Friday, June 16, 2017

भुगतान हो चुका है

- वीर विनोद छाबड़ा
वो लड़का अनाथ और बहुत ग़रीब था। उस दिन वो बहुत उदास था। वो पढ़ना चाहता था। उसने कई जगह मदद की गुहार लगाई। लेकिन सफलता नहीं मिली। उसने फ़ैसला किया कि वो अपने कपड़े और जितना भी उसके पास सामान है, सब बेच देगा। उसे विश्वास है कि इससे इतने पैसे निकल आएंगे कि महीने भर की फ़ीस का भुगतान हो जाएगा।
और सचमुच आशानुसार फीस के लिए ज़रूरी पैसे उसे मिल गए हैं और कुछ सेंट अतिरिक्त भी हो गए हैं। तभी उसे महसूस हुआ कि उसे बहुत भूख लगी है। लेकिन उसकी भूख इन अतिरिक्त सेंट से पूरी होनी संभव नहीं थी।
तभी उसके दिमाग में एक आईडिया आया। उसे विश्वास था कि उसे सफलता मिलेगी। उसने एक अच्छे दिखने वाले घर की बेल का बटन दबाया। एक स्त्री ने द्वार खोला। वो स्त्री बहुत सुंदर थी। इतनी अधिक सुंदर कि वो लड़का उसे अपलक निहारता रह गया। सुध-बुध खो बैठा। भूख भी भूल गया। उसने खाने की जगह एक गिलास पानी की मांग की।
लेकिन वो सुंदर स्त्री उसके चेहरे को देख कर ताड़ गई कि यह लड़का भूखा है। वो उसके लिए एक बड़े ग्लास में दूध भर कर ले आई। लड़का गटागट दूध पी गया। बदले में उसने बचे सेंट देने चाहे। लेकिन सुंदर स्त्री ने मना कर दिया। किसी पर दया करने का कोई मूल्य नहीं होता है।
लड़का बहुत खुश हुआ। दूध पीकर उसके शरीर में नई स्फूर्ति पैदा हुई। उसे विश्वास हो गया कि दुनिया में अभी अच्छे लोग हैं। आगे बढ़ो। कोई न कोई उसकी मदद करता रहेगा।
बरसों गुज़र गए। वो सुंदर स्त्री बूढ़ी हो गई। एक दिन वो बहुत बीमार पड़ी। अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। मगर डॉक्टरों को उसकी बीमारी समझ में न आई। वो दिन प्रति दिन दुबली होने लगी। बदन में असहनीय दर्द भी रहने लगा। दिन रात वो कराहती रहती थी। डॉक्टरों ने उसे बड़े शहर के एक बहुत बड़े अस्पताल को रेफेर कर दिया। उसकी बीमारी वहां भी रहस्य बनी रही। अब तक उसकी जमा-पूंजी का बड़ा हिस्सा भी ईलाज में खर्च हो चुका था।
तब रहस्यमई बीमारियों के एक बहुत बड़े विशेषज्ञ डॉ हॉवर्ड केली को बुलाया गया। डॉ केली अपनी टीम के साथ पूरे जी-जान से उसका ईलाज करने में जुट गए।
आख़िरकार मेडिकल साइंस की जीत हुई। वो स्त्री ठीक हो गयी। कुछ दिन बाद उसे हॉस्पिटल से छुट्टी देने का फैसला भी कर दिया गया।
उसके कमरे में बिल भिजवाया गया। उस स्त्री का दिल धड़क उठा। उसे भय लगा कि बिल इतना अधिक होगा कि उसे चुकाने के लिए उसकी बाकी पूंजी और बची ज़िंदगी खर्च हो जायेगी। लेकिन जब उसने लिफाफे से बिल निकाल कर देखा तो वो हैरान रह गई। उस पर लिखा था - पेड इन फुल। फुल ग्लास मिल्क। डॉ हॉवर्ड केली। 

नोट - हमारे मित्र रविंद्र नाथ अरोड़ा द्वारा सुनाई हुई अंग्रेज़ी की एक प्रेरक कथा पर आधारित। 
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17 June 2017
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