- वीर विनोद छाबड़ा
कल दोपहर खाना खाने
के बाद जो नींद आयी तो शाम को ही टूटी। टूटी नहीं बल्कि तोड़ी गयी। मेमसाब 'चाय चाय' करती हुईं आयीं और
एक झटके में नींद तहस-नहस कर गयीं। मैं उस समय कोई हसीन ख्वाब देख रहा था। यूं तो पचहत्तर
फ़ीसदी ख्वाब मेमोरी से गायब हो जाते हैं और बचे हुए दो घंटे बाद वाश आउट। लेकिन अपवाद
स्वरूप कुछ मष्तिष्क पटल पर टिके रह जाते हैं। कल वाला ख़्वाब भी कुछ ऐसा ही था।
हुआ यों कि मंदिर से
हमारा नया नया स्पोर्ट्स शू चोरी हो गया था। हे भगवान, तेरे दर पर ये कैसा
अंधरे? भक्त भी चोर होने लगे। मैंने पुलिस थाने में रपट लिखाई। अभी
मैं थाने से बाहर निकला ही था कि पुलिस ने चोर को पकड़ लिया। मुझे हैरानी हुई कि लाखों-करोड़ों
की चोरी का मामला तो पुलिस हल कर नहीं पाती और हमारे साढ़े छह सौ वाले जूता चोर को कैसे
पुलिस ने कैसे आधे घंटे में धर दबोचा? इतना इंटरेस्ट लेने
की वजह भी समझ में नहीं आयी। हैरानी तो और भी बढ़ी जब देखा कि वो जूता चोर चोरनी है।
दरोगा जी बड़े जोश में
जोर जोर से ज़मीन पर डंडा और पैर फटका रहे थे - लड़की होकर जूते पहनती है और वो चुरा
कर? जूता तो पकड़ में आ गया, अब जल्दी से यह भी बता कि कल कप्तान साहब की मेमसाब के जो सैंडिल
चुराये थे वो कहां हैं?
अब मेरी समझ में आया
कि जूता चोरी के मामले में दरोगा जी का बढ़-चढ़ कर के इंटरेस्ट लेने का कारण क्या है।
वस्तुतः तलाश तो किसी सैंडिल की थी और हाथ में आया हमारा जूता।
वो लड़की बार बार कह
रही थी - मैंने जूता चोरी नहीं किया है, यह जूते मेरे ही हैं।
आजकल लेडीज़ भी जेंट्स जैसे जूते पहनती हैं। चाहो तो मेरे पापा से पूछ लो। मेरा मोबाईल
वापस करो। मैं उनसे बात करा देते हैं। या आप खुद बात कर लें। उनका मोबाईल नंबर है.....।
दरोगा जी ने बड़ी कातिल
अंदाज़ में लड़की को घूरा और गालियों के बादशाह को भी शर्मिंदा करती हुई एक साथ कई मोटी
गालियों की बौछार कर दी। फिर मूंछों पर ताव देते हुए गुर्राए - हां, हां। क्यों नहीं। अभी
तुम्हारे बाप को बुलाया है। आ ही रहे हैं। दोनों बाप-बेटी को अंदर न कराया तो मूंछ
मुड़ा दूंगा।
तभी एक नीली बत्ती
वाली कार भन्न से आकर रुकी। सिपाही ने इतल्ला दी - सर, कप्तान साहब हैं।
दरोगा जी ने फ़ौरन सर
पर कैप रखी, कॉलर ठीक किया और कप्तान साहब को एक लंबा सलूट मारा।
इतने में वो चोरनी
कप्तान साहब को देखते ही 'पापा पापा' कहती हुई लिपट गयी। दरोगा जी के पैरों तले
से ज़मीन ही खिसक गयी। कभी दायें देखें और कभी बायें। और कप्तान साहब थे कि बेटी की
आंख से आंसू पोंछते हुए दरोगा साहब को बस घूरते ही जा रहे थे।
अब ऐसे माहौल में मैंने
बेहतर यही समझा कि अपना जूता तो भूल ही जाओ। और मैंने यही किया।
-
पुछल्ला - हमारा सपना
तो वहीं टूट गया था जब सैंडिल चोरी के आरोप में जूता पहनते हुए एक हसीन लड़की पकड़ी गयी।
अब लड़की इतनी हसीन थी तो सोचा कि इस सपने को एक हसीन मोड़ दे कर ख़तम करना बेहतर।
---
27 June 2017
---
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
mob 7505663626
रोचक और धाराप्रवाह ...सुंदर post
ReplyDelete