Wednesday, June 28, 2017

सबसे पहले संस्कृत इन्हें पढ़ाओ

- वीर विनोद छाबड़ा
विवाह आदि संस्कार संपन्न कराने के लिए पंडित की ज़रूरत पड़ती है। यह पंडित अपने को ब्राह्मण कहते हैं। ब्राह्मण न भी हो तो भी चलता है। हम तस्दीक तो कर नहीं सकते। सदियों से चलता खानदानी व्यापार हैं इनका।
तमाम संस्कार संस्कृत के श्लोकों के उच्चारण के साथ संपन्न किये जाते हैं। यह भी ठीक है।
लेकिन अगर आप ध्यान सुनिए तो उच्चारण सही नहीं होता है। और श्लोक भी सही नहीं होते। यह भी समझ में नहीं आता कि संस्कृत पढ़ रहा है या इटेलियन या जर्मन। यह संदेह भी बना रहता है कि पंडित जी जन्मदिन पर मरण दिन का श्लोक तो नहीं पढ़ रहे होते हैं।
यह बात मुझे एक ऐसे पंडितजी ने कही जो शीशे के सामने खड़े होकर टीका लगाते हैं। सर्दियों में हफ़्तों नहाते नहीं हैं। कहते खुद को शुद्द ब्राह्मण हैं। एक बार स्वास्तिक का निशान उल्टा लगते हुए पकड़े भी जा चुके हैं। जजमान ने उन्हें पीटा नहीं क्योंकि वो भी कथित ब्राह्मण था।
मेरे विचार से संस्कृत पूजा-पाठ वाले पंडितों को सर्वप्रथम पढ़ानी चाहिए, जिससे कि मंत्रोचारण सही हो ताकि जजमान को अच्छे संस्कार मिलें। अच्छे संस्कार मिलेंगे तभी तो अच्छी सरकार चुनी जायेगी और धरती से भ्रष्टाचार का समूल नाश होगा।

और हां, इन घाट वाले पंडितों को तो कतई न छोड़ा जाए। सही श्लोक होंगे और उच्चारण भी दुरुस्त होगा तो तभी तो मोक्ष प्राप्ति होगी वरना भूत-पिशाच और चुड़ैल-भूतनी बन कर ख़ामख़्वाह ही इधर-उधर भटकते फिरेंगे। जैसा कि आज हो रहा है।
पितर अक्सर सपनों में आते हैं। घंटों इंक्वायरी करते हैं - अरहर की दाल का आज क्या भाव है? कोल केस में डॉ मनमोहन सिंह को जेल हुई कि नहीं? दामादजी को कितने साल की सजा हुई है? दाऊद इब्राहीम को तो फांसी हो ही गई होगी...
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28 June 2017
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