Saturday, November 12, 2016

नस नस में बहता था रोमांस

- वीर विनोद छाबड़ा
शम्मी कपूर का नाम जुबां पर आते ही ज़हन में एक रॉकस्टार की तस्वीर बनती है। उन्हें पाथब्रेकर भी कहा जाता था और रीबल स्टार भी। अब यह एक अलग किस्सा है कि शम्मी में एक विद्रोही एक्टर कैसे, क्योंकर और किन हालात में जन्मा, जिसने हिंदी सिनेमा में एक्टिंग की धारा ही बदल डाली। बहरहाल, यहां शम्मी नामक उस व्यक्ति का ज़िक्र है जिसकी नस नस में रोमांस बहता था।
ग्रेट पृथ्वीराज कपूर और शोमैन राजकपूर के छोटे भाई होने के कारण शम्मी को फिल्म इंडस्ट्री में जानते सभी थे, लेकिन अपनी जगह बनाने के लिए उन्हें एक आम इंसान की तरह खासा संघर्ष करना पड़ा। उनकी पहली फिल्म थी - 'रेल का डिब्बा', जिसकी नायिका थी मधुबाला। शम्मी कपूर गश खा गए। इतनी खूबसूरत महिला उन्होंने इससे पहले कभी नहीं देखी थी। शम्मी की ऑटोबॉयोग्राफी 'दि गेम चेंजर' में लिखा है कि जब वो पानी पीती थी तो उसके गले की नस से पानी नीचे उतरता हुआ साफ़ दिखता था। हालांकि शम्मी को मालूम था कि दिलीप कुमार और मधु में ज़बरदस्त रोमांस है। लेकिन इसके बावज़ूद वो खुद को मधु पर फ़िदा होने से नहीं रोक पाए। प्रोफेशन में मधु बहुत सीनियर थी। पहले दिन सेट पर शम्मी को देख कर हंस दी थी - ये लड़का रोमांस करेगा? लेकिन मधु ने ही शम्मी को सहज किया। एक दिन बहुत हिम्मत करके शम्मी ने प्रोपोज़ कर ही दिया। मधु तो मज़ाक समझ कर हंस दी थी। लेकिन शम्मी इतने उतावले हो गए कि घर में मां से बात की। बड़ा बवाल खड़ा हुआ। ज़माना दकियानूसी का था। न जाति देखी और न धर्म। और फिर सब जानते थे कि मधु किससे प्यार करती है। बामुश्किल शम्मी के सर से  मधु का भूत उतरा। इसके बाद शम्मी ने मधु के साथ नक़ाब (१९५५) और बॉयफ्रेंड (१९६१) में काम किया था। लेकिन तब तक पुल के नीचे बहुत पानी बह चुका था। 
Shammi-Nutan
शम्मी और नूतन के परिवार एक ही एरिया में रहते थे। दोनों साथ साथ पले-बड़े थे। डेटिंग भी करते थे। नूतन बहुत इंटेलीजेंट थी। समय से आगे की सोच और जिज्ञासू। चुलबुली और ज़बरदस्त सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी। संपूर्ण महिला। नूतन की पहली फिल्म 'नगीना' (१९५१) के प्रीमियर पर शम्मी उनके साथ थे। लेकिन १६ वर्षीया नूतन को गेटकीपर ने इस एडल्ट फिल्म को देखने से रोक दिया। इन दोनों की पहली फिल्म 'लैला मजनूं' (१९५३) थी। यह औंधे मुंह गिरी। न शम्मी मजनूँ दिखे और न नूतन लैला। बाद में नूतन से शादी की बात भी चली। मां शोभना समर्थ को इस रिश्ते पर कोई ऐतराज  नहीं था। लेकिन समर्थ परिवार के हितैषी मोतीलाल इस रिश्ते के हक़ में नहीं थे। उनकी निगाह में बिगड़ैल और आवारा शम्मी का कोई फ्यूचर नहीं था। पचास के दशक के ख़त्म होने तक दोनों स्टार बन चुके थे। शम्मी को १९५९ में नूतन के साथ 'बसंत' ऑफर हुई। बिना स्क्रिप्ट सुने शम्मी ने हां कर दी। यह फिल्म दोनों के बीच लव सीन की गर्माहट के कारण बहुत चर्चित हुई। इसके बाद १९६७ में शम्मी कपूर और नूतन की एक और फिल्म आयी - लाटसाहब। किसी सेंसेशन की आशा रखने वाले बहुत निराश हुए।

१९५३ में राजकपूर-दिलीप कुमार की एक क्रिकेट टीम हिंदी फिल्मों को प्रमोट करने सीलोन (श्रीलंका) गयी। शम्मी कपूर मेंबर थे टीम के। वहां उन्होंने एक शाम एक कैबरे देखा। उनका दिल बैले डांसर पर आ गया। वो मिस्र की नाडिया जमाल थी, बलां की सुंदर। शम्मी उससे मिले और उसके हुस्न की बहुत तारीफ़ की। उसे बंबई आने निमंत्रण दिया। कुछ दिन बाद नाडिया अपने शो के सिलसिले में बंबई आई। शम्मी की गेस्ट बनीं। शम्मी ने उसे अपने परिवार से मिलाया। फिर प्रोपोज़ किया। लेकिन नाडिया तब सिर्फ १७ साल की थी और शम्मी २२ के। वो दुनिया को और देखना चाहती थी। तय यह हुआ कि पांच साल इंतज़ार करते हैं और अगर तब एक-दूसरे के प्रति प्रेम ऐसे ही बना रहा तो बात आगे बढ़ेगी। लेकिन इससे पहले ही नाडिया ने शादी कर ली और इधर शम्मी को गीताबाली मिल गयी।
Shammi Kapoor
'रंगीन रातें' की शूटिंग के दौरान शम्मी ने  गीताबाली को प्रोपोज़ किया। इस बार वो वाकई बहुत सीरियस थे। गीताबाली कई दिन तक हंस कर टालती रही। लेकिन एक दिन उसने एक शर्त रख दी - शादी होगी तो आज ही और अभी। रात के बारह बजे का समय था। सुबह चार बजे मंदिर खुला। चंद दोस्तों के समक्ष  दोनों ने शादी कर ली। २४ अगस्त १९५५ से लेकर अपनी मृत्यु के दिन २१ जनवरी १९६५ तक गीताबाली ने शम्मी कपूर के दिल पर एकछत्र राज किया और शम्मी ने भी कोई भी फैसला गीता से पूछे बिना नहीं किया।

चार साल बाद शम्मी कपूर ने ज़िंदगी को फिर से जीने का फैसला किया और नीला देवी से शादी कर ली, इस रज़ामंदी के साथ कि औलाद पैदा नहीं करेंगे और गीता से उत्पन्न बच्चों को पालेंगे। २१ अक्टूबर १९३१ को जन्मे शम्मी कपूर १४ अगस्त २०११ को परलोकवासी हुए।  
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Published in Navodaya Times dated 12 Nov 2016
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