Wednesday, June 1, 2016

प्रेम के पुजारी हसरत जयपुरी

-वीर विनोद छाबड़ा
हसरत जयपुरी का नाम ज़ुबान पर आता है तो बेसाख़्ता प्रेम के एक पुजारी की तस्वीर ज़हन में उभरती है। बंबई में महज़ ग्यारह रूपए की बस कंडक्टरी करते थे वो। अलावा इसके वक़्त मिलने पर मुशायरों में शिरकत किया करते। उस दिन ओपेरा हाउस में मुशायरा था। थिएटर के बादशाह पृथ्वीराज कपूर ने उन्हें सुना। बहुत पसंद आया हसरत का क़लाम। पूछा- बरखुरदार फिल्मों में लिखोगे?

अंधे को क्या चाहिए? बस दो आंखें ही न। पृथ्वीराज कपूर की सिफ़ारिश लेकर पहुंच गए राज कपूर के पास। 'बरसात' (१९४९) की तैयारी थी। पहला गाना शंकर ने रिकॉर्ड किया  - जिया बेक़रार है छायी बहार है...दूसरे नगमे को जयकिशन ने संगीत दिया - छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला छोड़ गए... छा गए हसरत जयपुरी। बाकी तो हिस्ट्री है।    
हसरत का असली नाम इक़बाल हुसैन था। जयपुर के रहने वाले थे। शुरुआती तालीम अंग्रेजी में हुई। मन न लगा पढाई में। फिर उर्दू और पर्शियन की जानकारी हासिल की। शेरो-शायरी से ज़ुनून की हद तक का लगाव देखकर उनके दादा फ़िदा हुसैन ने उनके इस फ़न को चमकाया और हवा दी।
उन्होंने सलाह दी कि अगर हुनर की सही क़ीमत चाहिए तो बंबई जाओ। और इस तरह हसरत बंबई आ गए।
बहरहाल, 'बरसात' की रिलीज़ के बाद हसरत को पीछे मुड़ कर देखने की फ़ुरसत नहीं मिली। एक के बाद एक यादगार नगमे दिए। तेरी प्यारी प्यारी  सूरत को... पंख होते तो उड़ आती रे... तेरे ख्यालों में हम... अहसान तेरा होगा मुझ पर....तुम मुझे यूं भुला न पाओगे... सायोनारा सायोनारा वादा निभाऊंगी...तुम मेरे पास होती हो तो कोई दूसरा नहीं होता...आओ ट्विस्ट करें...दुनिया बनाने क्या तेरे मन में समाई...सुन साहिबा सुन...झनक झनक तोरी बाजे पायलिया...आज हुन आये बालमा... तू कहां ये बता...तू मेरे सामने है तेरी जुल्फें हैं खुली... क़ैद मांगी थी तेरी ज़ुल्फ़ों से रिहाई तो न मांगी थी...रात का समां झूमे चंद्रमा...ये आंसू मेरे दिल की ज़ुबां...कहा जाता है कि हसरत ने तक़रीबन ३५० फिल्मों में १२०० गाने लिखे। 

जैसा कि होता है कि हर शायर की कामयाबी के पीछे कोई न कोई मोहतरमा ज़रूर होती है। हसरत जयपुरी तब महज़ बीस  साल के थे। उन्हें पड़ोसन राधा से प्यार हो गया। शायर की नज़र में मुहब्बत किसी दीवार और सरहद को नहीं मानती। गोकि हसरत उससे कभी इज़हार नही कर पाये। उसे देने के लिए एक खत लिखा, जो उनकी जेब में ही रह गया। इसे उन्होंने 'संगम' में इस्तेमाल किया - ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ के कि  तुम नाराज़ न होना
राजकपूर के दिल में भी कोई राधा बसी थी। उनकी और हसरत की राधा रूहानी तौर पर एक ही थीं। तभी तो हसरत ने लिखा - मेरे मन की गंगा और तेरे मन की जमुना का बोल राधा संगम होगा कि नहीं...साठ के दशक का मशहूर गाना बना। इश्क को नज़र करते हुए ऐसा ही एक और गाना था - तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र न लगे चश्मे बद्दूर....(ससुराल). हसरत ने पेरिस में एक हसीना को चमचमाते लिबास में देखा तो बर्दाश्त नहीं हुआ - बदन पे सितारे लपेटे हुए ओ जाने तमन्ना कहां जा रही हो.…(प्रिंस). उनके इन नग्मों को सड़क छाप मजनूं गाते रहे और पिटते रहे।  
उन्हें दो बार फिल्मफेयर अवार्ड मिला - बहारों फूल बरसाओ कि मेरा महबूब आया है.आज भी दुल्हन के द्वारे लगी बारात का यह फेवरिट गाना है। दूसरी बार  अंदाज़ के लिए मिला - ज़िंदगी इक सफ़र है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जानाउदास ज़िंदगी जीने वालों में यह नग़मा आज भी जीने की उमंग भरता है। 

राजकपूर कहते थे कि हसरत और शैलेंद्र दो जिस्म एक जान हैं। लेकिन 'मेरा नाम जोकर' और फिर 'कल, आज और कल' की नाकामी ने राजकपूर को मज़बूर कर दिया कि अपने संगीतकार शंकर-जयकिशन को बदलें। यों भी शंकर और जयकिशन में पटरी नहीं खा रही थी। और फिर १९७१ में जयकिशन परलोकवासी हो गए। शैलेंद्र तो इस बीच खुदा प्यारे हो चुके थे। शंकर के साथ हसरत को भी हटना पड़ा। मगर राजकपूर भूले नहीं हसरत को। लंबे अरसे बाद 'राम तेरी गंगा मैली हो गयी' में उनको फिर बुलाया। हसरत ने अपनी ख़ुशी यों ज़ाहिर की - सुन साहिबा सुन, प्यार की धुन.
लेकिन संगीतकार रवींद्र जैन से उनकी पटरी नहीं खाई। रवींद्र ने उन्हें भाव नहीं दिया। उधर हसरत का इलज़ाम था कि रवींद्र ने उनके कई नगमों को स्वरचित बताया।
हसरत की शैलेंद्र से बहुत अच्छी दोस्ती थी। शैलेंद्र ने अपनी 'तीसरी क़सम' के लिए उन्हें न्यौता दिया। हसरत ने उन्हें निराश नहीं किया। बदलते हालात के मद्देनज़र उन्होंने अपनी पीड़ा यों दर्शाई - दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई, काहे को दुनिया बनाई 
वो आसमानी नग़मे लिखते थे लेकिन आसमान में उड़ने से घबराते थे। इसलिए वायुमार्ग के स्थान पर ज्यादा से ज्यादा रेल और सड़क प्राथमिकता दी। 
हालात एक से कभी नहीं रहते। हसरत को भी मालूम था।उनकी बेगम उनसे भी ज्यादा सयानी थीं। उन्होंने अपने ख़ाविंद की कमाई बड़े कायदे से इंवेस्ट की। यही वज़ह रही कि ख़राब दौर में भी उनकी ज़िंदगी बड़े मज़े से गुज़री।

प्रेम के पुजारी हज़रत जयपुरी १५ अप्रैल १९२२ को इस दुनिया में आये और १७ सितंबर १९९९ को इंतकाल फरमा गए। 
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Published in Navodaya Times dated 01 June 2016
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