Thursday, November 3, 2016

खेलते रहो फुटबॉल

-वीर विनोद छाबड़ा
फुटबॉल का नाम सुनते ही मुझे फीफा वर्ल्ड कप की याद आती है। और फिर फीफा के नाम पर अपने एक सहकर्मी की।

वो सहकर्मी फाइल पर निर्णय लेने से हमेशा कतराते थे। छुट्टी की अर्ज़ी तक को टहला देते। अर्जीदाता फाईल के पीछे-पीछे टहलता। यह देख वो अत्यंत पुलकित होते।
कोई भी विषय हो। कोशिश होती नुक्स निकाल देना। नुक्स नहीं मिलता तो दूसरे अधिकारी का अभिमत प्राप्त करने हेतु फाईल बढ़ा देते। चाहे विषय का उनसे संबंध हो या न हो।
इधर-उधर से तमाम अभिमत प्राप्त करने के बाद भी वो फाईल पर कोई सार्थक टिप्पणी नहीं लिखते थे। तीन शब्द लिख देते - पत्रावली उच्चादेश हेतु।
अपनी ज़िम्मेदारी दूसरों पर डाल उनका सरदर्द बढ़ा देते और खुद भीनी मुस्कान मार घर निकल लेते। न निर्णय लो और न फंसो की नीति का ज्ञान सबको बांटते रहे।
कर्मचारियों के एक मीटिंग में उच्चाधिकारी ने उन पर छींटा भी कसा - अब समय बदल चुका है। फीफा-फीफा खेलना बंद करिये और शीघ्र निर्णय लेना सीखिये। नई पीढ़ी बहुत देर तक सब्र नहीं करती।
इस पर उपस्थित श्रोता कर्मचारियों ने जम कर करतल ध्वनि की । मगर मेरे सहकर्मी नहीं बदले। एचएमटी वाले भी नहीं बदले। नतीजा वो आउट ऑफ़ डेट हो गए। ऐसे ही स्विस की घड़ियों का हाल हुआ। समय के साथ नहीं चले। जापानी और हांगकांग की डिजिटल घड़ियां छा गयीं। लेकिन मेरे सहकर्मी के ऐसा नहीं हुआ। उनकी लगाई हरामखोरी की पुष्पबेल चढ़ती ही रही। न बदले हैं और न बदलेंगे का अनुकूल माहौल मिलता चला गया।
जैसा चल रहा है चलने दो की पहले से चल रही नीति का अक्षरशा अनुसरण करते हैं।
मरते हुए के मुंह में भी गंगाजल की दो बूंद नहीं डालेंगे बल्कि प्रथमतः किसी विशेषज्ञ की राय लेंगे और फिर उच्चादेश प्राप्त करेंगे। तत्पश्चात बंदा जीवित ही नहीं बचता है। 

आज पांच साल हो चुके हैं। मैं और मेरे वो उच्चाधिकारी और सहकर्मी सेवानिवृत हो चुके हैं। मज़े की बात देखिये जो कर्मचारी कल तक उन पर की गयी छींटाकशी पर करतल ध्वनि कर रहे थे, उनमें से ही एक ने उस सहकर्मी का स्थान लिया है और उन्हीं के नक्शो-क़दमों पर चल रहा है। पहले की तरह बड़े मजे से फुटबॉल खेल रहे हैं। नीचे वाले भी कम नहीं हैं। और अब तो ऊपर वालों को भी फुटबॉल भाने लगा है। और भुक्तभोगी फुटबॉल बना हुआ है।
देश की भी कुछ ऐसी ही हालत है। पहले की सरकार और अबकी सरकार। प्रदेश हो या केंद्र। आपने भी ऐसा किया था। हमने किया तो गुनाह कैसा? आपने गुनहगार को भगाने का काम किया। हमने गुनहगार को बचाने का काम किया। आप हमारी जगह होते तो क्या करते?

कभी फुटबॉल मेरी कोर्ट में तो कभी तेरे पाले में। खेलते रहो। मज़ा आ रहा है। जनता को फुटबॉल बने रहने दो। 
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03-11-2016 mob 7505663626
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