Thursday, June 29, 2017

करे कोई और भरे कोई

-वीर विनोद छाबड़ा
अगर आप सरकारी नौकरी में पूरी लगन और ईमानदारी से काम में जुटे हैं तो यकीन मानिए कि मुसीबतों से भी सबसे ज्यादा साबका आपही को पड़ेगा। कामचोर और निकम्मे मौज उड़ाते हैं। न काम करो और न मुसीबत झेलो।
ये १९९७ की बात है। यों तो बिजली बोर्ड ज्वाइन किये मुझे चौब्बीस साल हो चुके थेसहायक अभियंता इस्टैब्लिशमेंट में तैनात हुए हफ्ता भर ही हुआ था। अभी काम के सिस्टम और तौर-तरीकों को समझ रहा था। पेंडिंग केस भी बहुत थे।
एक दिन डिप्टी सेक्रेटरी दीक्षितजी ने तलब किया और गोरखपुर से प्राप्त एक चार्ज सर्टिफिकेट दिखाया - मेरी याददाश्त के मुताबिक ये सहायक अभियंता दो साल पहले रिटायर हो चुका है। फिर ये दो सप्ताह पहले की डेट का चार्ज सर्टिफिकेट कैसे? चेक करो इस नाम के दो आदमी तो नहीं हैं।
मैंने फौरन रिकॉर्ड चेक किये। दीक्षितजी बिलकुल सही थे। ये आदमी दो साल पहले रिटायर हो चुका था। 
यों दीक्षितजी की याददाश्त अच्छी मानी जाती थी। दरअसल वो फील्ड में लंबे अरसे तक तैनात भी रहे थे। घाट-घाट का पानी पिए थे।
फिर क्या था? तुरंत-फुरंत नोट तैयार किया गया। चेयरमैन से आदेश लेकर संबंधित एरिया चीफ को हुकम दिया गया कि फौरन उस सहायक अभियंता की सेवाएं खत्म करें। साथ ही इन्क्वायरी के आदेश भी हो गए। तमाम आला अधिकारियों ने दीक्षितजी की और दीक्षितजी ने मेरी पीठ थपथपाई। लेकिन असली हीरो दीक्षितजी ही थे। मैं तो उस सेक्शन में नया ही था। अभी हालात और फाइलों की स्टडी ही कर रहा था।
खैर, विजिलेंस इन्क्वायरी शुरू हुई। एक इंस्पेक्टर मेरा बयान दर्ज करके ले गए।
उन्हीं दिनों अंडर सेक्रेटरी के पद पर मेरा प्रमोशन ड्यू था। लेकिन,मेरे विरुद्ध कई ढाई लाख रूपए का मिसलेनियस एडवांस पड़ा होने के कारण मेरा प्रमोशन रुक गया। पता चला कि ये एडवांस इसलिए डाला गया था कि उस दो साल ज्यादा नौकरी करने वाले सहायक अभियंता के विरुद्ध इन्क्वायरी चल रही है। और यदि इन्क्वायरी में मैं दोषी पाया गया तो दो साल ज्यादा नौकरी करने वाले के वेतन आदि के मद में भुगतान की गई रकम की वसूली की जा सके। ये एडवांस दीक्षितजी सहित अन्य कई अधिकारीयों के विरुद्ध भी डाला गया था।

लेकिन मेरी गलती क्या थी? मैं तो उस पीरियड में वहां तैनात भी नहीं था, जब रिटायरमेंट नोटिस जारी किया गया था। गलती तो उनकी थी जिन्होंने रिटायरमेंट नोटिस सर्व नहीं किया। इसमें कई और लोगों की भी मिलीभगत थी। मेरे विरुध एडवांस डालने का मुझे कोई नोटिस भी सर्व नहीं किया गया था।
सरकारी कामकाज का यही तरीका होता है। करे कोई और भरे कोई। भंडाफोड़ करने वाले पहले सूली पर चढ़ा दिए जाते हैं। फिर तय किया जाता है कि कसूरवार कौन है।
मैं दीवारों से सर टकराता रहा। इस बीच बिजली बोर्ड कई भागों में बंट गया। यानि गई भैंस पानी में। मेरे जूनियर प्रोमोट हो गए। मैं विभाग के अजीबो गरीब रवैये से बहुत दुखी और कुपित हुआ। मैंने विभाग को चिठ्ठी लिखी कि मैं कोर्ट जा रहा हूं। कुछ सबुद्धि आई। मेरा प्रमोशन कर दिया गया, लेकिन एडहॉक। मेरा मुंह बंद करने के लिए। अगले तीन साल तक बिना कसूर के मैंने एडहॉक का दंश झेला।

बाद में बेदाग साबित हुआ। तब तक कई लीटर खून जल चुका था और सर से हज़ारों बाल भी कम हो चुके थे। 
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29 June 2017
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