-वीर विनोद छाबड़ा
जेठ महीने का चौथा
और आख़िरी बड़ा मंगल। क़रीब पांच-छह हज़ार भंडारे आयोजित होंगे। पूड़ी और आलू सब्जी और कहीं
सूजी का हलवा और चावल के साथ कढ़ी। लखनऊ वालों और लखनऊ में आज पधारे मेहमानों के मौज।
जम कर सेवन करें।
जुगाली करने वालों
की भी मौज है। इसी बहाने दो-तीन दिन के नाश्ता-पानी का इंतज़ाम हो जाता है।
लेकिन आज का मंगल रहेगा
इधर हाईस्कूल-इंटरमीडियेट और अन्य परीक्षाओं में उत्तीर्ण छात्र/छात्राओं के नाम। बजरंगबली
के दर्शनार्थ भारी भीड़ उमड़ेगी। उन्हें धन्यवाद देने। और आगे के लिए सीट बुक करने के
लिए भी। जिनके रिजल्ट नहीं निकले हैं, उन्हें बजरंगबली का
ही सहारा है।
परीक्षा आदि के मामले
में यों भी बजरंगबली छात्रों के टॉप फेवरिट रहे हैं। और इधर बजरंगबली भी अपने भक्तों
का पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं। स्कूल कॉलेजों की और जाते हुए कोई रास्ता ऐसा नहीं मिलेगा,
जहां बजरंगबली विद्यमान न हों। परीक्षा कक्ष में जब पर्चा हाथ में आता है,
तब आंख बंद कर सबसे पहले बजरंगबली का ही तो नाम लिया जाता है।
छात्रों का बजरंगबली
से प्यार आज का नहीं है, बहुत पुराना है। हमें अपना चालीस-पैंतालिस साल पहले वाला ज़माना
याद आता है। आड़े वक़्त बजरंगबली ने साथ दिया। पेपर में जब कोई टेड़ा-मेड़ा सवाल आया तो
आंख बंद बजरंगबली को याद किया। पिछली रात पढ़े हुए पाठ को फोकस किया। ओह, याद आ गया। बोल बजरंगबली
की जय। थैंक्स, बाल बाल बचा लिया आपने।
हनुमान सेतु वाले बजरंगबली
हमेशा टॉप पर रहे हैं। एक तो इसलिए कि यूनिवर्सिटी के बहुत पास हैं। दूसरा छात्रों
को आशीर्वाद देने की उनकी सर्विस राउंड दि क्लाक चलती है। पंडित जी प्रसाद झोली भर
देने में पीछे नहीं रहते हैं। और प्रसाद चढाने वाले भी खुश। पंडित जी ने कभी मुट्ठी
भर कर प्रसाद नहीं काटा। बस हनुमान जी सिर्फ दिखा दिया कि देखिये भक्त आपके लिए क्या
और कितना लाये हैं। बाकी का न्याय आपको करना है।
कल और आज में फ़र्क
यह है कि कल के बजरंगबली थोड़ा सख्त थे। बहुत हार्ड मार्किंग करते थे। बामुश्किल तीस-चालीस
प्रतिशत को ही उत्तीर्ण किया। अब तो पच्चासी-नब्बे के आस-पास पास रिज़ल्ट आता है। अस्सी
से सतानवे-अठानवे प्रतिशत प्राप्तांक वालों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। हैरानी
तो तब होती है जब बजरंगी जी 'ऐसों-वैसों' को भी लिफ़्ट कर देते
हैं। जबकि हमारे ज़माने में हमारे एक पड़ोसी बहुत मेहनत करने के बावजूद सातवें प्रयास
में हाई स्कूल पास कर पाए थे।
दरअसल, जनसंख्या में बहुत
वृद्धि हुई है। उसी अनुपात में मंदिरों और भक्तगणों की संख्या व आस्था भी बढ़ी है। भगवान
को भी बदल दिया गया है। गरीब लोग ज्यादा घंटी बजाने के बावजूद ज्यादा गरीब हुए हैं
और अमीर की झोली बिना घंटी बजाये भरती रहती है। हमारे ज़माने में तो गरीब गाता था -
गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा, तुम एक पैसा दोगे,
वो दस लाख देगा। आज का गरीब भगवान से अरदास कर रहा रहा है - सरकार से हमारा पंद्रह
लाख निकलवा दो।
पहले मंदिर के सामने
से गुजरते हुये हम एक मज़बूत ज़ंज़ीर-ताले से साईकिल को बिजली या टेलीफोन से बांध देते
थे। ऐसा इसलिए क्योंकि हमें याद है कि जब हम हाई स्कूल में थे तो साइकिल भगवान भरोसे
छोड़ दर्शनार्थ भीतर गए। लौट कर आये तो साइकिल गायब। दूसरी बार बीए में फिर भक्त के
भेष में एक चोर ने साइकिल पर हाथ साफ़ कर गए। लेकिन हमारी आस्था कम नहीं हुई। परिणाम
बजरंगबली की कृपा से तीसरी साइकिल मिल गयी।
बहरहाल, हम बता रहे थे कि साइकिल
सुरक्षित स्थान खड़ी करने के पश्चात हम भीतर जाकर आंख बंद कर दंडवत प्रणाम करते थे।
फिर सात बार परिक्रमा करते। टीका लगवाते। चरणामत और तत्पश्चात प्रसाद ग्रहण करते।
अब आज का दिन छोड़ दीजिये
तो अन्य दिनों में ज्यादातर छात्र बाईक पर बैठे-बैठे ‘हाय हनु’
कह कर चलते बनते हैं।
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06-06-2017 mob 7505663626
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Lucknow - 226016
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