- वीर विनोद छाबड़ा
भारत से पचास बंदों का एक ग्रुप इंग्लैंड घूमने-टहलने गया। ग्रुप
का नाम था - सीटी।
ग्रुप लीडर ने सबको एक-एक सीटी देते हुए ताक़ीद की - ये सीटी
सिर्फ़ इमरजेंसी में इस्तेमाल के लिए है। अगर कोई भटक जाये तो एक बार सीटी बजायेगा और
उसके आस पास ग्रुप का जो भी बंदा होगा वो दो बार सीटी बजायेगा। ये भटके हुए बंदे के
लिए संकेत होगा कि सीटी ग्रुप का कोई बंदा आस-पास है। और वो सीटी की आवाज़ की दिशा की
ओर चल कर उससे मिल जायेगा। सब समझ गए। ओके। अब आप जहां इच्छा हो घूमें फिरें।
राम और श्याम भी इस ग्रुप में थे। कई दिन गुज़र गए। खूब मौज़ मस्ती
की। खरीदारी भी। जेब में पैसे भी ख़त्म हो चले थे।
राम की हालत कुछ ज्यादा ख़राब थी। खाने तक को पैसे नहीं बचे।
अब लंदन में बिना काम किये न कोई पैसे देता है और न ही रोटी। अचानक राम की नज़र चिड़ियाघर
के बाहर टंगे बोर्ड पर पड़ी जिस पर लिखा था - काम के लिए बंदे चाहिए। पचास पौंड प्रतिदिन
मेहनताना मिलेगा।
राम की तो मानों लाटरी खुल गई। राम ने मैनेजर अपनी तकलीफ़ बताते
हुए हर किस्म का काम करने की इच्छा प्रकट की।
मैनेजर ने राम को ऊपर से नीचे तक देखा - काम कोई ख़ास नहीं, बस बंदर की खाल पहन कर बैठना है। थोड़ा सा पब्लिक को एंटरटेनमेंट
करना है। थोड़ी सी उछल-कूद। और हां किसी को बताने का नहीं है।
राम फ़ौरन तैयार हो गया। अरे, यह भी कोई काम है। उसने बंदर की खाल ओड़ ली। पहले ही दिन से राम
को मज़ा आने लगा। सुबह से शाम तक खूब उछल-कूद मचाना। पब्लिक की तो बल्ले बल्ले।
धीरे-धीरे
उसके बाड़े के सामने सबसे ज्यादा भीड़ जुटने लगी।
एक दिन खूबसूरत महिलाओं का एक झुंड आया। उसमें एक महिला विशेष
पर राम का दिल ऐसा आया कि वो उसे खुश करने
के लिए बहुत जोर से उछला, इतनी
जोर से कि पड़ोस वाले शेर के बाड़े में जा गिरा।
बंदर को देख कर शेर के मुंह में पानी भर आया। शेर धीरे-धीरे
उसके पास आया।
इधर राम के तो मानो
प्राण ही निकल गए। वो आंख बंद करके ईश्वर को याद करने लगा।
इधर बाहर खड़ी भीड़ भी ये नज़ारा देख कर सन्न रह गयी। ये बंदर तो
शेर के मुंह में गया समझो। सब सांस रोक कर अगले पल का इंतज़ार करने लगे।
उधर राम की धुकधुकी बहुत तेज़ हो चुकी थी। हे रब्बा, कोई चमत्कार कर।
पल सेकंडों में और फिर मिनटों में बदले। लेकिन शेर ने बंदर को
छुआ तक नहीं। बस सूंघ कर उसके पास बैठ गया। राम हैरान और बाहर जमा भारी भीड़ परेशान।
सबको गुस्सा आ रहा था कि चिड़ियाघर प्रशासन
का एक भी बंदा बंदर को शेर के जबड़े से बचाने नहीं आया था। सबने सोचा शायद शेर का पेट
भरा हुआ है।
तभी राम के कान में एक हौली से आवाज़ आई - ओय राम, मेरे राम।
राम ने हैरान हो कर इधर-उधर देखा। आवाज़ तो कुछ जानी-पहचानी सी
है। कुछ गुज़रे होंगे कि फिर वही आवाज़ -ओय राम, मेरे यार। मैं श्याम सिंह, शेर की
खाल में।
हैरान राम ने ध्यान से शेर की ओर देखा। आवाज़ वाकई उधर से ही
आई थी। राम धीरे से उसके और करीब बैठ गया।
वो श्याम ही था जो राम की तरह काम की तलाश में चिड़ियाघर पहुंच
गया था। और चिड़ियाघर वालों ने उसे शेर की खाल पहना कर बैठ दिया था।
अब राम और श्याम गुप-चुप बातें करने लगे। बाहर पब्लिक ये नज़ारा
देख भौंचक्की थी कि ये हो क्या रहा है। इधर राम ने श्याम को एक चुटकुला सुनाया। यह
इतना जोरदार था कि श्याम ने खुश होकर सीटी बजा दी।
और जैसे ही सीटी बजी सारा चिड़ियाघर सीटियों की आवाज़ से गूंज
उठा। सीटी
ग्रुप के बंदे हर पिंजरे में किसी न किसी जानवर की खाल ओड़ कर बैठे थे।
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