Friday, July 8, 2016

और बाबा चल ही दिए।

- वीर विनोद छाबड़ा
घर के एक कमरे में टाईल्स लगनी थीं। इस काम में दक्ष एक राज मिस्त्री हमारी पहचान का था। वो बोला, तीन दिन लगेंगें, लेकिन एक शर्त है कि अगर बाबा के मरने की खबर आ गई तो हम काम छोड़ कर तुरंत चले जाएंगे और फिर तेरही बाद लौटेंगे।
हमें याद आया कि कई साल पहले भी यह राज मिस्त्री हमारे घर काम कर रहा था कि उसके बाबा के गुज़रने की खबर आई थी और वो फौरन चला गया था। हमने उसके लौटने का इंतज़ार नहीं किया था और दूसरे मिस्त्री से काम पूरा करा लिया था।
हमने उसे वो घटना याद दिलाई। उसने कहा - हां, वो यही बाबा थे। तब वो हट्टे-कट्टे थे। टहल कर आए और गिर पड़े बिस्तर पर। रोना-धोना मच गया। मगर जैसे ही मैय्यत उठाने लगे, उठ बैठे। ठीक से सोने भी नहीं देते तुम लोग।
दो साल बाद, फिर ऐसा ही हुआ। इस बार तो चिता पर लिटा दिया था। मगर बाबा सख्त जान निकले। क्या कर रहे हो? बहुत डांटे थे। थोड़ा इत्मीनान कर लिया करो।
अभी पिछले महीने की बात है। खुद ही ज़मीन पर लेट गए। लगा अब जाने वाले हैं। अठानवे साल के हो चुके हैं। आखिर कब तक जियेंगे? लेकिन उस बार भी न उन्होंने धोखा दिया। कहने लगे, गर्मी में ज़मीन पर लेटना भी मुश्किल कर दिए हो तुम लोग।
मगर अबकी बार ऐसा नहीं होगा। बाबा पिछले दस दिन से खाना बंद किए हुए हैं, सिर्फ थोड़ा थोड़ा पानी पी रहे हैं। बाबा हम सबको बहुत होशियारी दिखा चुके हैं।

हमने ऊपर आसमान की ओर देखा और राम का नाम लेकर काम शुरू करा दिया। बाबा जहां तीन बार धोखा दिए हैं तो चौथी बार भी दे सकते हैं। मगर इस बीच जब जब मिस्त्री के मोबाईल की घंटी बजी हमारा दिल धड़क उठा - लगता है, गए बाबा। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ। बाबा की सांस चल रही है।
और हमारा काम पूरा हुआ। हम मिस्त्री को फाईनल पेमेंट कर रहे थे कि मिस्त्री का मोबाईल बजा। बाबा चले गए।
मिस्त्री को यकीन नहीं हुआ  - ठीक से हिला-डुला कर देख लो।
कुछ देर तक मिस्त्री मोबाईल कान से लगाये रहा। फिर एकाएक जोर से हंसा - इस बार बाबा हमें धोखा नहीं दे सकते। अब तो डॉक्टर भी देख गए हैं।

लेकिन चलते हुए वो उदास हो गया - काश, बाबा मज़ाक कर रहे हों
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