- वीर विनोद छाबड़ा
कभी सोनू और सोनिया में बहुत प्यार हुआ करता
था। दो जिस्म एक जान। फिर जाने क्या हुआ कि एक तीसरी आ गई - जूली। लड़ाई-झगडे शुरू
हो गए। बात तलाक तक पहुंच गई।
सोनिया को आलीशान बंगला छोड़ने के लिए मजबूर
होना पड़ा। लेकिन रुख़सत होने से पहले उसने सड़ी हुई मछलियां, झींगा, मरी हुई ढेर छिपकलियां और गिरगिटें परदे
लटकाने वाली रॉड में ठूंस दीं।
उसके जाते ही सोनू अपनी नई गर्ल फ्रेंड जूली
के साथ उस आलीशान बंगले में आ बसा। लेकिन सड़ी दुर्गंध के मारे उनका बुरा हाल हो
गया। नाक फटने लगी। सिर में चढ़ गई। चक्कर आने लगे।
सोनू ने बंगले का कोना कोना छान मारा। कहीं
कुछ भी नहीं मिला। बार बार धुलाई की गई। तरह तरह के परफ्यूम का छिड़काव किया। मगर
दुर्गंध नहीं गई। एक्सपर्ट्स का सहारा लिया गया। लेकिन वो भी दुर्गंध का स्त्रोत
नहीं तलाश पाये।
आख़िरकार तंग होकर सोनू और जूली वो बंगला छोड़
कर किराए के मकान में रहने लगे। लेकिन मकान का किराया बहुत ज्यादा था। इससे बेहतर
था कि खुद के मकान में रहा जाए। लेकिन इसके लिए पैसा चाहिए था। सोनू ने बंगला
बेचने का इरादा किया। लेकिन अब तक वो बंगला अपनी दुर्गंध के कारण इतना बदनाम हो
चुका था कि कोई उसे खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ। कई लोग तो उसे भूतिया कहने लगे।
सोनू परेशान हो गया। उसने बंगले के दाम आधे से भी बहुत कम कर दिए।
सोनिया इसी मौके की तलाश में थी। उसने वकील
के माध्यम से सोनू को पैगाम भिजवाया कि वो इस बंगले को एक चौथाई दाम पर खरीदने के
लिए तैयार है। लेकिन शर्त यह है कि उसे बंगला बिलकुल खाली चाहिए। सोनू को हैरानी
हुई कि सोनिया को उस दुर्गंधग्रस्त बंगले में क्या रुचि है?
लेकिन, सोनू के पास सोचने के लिए ज्यादा समय नहीं
था। उसे तुरंत पैसा चाहिए था। उसने शर्त मान ली।
सोनू ने बंगले में रखा सोफा, डाईनिंग टेबुल, कार्पेट, परदे आदि सब हटा लिए।
सोनिया ने व्यक्तिरूप से सारा सामान पैक होते
हुए देखा। उसने ध्यान रखा कि उसमें परदे लटकाने वाली वो रोड ज़रूर हो।
नोट - अंग्रेज़ी की एक लघु कथा पर आधारित।
इसके लिए मैं मित्र रवींद्र नाथ अरोड़ा जी का आभारी हूं।
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