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वीर विनोद छाबड़ा
सीनियर सिटीज़न राम दुलारे बस में चढ़े। कंडक्टर ने कहा, दादा आगे निकल जायें।
ड्राईवर साहब के पीछे वाली सीट खाली है और सीनियर सिटीजन के लिए रिज़र्व भी।
राम दुलारे खुश हुए। ड्राईवर से बोले - भैया राम स्नेही घाट आ जाए तो बता देना।
ड्राईवर ने उन्हें ठंड रखने को बोला। बस चलती रही। निर्धारित स्टॉपेज पर रुकती
रही। राम दुलारे पूछते रहे कि राम स्नेही घाट आया कि नहीं। ड्राईवर जी उन्हें हर बार
कहते रहे। नहीं आया। एक बार झुल्ला गए। चुप बैठ बुढ़ऊ। कहा न जब आएगा बता दूंगा। राम
दुलारे चुप हो गए।
कई घंटे गुज़र गए। राम दुलारे को नींद आ गई। एक स्टॉप पर बस रुकी।
एक मुसाफिर चढ़ा। राम स्नेही घाट का टिकट दे दो।
कंडक्टर ने झिड़क दिया। अबे उतर। राम स्नेही घाट के लिए उलटी दिशा वाली बस जायेगी।
यह बात ड्राईवर ने सुन ली। अरे बाप रे, राम स्नेही घाट तो दो स्टॉप पीछे छूट गया। पलट कर देखा। दादा
राम दुलारे खर्राटे मार रहे हैं। अच्छा हुआ जागे नहीं।
राम दुलारे ने आंखें मलीं। झोला खोला। एक पुड़िया निकाली। उसमें पिसा हुआ लाल-पीला
पाउडर था। मुंह में डाला। प्लास्टिक की बोतल का पानी मुंह में उड़ेल लिया। और एक लंबी
डकार ली। चलो ड्राईवर साब।
ड्राईवर हैरान-परेशान हुआ। आपको तो यहां राम स्नेही घाट पर उतरना है न।
राम दुलारे के चेहरे पर व्याकुलता के भाव उभरे। कौन कहिस?
आप ही तो बार बार पूछ रहे थे कि राम स्नेही घाट आया कि नहीं।
हां हम पूछ रहे थे। वो इसलिए कि हमारे
बेटे ने कहा था कि जब राम स्नेही घाट आ जाए तो दवा खा लेना। और हमने दवा खा ली है।
अब चलो।
ड्राईवर साब पछाड़ खा कर गिर पड़े।
नोट - एक चुटकुले पर आधारित।
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