-वीर विनोद छाबड़ा
१९६७ में बीआर चोपड़ा एक
सस्पेंस लव स्टोरी फिल्म बना रहे थे - हमराज़। बड़ी स्टार कास्ट और बड़ी पब्लिसिटी। नई
नायिका विम्मी और साथ में राजकुमार, सुनीलदत्त और मुमताज़। एक
सस्पेंस सीन था। एक किरदार की एंट्री होती है। दर्शक कबसे उसका इंतज़ार भी कर रहे हैं।
लेकिन कैमरा उसके चेहरे पर नहीं,
जूतों पर टिका है। वो आगे बढ़ता है। कैमरा उसके सफ़ेद जूतों पर
ही फोकस रहता है। दर्शक अब तक उसकी चाल से निश्चिंत हो चुके हैं कि यह किरदार और अदाकार
कौन है? इधर कैमरामैन और डायरेक्टर दर्शकों पर इसके इफ़ेक्ट की कल्पना
कर रहे थे। अचानक कैमरा ज़ूम करके किरदार के चेहरे पर जा टिकता है। दर्शक खुश। चेहरे
पर विजयी मुद्रा है। मैंने कहा था न कि यह राजकुमार हैं, अपने जॉनी राजकुमार।
सुपर हिट हुआ आईडिया। फिल्म सुपर हिट हुई। और राजकुमार की सफ़ेद जूतों वाली एंट्री विशेष
रूप से चर्चा का विषय रही।
तबसे तकरीबन हर फिल्म में
राजकुमार को सफ़ेद जूते पहने देखा गया। फैशन में भी आ गया। सफ़ेद जूता फिल्म के हिट होने
की निशानी बन गया। फ़िल्मकार किसी न किसी बहाने एक्टरों को सफ़ेद जूते पहनाने लगे। लेकिन
ओरिजिनल की बात तो कुछ अलग ही होती है। और फिर वो ज़माना भी राजकुमार का था। बहुत अहंकारी
एक्टर थे। अहं का आकार भी फुटबाल के बराबर। वो सर्व सुलभ कलाकार कभी नहीं रहे। उनको
बड़े दिल-गुर्दे वाले ने ही साइन करने की हिम्मत की।
प्राणलाल मेहता भी अपने
ज़माने के बड़े निर्माता थे। उन्होंने अपनी प्रतिष्ठित फिल्म 'मरते दम तक' में राजकुमार को
साइन करने की हिम्मत जुटाई। डायरेक्शन गुजराती फिल्मों के गुणी मेहुल कुमार को सौंपा।
उन्होंने राजकुमार को साधने की चुनौती स्वीकार की।
बड़े अच्छे माहौल में निर्बाध
शूटिंग चल रही थी। अचानक एक दिन हंगामा हो गया। कई लोगों को इसी दिन का इंतज़ार भी था।
उन्हें अब तक बहुत अजीब लग रहा था कि राजकुमार के होते हुए सब शांति से गुज़र रहा है।
हुआ ये कि एक सीन में राजकुमार
टेबुल पर पैर रख कर बैठे हैं। फाइनल शॉट लेने से ठीक पहले डायरेक्टर मेहुल ने कैमरे
में झांका। उनके माथे और चेहरे पर परेशानी की गहरी लकीरें उभर आयीं। कैमरे में राजकुमार
का चेहरा नहीं दिख रहा था बल्कि उनके सफ़ेद जूते दिख रहे थे। मैंने तो उन्हें इस तरह
बैठने को नहीं कहा था। उन्होंने राजकुमार की ओर देखा। उनके चेहरे के भावों का पढ़ा।
वो समझ गए कि राजकुमार जान-बूझ इस अंदाज़ में बैठे हैं ताकि कैमरे में सिर्फ़ उनका जूता
ही दिखे। ये मेहुल की परीक्षा की घड़ी थी कि राजकुमार को अब तक उन्होंने कितना समझा
और जाना है।
मेहुल ने कैमरे का एंगिल
बदल दिया ताकि राजकुमार का चेहरा दिख सके। लेकिन तू डाल डाल, मैं पात पात। राजकुमार
ने भी एंगिल बदल लिया। कैमरे में फिर राजकुमार नहीं उनके जूते दिखा। ऐसा तीन बार हुआ।
मेहुल पसीना पसीना हो गए। चौथी बार मेहुल ने राजकुमार साहब से बाअदब गुज़ारिश की - हुज़ूर
अगर आप मेज़ पर पैर न रखें तो अच्छा होगा। क्योंकि आपके चेहरे की जगह जूते दिख रहे हैं।
राजकुमार अपने चिर-परिचित
अंदाज़ में बोले - हम राजकुमार हैं, जॉनी । तुम्हें इतना भी
नहीं मालूम कि राजकुमार को लोग उनके जूतों से पहचानते हैं। लगता है नए हो। हमारी फ़िल्में
नहीं देखीं क्या?
सर झुका कर मेहुल बोले
- सर। हमने सब फ़िल्में देखी हैं आपकी।
राजकुमार बोले - तो ठीक
है। जैसा हम चाहते हैं वैसा ही करो। जानी, हमारा दावा है
कि फिल्म सुपर हिट होगी।
मेहुल पंगा लेने की स्थिति
में नहीं थे। उन पर फिल्म जल्दी से जल्दी पूरी करने का दबाव था। राजकुमार जैसा चाहते
थे वैसा ही शॉट ओके हो गया।
और सचमुच 'मरते दम तक' १९८७ में हिट हुई
फिल्मों में सम्मिलित थी। कुछ साल बाद मेहुल कुमार ने राजकुमार और नाना पाटेकर के साथ
एक और हिट ‘तिरंगा’ बनाई थी।
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Published in Navodaya Times dated 08 June 2016
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