ेगा।
जेब में एक
की बजाये दो बड़े रुमाल रखने की आदत पड़ेगी। ईवनिंग वॉक पर निकलें हों। क्या मालूम
कब मेमसाब का फ़ोन आ जाये - आधा किलो बैंगन और एक किलो टमाटर लेते आना और साथ में
दो नीबू भी।
रुमाल में
बंधवा लेंगे। लौकी तो हम हनुमान जी गदा की तरह कंधे पर रख लेंगे।
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23-01-2016 mob 7505663626
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