Tuesday, November 29, 2016

भूतनी देवी का इंसाफ़।

- वीर विनोद छाबड़ा
वो अपने प्रेमी की याद में खोयी थी। पूरे मन से। सुध-बुध नहीं रही कि कौन आ रहा है और कौन जा रहा है।
इसी बीच उधर से एक पहुंचे हुए तीनों लोकों की यात्रा पर निकले घुम्मकड़ ऋषि गुज़रे। प्यास से व्याकुल थे। बोले - बच्ची पानी पिला दे। पुण्य प्राप्त होगा तुझे।
लेकिन वो भक्तन तो डूबी थी अपने पिया की याद में। उसने न सुना और न देखा कि द्वारे पर कौन आया।
ऋषि जी को क्रोध आया। श्राप दे मारा - जा तू भूतनी बन जा। तेरे रूप और लावण्य पर मोहित तेरा प्रेमी तुझसे नफ़रत करेगा। एक नज़र ताकेगा भी नहीं।
यह सुन कर वो व्याकुल हो गयी। मुझे क्षमा करें ऋषिवर। भारी भूल हो गयी।
ऋषि तो ऋषि होते हैं। ऊपर से कठोर मगर अंदर से नरम। बोले - जो हो गया, सो हो गया। धनुष से छूटा बाण और मुंह से निकला शब्द वापस नहीं हो सकता। तू रहेगी तो भूतनी ही लेकिन सहृदय और परोपकार वाली। लोग तेरी पूजा करेंगे। तेरे में शक्ति होगी कि तू प्रसन्न हो कर जिसे भी चाहे उसके जीवन काल में एक वरदान दे सकेगी। तू भूतनी देवी कहलायेगी।
यह कर ऋषि जी ने पानी पिया और अपनी यात्रा पर आगे बढ़ लिए।
एक दिन एक सीनियर सिटिज़न जोड़ा आया। दोनों की उम्र साठ के आस-पास रही होगी। उन्होंने महीनों भूतनी देवी की आराधना की थी। इस बावत भूतनी देवी मंदिर के पुजारी का सर्टिफिकेट भी उन्होंने प्रस्तुत किये। भूतनी देवी प्रसन्न हुईं। मांगो, क्या वरदान चाहिए तुम दोनों को?

सबसे पहले बुढ़िया बोली - मुझे शारीरिक व्याधियों से निजात दिला दें देवी।
भूतनी देवी ने कहा - तथास्तु।
बुढ़िया निरोग हो गयी। जवान दिखने लगी।
अब बारी थी बुढ़ऊ की। उन्होंने मांगा - मुझे अपने से तीस साल छोटी पत्नी दिला दें देवी।
भूतनी देवी ने कहा - तेरी मुराद भी पूरी हुई भक्त। तथास्तु।
यह कर कर भूतनी देवी अंतर्ध्यान हो गयीं।
अगले क्षण बुढ़ऊ ने देखा कि उसकी उम्र ९० साल की हो गयी है।

भूतनी देवी ने सही इंसाफ किया। उन्होंने महिला का साथ दिया। वो भूतनी थीं तो क्या हुआ? आखिर वो थीं तो महिला ही न। 
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