Thursday, July 14, 2016

पीके घर आज प्यारी दुल्हनिया चली...

- वीर विनोद छाबड़ा
एक ज़माना था जब बिटिया की शादी के बाद सबसे भावुक क्षण विदाई होता था। देर तक चलता था रोना-धोना। बेचारी दुल्हन का मेकअप तक आंसूओं में बह जाता था। बैकग्राउंड पर रेकॉर्ड अलग से माहौल को ग़मगीन बनाता होता था - रोएं माता-पिता उनकी दुनिया चली...बाबुल की दुआएं लेती जा....

हमें याद है कि हमारे ज़माने में घर वाले ही नहीं मोहल्ले वाले भी खूब रोते थे। जिसे शादी में नहीं बुलाया गया होता था, वो भी बाहर निकल आता था और आंसू टपक ही जाते थे।
बचपन में हम भी ऐसे अवसरों पर खूब रोते थे। यह सिलसिला किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक चलता रहा। एक दिन किसी ने समझाया - मोहल्ले की लड़की की शादी में मत रोया कर। किसी को गलतफहमी हो गई तो यहां तिल का ताड़ बनाने वालों की कमी नहीं है। लेकिन दिल फिर भी नहीं माना। लाख न चाहने पर भी आंसू न थमे। छुप छुप कर सुबक लिए।
जब हमारी शादी हुई तो हमें डर लगा कि ऐसा न हम भी किसी के गले लग कर फ़फ़क पड़ें। लेकिन हमने दिल को बहुत मज़बूत किया। एक दिन पहले ही विदाई सीन विजुलाइज किया और आंसू बहा आए।
बहरहाल, शादी हुई और फिर विदाई। लेकिन घोर आश्चर्य कि परली तरफ से न कोई बैकग्राउंड बिदाई गीत और न कतई सिसकने की आहट। उलटा ही-ही और खीं-खीं की खनखनाहट।


लेकिन हम समझ गए। हमारी आंखें नम हो आईं। उन लोगों ने अपनी मुसीबत मेरे गले मढ़ दी है। इसके साथ ही एकाएक हमें शमा-सुषमा में प्रकाशित वो कार्टून याद हो आया जिसमें दुल्हन विदा हो रही है। आगे आगे दुल्हा है। बैकग्राउंड में गाना बज रहा है - आज हम खुद ही अपनी मौत का सामान ले चले...
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14-07-2016 mob 7505663626
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Lucknow - 226016 

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