-वीर विनोद छाबड़ा
सी०रामचंद्र के नाम
से मशहूर संगीतकार को फ़िल्मी दुनिया में चितलकर के नाम से पहचाना जाता था। बनने आये
थे हीरो। मगर किस्मत में संगीतकार बनना लिखा था। उन्हें सर्वप्रथम भगवान दादा की सी
ग्रेड फिल्म सुखी जीवन (१९४३) में नोटिस किया गया। और पराकाष्ठा पर पहुंचे 'अनारकली' (१९५३) से। याद करिये...यह
ज़िंदगी उसी की है...ज़िंदगी प्यार की दो चार घडी होती है...जाग दर्दे इश्क़ जाग…
चितलकर के जीवन कई
अजीबो-गरीब घटनाएं हुई। मशहूर फ़िल्मकार और अभिनेता गजानंद जागीरदार एक फिल्म बना रहे
थे। किसी ने सी०रामचंद्र का नाम सुझाया। कई धुनें सुनीं। लेकिन खुश नहीं हुए। अच्छी
तो हैं, मगर मज़ा नहीं आया। वो एक नया संगीतकार आया है, चितलकर। बड़ी प्रशंसा
हो रही है आजकल उसकी है। कुछ उसकी तरह का बढ़िया और ताजा सुनाओ न। चितलकर ने अगले दिन
कुछ और धुनें सुनायीं। जागीरदार असंतुष्ट रहे। यह चितलकर जैसी धुनें नहीं हैं। इस बार
चितलकर तीन दिन बाद लौटे। उन्होंने पहले दिन वाली धुनें पुनः सुनायीं और बताया कि ये
चितलकर जैसी हैं। मानो मोगांबो खुश हुआ। तब सी.रामचंद्र ने उन्हें बताया कि दरअसल वही
चितलकर हैं। बेचारे जागीरदार बहुत शर्मिंदा हुए।
Asha Bhonsle & CRamchandra |
अवसाद के दौर से निकले
दिलीप कुमार को फ़ौरन कोई हलकी-फुल्की सुखांत कॉमेडी चाहिए थी। एसएम नायडू ने उन्हें
'आज़ाद' ऑफर की। दिलीप उछल पड़े। संगीत के लिए पसंदीदा नौशाद से बात हुई।
महीने भर में छह गाने चाहिए। मगर नौशाद ने मना कर दिया। इतने कम वक़्त में मुमकिन नहीं
है। उन्हें मुंहमांगी कीमत ऑफर हुई। नौशाद बिगड़ गए। अमां, कोई किरयाने की दुकान
समझ रखी है क्या? तब चितलकर संपर्क साधा गया। उन्हें चैलेंज पसंद थे। छह दिन में
छह गाने रिकॉर्ड हो गए। अपलम-चपलम, चपलायी रे तेरी दुनिया को छोड़ कर.…कितना हसीं है या मौसम…ये दूसरा गाना लता
के साथ उन्होंने खुद गाया था। चितलकर ने इसके अलावा भी कई गाने गाये हैं। मेरे पिया
गए रंगून...शोला जो भड़के...गोरे गोरे ओ बांके छोरे...
उन्होंने ने १०४ फिल्मों
में संगीत दिया। उन्हें श्रेय दिया जाता है कि हिंदी सिनेमा में वेस्टर्न म्यूज़िक वही
लेकर आये। ईना मीना डीका... उन्हीं की देन है। उनके कंपोज़ ये गाने भी रिकॉर्ड-ब्रेकर
रहे - आधा है चंद्रमा रात आधी…शाम ढ़ले खिड़की तले...
गोरी सूरत दिल के काले…दिल लगा के हम ये समझे…मुझ पर इलज़ाम बेवफ़ाई
का है…देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान…। मशहूर संगीतकार मदन
कभी उन्हीं के असिस्टेंट हुआ करते थे।
Lata & C.Ramchandra |
अरविंद केजरीवाल ने
बतौर दिल्ली सीएम जब पहली बार शपथ ली थी तो उन्होंने 'पैगाम' का एक गाना सुनाया
था - इंसान का इंसान से हो भाई चारा... इसे चितलकर ने ही कंपोज़ किया था।
उस दौर में चितलकर
और लता जी की जोड़ी बहुत मशहूर थी। राधा न बोले न बोले न बोले रे...मैं कैसे आऊं जमुना
के तीर...ये ज़िंदगी उसी कि है...। लता जी की किसी से स्थाई दोस्ती कभी नहीं रही। चितलकर
के साथ भी यही हुआ। एक-दूसरे का मुर्दा मुंह तक न देखने के कस्मे-वादे हो गए। इसके
पीछे कहानियां बताई गईं। चितलकर का कहना था कि लता उनसे शादी करना चाहती थीं। लेकिन
वो शादी-शुदा थे। मना कर दिया। हालांकि कुछ माह बाद चितलकर ने दूसरी शादी कर ली। लता
के पक्ष का कथन है कि चितलकर के ऑर्केस्ट्रा में एक
वाहियात आदमी था जो चितलकर-लता
के संबंधों को लेकर खूब अनाप-शनाप फैलाया करता था। लता के कहने पर भी चितलकर ने उस
आदमी को नहीं हटाया। परिणामतः दोनों में कुट्टी हो गई। एक और पक्ष का कहना है कि एक
कंपनी में हिस्सेदारी को लेकर किसी ने फ्रॉड किया। मामला कोर्ट पहुंचा। लता ने चितलकर
पर आरोप लगाया कि उनकी वजह से उनका नाम ख़राब हुआ है और कोर्ट का मुंह देखना पड़ा। यही
इलज़ाम पलट कर चितलकर ने लता पर लगाया। कौन गलत और कौन सही? यह अभी तक तय नहीं
हो पाया।
कुछ समय बाद लता ने
ऐतिहासिक नॉन फ़िल्मी ऐ मेरे वतन के लोगों...गाया। चितलकर ने म्युज़िक दिया था। बताते
हैं लता ने गाने की महत्वता का अनुमान लगा लिया था। कविवर प्रदीप के हाथ दोस्ती का
पैगाम भेजा। उधर दिलीप कुमार की ओर से भी प्रेशर आया। चितलकर ने भारी मन से आशा भोंसले
को हटा कर लता को गवाया। इस घटना के चार साल बाद लता ने अपने बेस्ट फ़िल्मी गीतों की
एक सूची जारी की। चितलकर उसमें नहीं थे।
सरकारें
आई और चली गई। सबको कुछ न कुछ मिला। लेकिन चितलकर खाली हाथ आये थे और खाली हाथ चले
गए। १२ जनवरी १९१८ को जन्मे चितलकर की लीला ०५ जनवरी १९८२ को पेप्टिक अल्सर ने समाप्त
कर दी।
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