-वीर विनोद छाबड़ा
निसंदेह आशा भोंसले आज
जिस ऊंचाई पर हैं, वहां तक पहंचने के लिए
उन्होंने बहुत दुरूह और कष्टप्रद यात्रा करी है। लेकिन इसे उन्होंने अकेले तय नहीं
किया है। गायन के क्षेत्र में जब कदम रखा तो सबसे बड़ी चुनौती तो उनकी अपनी बड़ी बहन
लता थीं। लता ने उनकी कोई मदद नहीं की। अपने पैर पर कोई कुल्हाड़ी नहीं मारता है। किसी
ने उन्हें लता की छोटी बहन होने के नाते कोई भाव भी नहीं दिया। शमशाद बेगम और गीता
दत्त का भी बोलबाला था।
उस दौर में बड़ी गायिकायें
अमूमन दूसरी और तीसरी श्रेणी की फिल्मों में नहीं गाती थीं। इस कमी को आशा ने पूरा
किया। ये अवसाद का दौर था। ऐसे में आशा भोंसले की भेंट ओपी नैय्यर से हुई। नैय्यर किसी
घराने से संबंधित संगीतज्ञ नहीं थे। लेकिन रिदम के बादशाह थे। उन्होंने आशा का मुकद्दर
ही बदल दिया। 'सीआईडी' के युगल गीत -
ले के पहला पहला प्यार…में उनको रफ़ी और शमशाद बेगम के साथ कुछ पंक्तियां मिलीं। नैय्यर
और लताजी में पैदाइशी अनबन थी। लता ने उनके साथ काम न करने की अलिखित क़सम खा रखी थी।
इधर नैय्यर भी दृढ़ प्रतिज्ञ थे कि वो लता की आवाज़ से कहीं अधिक सुरीली संगीत की दुनिया
को देंगे। उन्होंने अपनी इस आशा को आशा भोंसले में पूरा होते देखा। आशा की आवाज़ और
सुर को सुधारना और संवारना शुरू किया। इस नई प्रतिभा को उपयोग बीआर चोपड़ा की 'नया दौर' में किया। हालांकि
उसमें कोई सोलो नहीं था। लेकिन रफ़ी के साथ युगल गीतों में आशा की जोड़ी जम गयी। साथी
हाथ बढ़ाना…उड़ें जब जब ज़ुल्फ़ें तेरी…मांग के साथ तुम्हारा…ने तहलका मचा दिया।
आशा की आवाज़ का जादू न सिर्फ जनता के दिल-ओ-दिमाग़ पर चढ़ कर बोलने लगा, बल्कि नैय्यर भी
दीवाने हो गए। सोलो में आशा को नैय्यर ने आसमान पर बैठा दिया - आइये मेहरबान…आंखों से जो उतरी
है दिल में...ये है रेशमी ज़ुल्फ़ों का अंधेरा…और जाइए आप कहां जायेंगे…आओ हुज़ूर तुमको
बहारों में ले चलूं…ज़रा हौले हौले साजना...वो हसीं दर्द दे दो...।
Asha Bhonsle & OP Nayyar |
बताया जाता है कि आशा के
पारिवारिक जीवन में उन दिनों भारी उथल-पुथल थी। नैय्यर ने उन्हें न सिर्फ इमोशनली बल्कि
प्रोफेशनली भी मज़बूत किया। यह एक और ट्रेजेडी है कि बाद में किन्हीं नामालूम कारणों
से १९७२ में नैय्यर और आशा के रिश्तों में खटास आ गई। याद दिला दें कि नैय्यर को 'नया दौर' के हिट संगीत के
लिए फिल्मफेयर अवार्ड मिला। लेकिन आशा ने एक प्रोग्राम में कहा - 'नया दौर' के हिट संगीत का
क्रेडिट निर्माता-निर्देशक बीआर चोपड़ा को जाता है, किसी और को नहीं।
अपने श्रेष्ठ गीतों की लिस्ट में भी आशा ने नैय्यर के संगीत निर्देशन में गाये गीतों
को सम्मिलित नहीं किया। नैय्यर को उन्होंने जहां छोड़ा, वहां से आरडी बर्मन
ने उन्हें उठाया। दोनों ने शादी भी कर ली।
नैय्यर के हाथ नेकी कभी
नहीं, बदी ही आईं। गायन की दुनिया की दो श्रेष्ठ गायिकाएं नाराज़ हों
तो फ़िल्मी दुनिया में किसी संगीतकार का रहना कठिन है। यों और भी कई कारण थे, जो नैय्यर के ग्राफ
गिरने का आधार बने। यह एक अलग लंबी कहानी है।
फ़िल्म नगरी ड्रामे में
ड्रामे के लिए मशहूर है। नैय्यर के साथ आशा ने आख़री दफ़े 'प्राण जाये पर
वचन न जाये' के लिए एक गाना रेकॉर्ड किया था - चैन से हमको कभी जीने न दिया…। मज़े की बात ये
है कि फिल्म की रिलीज़ से ठीक पहले यह गाना हटा दिया गया। परंतु यहां ट्रेजडी में कॉमेडी
हुई। आशा को श्रेष्ठ गायन के लिए फिल्मफेयर अवार्ड इसी गाने के लिए मिला।
ज्योतिष्य विद्या में विश्वास
रखने वाले नैय्यर ने एक इंटरव्यू में बताया था - मुझे शुरू से मालूम था कि मैं और आशा
हमेशा साथ नहीं रहेंगे। हमें अलग होना ही होगा। आशा से अच्छा कोई दूसरा मेरी ज़िंदगी
में नहीं आया।
लेकिन आशा ने अपने जीवन
में नैय्यर के महत्व को सिरे से ही नकार दिया। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा - मुझे
जो कुछ मिला मेरी प्रतिभा के दम पर।
सपनों की यह दुनिया बहुत
निर्दयी है। जब बंदा टॉप पर पहुंचता है तो भूल जाता है कि किसके सर पर पैर रख कर चढ़ा
है, सिर्फ अपनी ही पीठ थपथपाता है।
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Published in Navodaya Times dated 16 July 2016
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