Saturday, June 4, 2016

संगीत की दुनिया की पहली जोड़ी

-वीर विनोद छाबड़ा
नयी पीढ़ी ने शायद जालंधर में जन्मे पं.हुसनलाल-भगतराम का नाम तो नहीं लेकिन उनकी बनायीं धुनें ज़रूर सुनी होंगी - चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात...वो पास रहें या दूर रहें दिल में समाये रहते हैं...मांगी मोहब्बत पायी जुदाई, दुहाई है दुहाईतेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया ओ परदेसियाओ दूर जाने वालेएक दिल के टुकड़े हज़ार हुए कोई यहाँ गिरा कोई वहां गिराजो दिल में ख़ुशी बन कर आये

और राजेंद्र कृष्ण का लिखा रफ़ी की आवाज़ में सबसे प्यारा गैर-फ़िल्मी गाना भी याद होगा - सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों बापू की ये अमर कहानी...गांधी जी की मृत्यु के ४८ घंटे के भीतर इसकी रचना हुई और देखते देखते हज़ारों रिकॉर्ड बिक गए।
यह चालीस और पचास के दशक में मशहूर संगीतकार जोड़ी हुआ करती थी यह। संगीत की दुनिया की पहली जोड़ी। सुरैया, लता, अमीरबाई कर्नाटकी, जोहराबाई अंबालेवाली, गीतादत्त, आशा भोंसले, सुमन कल्याणपुर, शमशाद बेगम, निर्मला देवी, रफ़ी, जीएम दुर्रानी, तलत महमूद आदि अनेक जाने-माने गायकों ने हुस्नलाल-भगतराम के संगीत पर आवाज़ बिखेरी और राजेंद्र कृष्ण, मजरूह, सरशर सैलानी ने कलाम दिए।
क़मर जलालाबादी के साथ हुसनलाल-भगतराम की जोड़ी खूब जमी। कुल चौबीस फिल्मों में १०४ गाने लिखे। सुरैया और रहमान की 'बड़ी बहन' में लता ने गाया था - चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है...इसमें लता के साथ प्रेमलता भी थी। मगर रेकॉर्डों में उनका नाम नहीं मिलता। लता ने गोल्डन पीरियड में हुसनलाल-भगतराम का बहुत योगदान है। लता ने उनके साथ २९ फिल्मों में १०५ गाने गाये। उनके ये गाने भी बहुत लोकप्रिय हुए - चले जाना नहीं...जो दिल में ख़ुशी बनकर आये...
सुरैया का इस जोड़ी के साथ यह गाना बुलंदियों पर रहा - तेरे नैनों ने चोरी किया, मेरा छोटा सा जिया... इन्होने नौ फिल्मों में ५९ गानों की रचना की।
HusanLal - BhagatRam 
गुलाम हैदर को श्रेय जाता है कि उन्होंने हिंदी फिल्मों में पंजाबी लोक संगीत फसल बोयी और लेकिन काटा इसे हुसनलाल-भगतराम ने।
एक दिल के टुकड़े हज़ार हुए...रफ़ी ने गाया था इसे। इसी से हिंदी फिल्मों में सहगल से हटकर उदास गानों का एक नया दौर शुरू हुआ था। हुसनलाल-भगतराम ने खास ध्यान रखा कि यह गाना हिट हो जाए।
सुप्रसिद्ध संगीतकार पंडित अमरनाथ ने छोटे भाई होते थे हुसनलाल और भगतराम। लेकिन संगीत की ट्रेनिंग पं.दिलीप चंद्र वेदी से ली। इन दोनों का जन्म क्रमशः १९२० और १९१४ में हुआ। हुसनलाल वॉयलिन के और भगतराम हारमोनियम के एक्सपर्ट थे। हुसनलाल को वॉयलिन से गहरा लगाव इनकी हर फिल्म में छाया रहा। वो मृत्यु से एक दिन पूर्व भी वॉयलिन बजा रहे थे। इसकी महारथ उन्होंने उस्ताद बशीर खां ने दी थी। भगतराम ने छह फिल्मों में अकेले म्युज़िक दिया और तीन में रामगोपाल पांडे के साथ। १९४४ में 'चांद' से हुसनलाल-भगतराम की जोड़ी पहली बार नक्षत्र पर उभरी।
इनका सफ़र १९६६ तक चला। १९४९-५० में वे शिखर पर थे - १९ फ़िल्में। कुल ५७ फ़िल्में की। प्रमुख हैं - मीना बाज़ार, मिर्ज़ा-साहिबां, अफ़साना, अमर कहानी, अप्सरा, प्यार की जीत, सनम, बड़ी बहन, बालम, अदल-ए-जहाँगीर, छोटी भाभी आदि।

इनके साथ त्रासदी यह रही कि शिखर पर पहुंचते ही गिरावट शुरू हो गई। कारण था शंकर-जयकिशन, सी.रामचंद्र, ओपी नैय्यर आदि नए संगीतकारों का नई संगीत रचनाओं के साथ आगमन। इधर ये नई रचना नहीं दे सके। खुद को रिपीट करते चले गए। बहुत जल्दी ही उन्हें बी और सी ग्रेड की फिल्मों का सहारा लेना पड़ा। और साठ का दशक आते-आते इनका सितारा गर्दिश में डूब गया। इनका पारिवारिक विवाद भी इन्हें ले डूबा।
नियति के खेल भी क्रूर और निराले होते हैं। इस सिलसिले में एक छोटा सा वाकया पेश है। उनके आर्केस्ट्रा में शंकर नाम का नौजवान सहायक होता था। ढोलक बहुत अच्छी बजाता था। वो अच्छा गाता भी था और नाचता भी। प्यार की जीत (१९४८) में शंकर ने तीनो ही काम किये। बहुत ही कामयाब फिल्म रही। आगे चल कर शंकर की एक जयकिशन के साथ शंकर-जयकिशन की जोड़ी बनी। बरसों बाद हुसनलाल और भगतराम में बिखराव हुए और दुर्दिन के दिन आये। उस समय भगतराम को कभी अपने सहायक रहे शंकर के शंकर-जयकिशन के आर्केस्ट्रा में हारमोनियम बजाना पड़ा।

समय समाप्त हुआ। पं.हुसनलाल दिल्ली आ गए। पहाड़गंज में एक कमरा किराये पर  लिया। बच्चों को बिना फीस लिए वॉयलिन सिखाने लगे। २८ दिसंबर १९६८ की सुबह मॉर्निंग वॉक से लौट रहे थे। हार्टफेल हो गया। राहगीर उन्हें अस्पताल ले गए। डॉक्टर ने मुआइना किया और रिपोर्ट में लिखा - लावारिस। ब्राट डेड। १९७३ में पं.भगतराम की भी मृत्यु हो गई। और इसके साथ हो गया, संगीत के एक युग का बेआवाज़ अंत। 
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Published in Navodaya Times dated 04 June 2016
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D-2290 Indira Nagar 
Lucknow - 226016
mob 7505663626

1 comment:

  1. हुस्नलाल बीहगात्रं कइ बारे में ईतनी विस्तृत जानकारी देने के लिए साधुवाद।ईस जआदि का अइसा अन्त हुआ,पढ़कर कअष्ट हुआ।ऐसी जानकारियां देते रहें।मात्रा की गलती कइ लइ छमा

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