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वीर विनोद छाबड़ा
लखनऊ के हज़रतगंज का चौराहा भी किसी भूलभुलियां से कम नहीं है। कोई बारह-तेरह बरस
पहले की बात है। हम हज़रतगंज चौराहे पर थे। शाम का वक़्त था। तमाम सरकारी दफ्तर छूटने
के कारण वाहनों की भीड़ बहुत थी।
मेमसाब बहुत बोलती थीं। इसलिए हमने उन्हें पीछे बेटी के साथ बैठा दिया था। हम ड्राईविंग
सीट पर थे। हमारे दायें जाने का सिग्नल हुआ। लेकिन हम आगे बढ़ें तो कैसे? आगे वाले की कार ही
स्टार्ट नहीं हो पा रही थी। हमारे पीछे एक पुलिस जीप थी। ड्राईवर हमें हॉर्न पर हॉर्न
मार रहा था। आधा मिनट न गुज़रा होगा कि सिग्नल लाल हो गया।
तभी पीछे जीप का ड्राईवर उतर कर आया। वो पुलिस की वर्दी में था। तीन-चार चुनींदा
गालियां दी। अबे चूतिये, किसने तुझे गाड़ी चलाने का लाइसेंस दिया है?
हम हक्का-बक्का। पहले तो समझे कि सिपाही है। किसी को दे रहा होगा गाली। इनकी तो
आदत ही होती है, गुम्मे-पत्थर तक को गाली देते रहते हैं। इधर पीछे बैठी हमारी मेमसाब और बेटी खीं-खीं
करके हंस रही थीं। लेकिन जब वो हमारे सर पर आकर खड़ा हो गया तो माज़रा हमारी समझ में
आया। पुलिस से हमारी पिछली साथ पुश्तें डरती आई हैं। हम दरवाज़ा खोल कर डरते डरते बाहर
निकले। अब शक्ल सूरत से और ड्रेस से हम ड्राईवर तो लग नहीं रहे थे। मोटे लेंस वाला
प्रभावशाली काला चश्मा भी नाक पर रखा था। यों भी हम उन दिनों अंडर सेक्रेटरी हुआ करते
थे।
सिपाही सकपका गया। इससे पहले कि हम गिड़गिड़ाते, उसने माफ़ी मांग ली।
हम समझे कि आप ड्राईवर हो।
अब हम उसकी तरह गाली तो दे नहीं सकते थे। पीछे बैठी मेमसाब ने भी कहा कि जाने दो।
बिटिया को तो मां का समर्थन करना ही था। हमने भी सोचा छोड़ो। जान ही बची है। खामख्वाह
सीन बनाने से क्या फ़ायदा? उसको प्यार से थोड़ा-बहुत समझा दिया। भैया, आईंदा से आदमी देख
कर बात किया करो।
लेकिन सिपाही जाते जाते हमें एक नसीहत दे गया। मैडम बगल में बैठीं होती तो हम आपको
ड्राईवर समझने की भूल नहीं करते।
तभी सिग्नल हरा हो गया। आगे वाले की कार स्टार्ट हो चुकी थी।
चौराहा पार करते ही हमने पहला काम यह किया कि किनारे गाड़ी रोकी। मेमसाब को बलात
पीछे से उठा कर आगे बैठाया। जितना बोलना चाहो, बोलो। बर्दाश्त कर
लेंगे।
वो दिन है और आज का। मेमसाब बद्दस्तूर बोल रही हैं और हम उस सिपाही की नसीहत याद
रखे हैं।
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29-07-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
Badhiya !!
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