-वीर विनोद छाबड़ा
कॉमेडी के बादशाह महमूद
ने फिल्मी माहौल में आंख खोली थी। पिता मुमताज़ अली प्रसिद्ध डांसर और चरित्र अभिनेता।
बहन मीनू मुमताज़ प्रसिद्ध अभिनेत्री और डांसर। महमूद जवान हुए तो कई छोटे-मोटे काम
किये। निर्माता-निर्देशक प्यारेलाल संतोषी की ड्राईवरी की। मीना कुमारी को टेबल-टेनिस
की ट्रेनिंग दी। इसी दौरान उनका मीना की छोटी बहन मधु से इश्क हुआ और फिर शादी।
लेकिन महमूद ने ऊंचा
मुकाम अपने टैलेंट के दम पर ही हासिल किया। गुरुदत्त उन पर मेहरबान रहे - सीआईडी,
कागज़ के फूल,प्यासा आदि। 'परवरिश' में महमूद का बड़ा रोल
था और वो भी भारी-भरकम राजकपूर के सामने। बाद में उन्होंने कपूर ख़ानदान की 'कल आज और कल'
की तर्ज 'हमजोली' में सफ़ल कॉपी की। यह क्रूर मज़ाक था। कपूर
खानदान ने इस पर ऐतराज़ भी किया। महमूद ने बड़े कॉमेडी स्टार होने के बावजूद माफ़ी मांगी।
स्ट्रगल के दिनों में
महमूद की किशोर कुमार से भेंट हुई। महमूद की प्रतिभा से वो वाकिफ़ थे। किशोर एक्टिंग
से ज्यादा गाने इंटरस्टेड थे। उन्होंने यह कहते हुए महमूद की कई प्रोड्यूसरों से सिफ़ारिश
की कि मैं अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा हूं। पलट कर उन्होंने भी वादा किया - मोशाय
एक दिन मैं यह उधार ज़रूर चुकाऊंगा। आगे चल कर महमूद की 'पड़ोसन' में किशोर ने यादगार
अदाकारी की।
साठ और सत्तर के दशक
में महमूद के हास्य मर्म को दक्षिण भारत के फिल्मकारों ने खूब भुनाया - ससुराल,
हमराही, गृहस्थी, बेटी-बेटे, साधु और शैतान,
हमजोली आदि। शोभा खोटे और अरुणा ईरानी के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी। उस दौर की कोई
भी फ़िल्म उठा कर देखें तो पता चलता है कि महमूद की पूछ हीरो से ज्यादा रही। महमूद की
एक अलग कहानी चलने लगी। बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़ों तक को महमूद की एंट्री का इंतज़ार रहने
लगा। उनकी कॉमेडी ने न सिर्फ दर्शकों को हंसाया बल्कि कॉमेडी को भी हंसना सिखाया। उनकी
मौजूदगी के कारण हीरो की चमक फीकी पड़ने लगी। तमाम हीरो लॉबी करने लगे - महमूद हटाओ।
लेकिन वितरकों ने साफ़ मना कर दिया महमूद के बिना फ़िल्म नहीं उठेगी।
महमूद ने 'छोटे नवाब'
में संगीतकार आरडी बर्मन को ब्रेक दिया। अमिताभ बच्चन के डूबते कैरियर को 'बांबे टू गोवा'
से लिफ्ट किया। स्ट्रगल और कड़की के दिनों में अमिताभ महमूद के घर पर महीनों पड़े
रहे। फ़िल्में दिलाने में भी महमूद ने उनकी बहुत मदद की। अमिताभ उन्हें भाईजान कहते
थे। फिर वक़्त ने पलटा खाया। महमूद ने एक इंटरव्यू में अपना दर्द यूं उड़ेला - जब अमिताभ
के पिताजी की तबियत ख़राब थी तो मैं उनको देखने गया। लेकिन हफ़्ते बाद उसी अस्पताल में
मेरी बाई-पास सर्जरी हुई। वो अपने पिताजी को देखने सुबह-शाम आते रहे। लेकिन मुझे देखना
तो दूर 'गेट वेल सून' का एक कार्ड तक नहीं
भेजा।
आईएस जौहर से महमूद
की खूब पटरी खाती थी। 'नमस्ते जी' और 'जौहर महमूद इन गोवा'
बड़ी कामयाबियां थीं। जौहर चाहते थे कि महमूद के साथ उनकी जोड़ी लॉरल-हार्डी के माफ़िक
चले। लेकिन महमूद ने मना कर दिया। वज़ह यह थी कि जौहर की निगाह फ्रंट बेंचर पर रहती
थी जबकि महमूद को हर वर्ग के दुलारे थे।
महमूद बतौर हीरो भी
कामयाब रहे - छोटे नवाब, नमस्ते जी, शबनम, लाखों में एक,
मैं सुंदर हूं, मस्ताना, दो फूल, सबसे बड़ा रुपैया,साधु और शैतान आदि।
उन पर फ़िल्माये अनेक गाने भी सुपर-डुपर हिट रहे। हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं.…अपनी उल्फ़त पे ज़माने
का यह पहरा न होता...वो दिन याद करो.…प्यार की
आग़ में तन
बदन जल गया.…आओ ट्विस्ट करें…ओ मेरी मैना,
तू मान ले मेरा कहना…तुझको रखे राम तुझको
अल्लाह रखे.…एक चतुर नार करके सिंगार…सज रही गली मेरी अम्मा
चुनरी गोटे में.…
अस्सी के दशक में महमूद
खुद को दोहराने लगे। टाईमिंग भी गड़बड़ा गयी। उन्हें हमेशा फैमिली कॉमेडियन माना गया।
लेकिन त्रासदी यह कि फैमिली फ़िल्में बननी ही बंद हो गयी। इधर अदाकारों और दर्शकों की
नई खेप ने बेड़ा ग़र्क कर दिया।
महमूद ने १९९६ में
दमदार एंट्री मारने की एक आख़िरी कोशिश की। अपने बेटे मंज़ूर अली का परिचय कराने के लिए
'दुश्मन दुनिया का' निर्देशित की। लेकिन दुनिया को हंसा नहीं सके।
महमूद को दिल तेरा
दीवाना के लिए श्रेष्ठ सह-अभिनेता और प्यार किये जा, वारिस, पारस और वरदान के लिए
श्रेष्ठ कॉमेडियन का फिल्मफेयर पुरुस्कार मिला। उन्होंने छोटी-बड़ी लगभग तीन सौ फ़िल्में
की। उनको आख़िर में नाना प्रकार की व्याधियों न आ घेरा। अमेरिका गए इलाज के लिए। वहीं
२३ जुलाई २००४ को नींद में ही हास्य की त्रासद बिदाई हो गई।
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Published in Navodaya Times dated 09 July 2016
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