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वीर विनोद छाबड़ा
वो जब छोटा था तब से ही उसे जीवन के हर मोड़ पर नाकामी मिली। छुटपन में मां-बाप
गुज़र गए। व्यापार में हाथ डाला कुछ हासिल नहीं हुआ। मेहनत मजदूरी की। वहां भी नाकामी
मिली। पढ़ने की कोशिश की, लेकिन एडमिशन नहीं मिला। एक होटल में कुक की नौकरी की। कुछ समय बाद निकाल दिए गए।
इंशोरेंस की नौकरी भी रास नहीं आई। उसने मिल्ट्री में भी बर्तन धोने का काम किया।
कम उम्र में शादी भी हुई। लेकिन वैवाहिक जीवन नाकाम रहा। पत्नी घर छोड़ कर चली गई, साथ में बेटी को भी
ले गई। बेटी को किडनैप करने की कोशिश की ताकि पत्नी घर लौट आए। मगर औंधे मुंह गिरे।
वो नाकामियों का एक जीता-जागता ग्रंथ बन गया।
अब उसकी उमर पैंसठ साल की हो गई थी। उसका जिस्म काम के योग्य कतई नहीं रह था। सरकार
ने उसे रिटायर घोषित कर दिया और एवज में सौ डॉलर का चेक भिजवा दिया। इसे देख कर वो
बहुत निराश हुआ। ज़िंदगी भर की कमाई बस सौ डॉलर? उसे लगा वो ज़िंदगी
पर बोझ है। मरना ही बेहतर है।
सुसाईड नोट लिखते हुए उसे सहसा ख्याल आया कि ज़िंदगी को अभी एक और मौका देना चाहिए।
उसके पास एक हुनर है, जिसका उसने कभी ठीक से इस्तेमाल नहीं किया। वो बहुत अच्छा कुक है।
उसने सौ डॉलर के चेक के विरुद्ध थोड़ा उधार लिया। कुछ चिकन खरीदे। उन्हें फ्राई
किया और पास के केंटकी इलाके में बेच दिया। उसके बनाए चिकेन जिसने भी खाये, उंगलियां चाटता रह
गया। धीरे-धीरे उसके बनाये चिकेन की महक दूर दूर तक फैल गई। उसका व्यापार बढ़ता चला
गया। बहुत बड़ी फैक्टरी खोल ली उसने। सैकडों आदमी वहां काम करने लगे।
आज वो आदमी ८८ साल का है और फास्ट फूड की दुनिया का बादशाह है। दुनिया उसे कर्नल
सैंडर्स के नाम से जानती है। उसके फास्ट फूड आईटम KFC (Kentchuky Fried Chicken) के नाम से दुनिया भर में बिकते हैं।
नोट - हमारे दोस्त रवींद्र नाथ अरोड़ा हमें यह छोटी सी कथा सुनाते हुए कहते हैं
कि घोर निराशा में भी उम्मीद की किरण बाकी होती है। बस इंसान को हिम्मत नहीं हारनी
चाहिए। उम्मीद को मौका देते रहना चाहिए।
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