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वीर विनोद छाबड़ा
बरसात होती है तो सबको छतरी और रेनकोट की याद आती है। हमें तो बचपन के वो दिन याद
हैं जब रेनकोट बस्ते में होने के बावजूद हमने नहीं खोला। डम डम डिगा डिगा... बरसात
में भीगना मंज़ूर रहा। बहुत मज़ा आता था। नतीजा खांसी-जुकाम और कभी कभी बुखार भी। इसी
बहाने स्कूल जाने से दो दिन की छुट्टी।
यों भी आज तक हम रेनकोट का पूरा पूरा फायदा नहीं उठा पाए। स्कूल में एक दिन किसी
ने बस्ते से चोरी कर लिया। दूसरा छीना-झपटी में फट गया। अब एक सीज़न में कितने रेनकोट
लोगे? बरसात में कई बार किसी तरह पेड़ों और दुकानों के छज्जे तले होते हुए घर पहुंचते
थे। उन दिनों पेड़ों की भरमार हुआ करती
थी। लेकिन इसके बावजूद भीग जाते थे। अब हैदर कैनाल के पुल पर तो पेड़ उग नहीं सकते
थे।
कई बार तो ऐसा हुआ कि बादल घिरे हुए मिले। ठंडी ठंडी हवा। कितना मज़ा आ रहा है...स्कूटी
उठाई और चल दिए। जब बरसात होगी तो रेनकोट ओढ़ लेंगे। लेकिन अचानक ही जोरदार झमाझम शुरू
हो गई। जब तक स्कूटी रोकें। भीग ही गए। अब पहनने या न पहनने से क्या फायदा? एक बार हमने पतलून
सहित रेनकोट खरीदा। बड़ी मुसीबत वाली चीज़ निकला यह तो। पतलून पर पतलून पहनना कोई आसान
काम नहीं है। एक बार बारिश हो रही थी। हमने कच्छे के ऊपर रेनकोट वाली पतलून पहनी और
ऑफिस आ गए। स्कूटर स्टैंड पर हेलमेट बॉक्स से अपनी वाली सूखी पतलून निकाली और पहनी
ली। लोग आंखें फाड़-फाड़ कर देख रहे थे। यह देखो, डिप्टी जनरल मैनेजर
साहब का यह हाल है? अमां कार से आ जाते। लेकिन हमारी मजबूरी यह थी उस दिन कि कार पंक्चर थी। पंक्चर
लगवाते तो बारह बज जाता और ऑफिस का स्टैंड तो बरसात के दिनों में साड़े दस बजे ही फुल्ल
हो जाता है।
सबसे बड़ी फ़ज़ीहत तो तब हुई जब रास्ते में एक टांग पर खड़े होकर पतलून पर पतलून पहननी
पड़ी। बैलेंस नहीं कर पाए। गिर पड़े। लोग हो हो कर हंसने लगे।
एक दिन हम भीगते हुए ऑफिस पहुंचे। सूट एक कुर्सी पर सूखने के लिए डाल दिया। बॉस
से मिल कर लौटे तो सूट चोरी हो चुका था। हम खुश हुए कि अच्छा हुआ, बलां टली सर से।
रिटायर हुए तो मेमसाब बौखलाईं - छतरी है तो। क्या ज़रूरत है अब रेनकोट की? दफ्तर तो जाना नहीं।
रिटायरमेंट का छटा बरस चल रहा है। संयोग से तब से अब तक छतरी खोलने की नौबत नहीं
आई। जब भी बादल दिखे, हम छतरी लेकर किसी काम के बहाने बाहर निकले। घंटा-दो घंटा टहले, लेकिन पानी न बरसा।
और जैसे ही घर में घुसे कि झमाझम शुरू हो गया।
आज हम अमीनाबाद एक मित्र के घर गए। लौटने लगे तो आसमान पर बादल घिरे देखे। हम घबराए
आज तो भीग जाएंगे। मित्र ने उलाहना दिया, इतनी भी क्या फ़कीरी है कि रेनकोट नहीं है। अमां न पहनो, दिखाने के लिए साथ
में रखे तो रहो। हमें शर्म आ गई। घर जाने से पहले क़ैसरबाग़ से रेनकोट लिया। दस किलोमीटर
रास्ता तय किया, लेकिन बारिश नहीं हुई।
यों, अभी तो सारा सीज़न बाकी है। अब देखें, आगे क्या होता है?
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03-07-2016 mob 7505663626
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