- वीर विनोद छाबड़ा
पति-पत्नी के मध्य सुबह-सुबह की बहस। एक पत्रिका में पढ़ी। पसंद आई। रोचक बनाने
के लिए थोड़ा तड़का लगा कर पेश कर रहा हूं।
पति तैयार हो कर मॉर्निंग वॉक पर निकलने को था।
पत्नी ने आदतन पूछा - जनाब, सुबह- सुबह कहां चल दिए?
पति सहज भाव से बोला - वही डेली का रूटीन, मॉर्निंग वॉक। तुम
भी चलो।
पत्नी तनिक इठलाई - मैं क्यों चलूं?
मुझे कोई बीमारी तो है नहीं। न शुगर और न ब्लड प्रेशर। देखने
में भी ठीक-ठाक हूं, दुबली-पतली। तुम्हारी भाभी की तरह भैंस तो दिखती नहीं हूं।
पति ने बात पर फुल स्टॉप लगाया - ठीक है
बाबा। मत जाओ। मैंने तो ऐसे ही सुझाव दिया था। माइंड फ्रेश हो जाता है। सुबह की वॉक
से।
पत्नी ने हाथ नचाया - तुम्हारे कहने का मतलब मैं खूब समझती हूं। मैं कोई गुस्से
वाली हूं कि माइंड फ्रेश की ज़रूरत पड़े।
पति परेशान हो कर बोला - ओफ्फो। अब बस भी करो। कहा न, मत जाओ। पड़ी रहो घर
में।
पत्नी ने ऐंठ कर कहा - तुम क्या समझते हो मैं आलसी हूं।
पति ने आत्मसमर्पण किया - अरे भई,
मैंने ऐसा तो नहीं कहा। प्लीज़ झगड़ा मत करो।
पत्नी गुस्से से बोली - मैं झगड़ा कर रही हूं? झगड़ालू हूं?
पति ने हाथ जोड़े - बाबा, मैंने ऐसा कब कहा?
पत्नी ने साड़ी का पल्लू कमर में खोंसा - अच्छा। तो तुम्हारा मतलब है कि मैं झूठी
हूं।
पति झुंझलाते हुए बोला - ठीक है,
तुम जीती, मैं हारा। मुझे जाने दो।
पत्नी हैरान हुई - सुनो इनकी। मैंने कोई रास्ता रोका है। जाओ जाओ, बड़े शौक से जाओ।
पति - अच्छा। मैं जा रहा हूं।
पत्नी - हां हां। मुझे मालूम है,
वहां पार्क में जाकर क्या करते हो। महिलाओं को घूरते हो। कोई
नयी बात तो है नहीं।
पति को बहुत गुस्सा आया - तुम्हें मुझ पर शक़ है? अब मैं भी नहीं जाता।
पत्नी ने हाथ नचाया - मैं खूब जानती हूं तुम्हें। दरअसल तुम जाना ही नहीं चाहते।
पति झल्लाया - अब चुप हो जाओ। मेरा सर चकरा है।
पत्नी सर पकड़ कर बैठ गई - तुम सिर्फ़ अपने बारे में सोचते हो। मेरे स्वास्थ्य की
फ़िक्र तो है नहीं। सुबह से शाम तक रसोई में ही खड़ी रहती हूं।
पति ने पागलखाने को फ़ोन किया - एम्बुलेंस भेज दीजिये। मेरा भेजा ख़राब हो गया है।
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इतिश्री मॉर्निंग वॉक!
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23 June 2017
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Lucknow - 226016
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