-वीर विनोद छाबड़ा
एक छोटा सा दिलचस्प वाक्या पेश है जिससे पता चलता है नियति के खेल कितने निराले
और क्रूर हैं।
चालीस और पचास के दशक में मशहूर संगीतकार जोड़ी थी पं.हुस्नलाल-भगतराम। फ़िल्मी दुनिया
की पहली संगीतकार जोड़ी। उनके आर्केस्ट्रा में शंकर नाम का नौजवान सहायक होता था। संगीत
का अच्छा ज्ञान था। वो अच्छा गाता भी था और ढोलक तो
बहुत ही अच्छी बजाता था। प्यार
की जीत (१९४८) में शंकर ने तीनो ही काम किये। बहुत ही कामयाब फिल्म रही। लेकिन त्रासदी
यह रहे कि शंकर ने एक और नौजवान संगीतकार जयकिशन के साथ शंकर-जयकिशन की जोड़ी बना ली।
जैसे-जैसे ये कामयाबी के शिखर पर चढ़ते रहे हुस्नलाल-भगतराम परली तरफ से नीचे उतरते
चले गए। बरसों बाद दोनों में बिखराव हुए और दुर्दिन के दिन आये। उस वक़्त भगतराम को
अपने कभी चेले रहे शंकर के शंकर-जयकिशन के आर्केस्ट्रा में हारमोनियम बजाना पड़ा।
नयी पीढ़ी ने शायद जालंधर में जन्मे हुस्नलाल-भगतराम का नाम नहीं सुना होगा। लेकिन
उनकी बनायीं धुनें ज़रूर सुनी होंगी - चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात.…वो पास रहें या दूर
रहें दिल में समाये रहते हैं.…मांगी मोहब्बत पायी जुदाई, दुहाई है दुहाई…तेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया ओ परदेसिया…ओ दूर जाने वाले…एक दिल के टुकड़े हज़ार
हुए कोई यहाँ गिरा कोई वहां गिरा…जो दिल में ख़ुशी बन कर आये…दो दिलों को दुनिया मिलने नहीं देती…आंखों में आंसू होटों पे फरयाद ले चले.…क्या बताएं कि मोहब्बत की कहानी क्या है.… अपना ही घर लुटाने
दीवाना जा रहा है.…बिगड़ी बनाने वाले…पास आके भी हम दूर हुए.…आंख का तारा प्राणों से प्यारा …
और राजेंद्र कृष्ण का लिखा रफ़ी की आवाज़ में सबसे प्यारा गैर-फ़िल्मी गाना - सुनो
सुनो ऐ दुनिया वालों बापू की ये अमर कहानी…
सुरैया, लता, अमीरबाई कर्नाटकी, जोहराबाई अंबालेवाली, गीतादत्त, आशा भोंसले, सुमन कल्याणपुर, शमशाद बेगम, निर्मला देवी, रफ़ी, जीएम दुर्रानी, तलत महमूद आदि अनेक जाने-माने गायकों ने हुस्नलाल-भगतराम के संगीत पर आवाज़ बिखेरी
और राजेंद्र कृष्ण, मजरूह, सरशर सैलानी ने कलाम दिए।
क़मर जलालाबादी के साथ हुस्नलाल भगतराम की जोड़ी खूब जमी। कुल चौबीस फिल्मों में
१०४ गाने लिखे।
सुप्रसिद्ध संगीतकार पंडित अमरनाथ ने छोटे भाई होते थे हुस्नलाल और भगतराम। इन
दोनों का जन्म क्रमशः १९१४ और १९२० में हुआ। हुस्नलाल वॉयलिन के और भगतराम हारमोनियम
के एक्सपर्ट थे। पं.दिलीप चंद्र वेदी से संगीत की ट्रेनिंग ली।
१९४४ में 'चांद' से हुस्नलाल-भगतराम की जोड़ी नक्षत्र पर उभरी। एक रिकॉर्ड बना -भारतीय सिनेमा की
पहली संगीतकार जोड़ी।
इनका सफ़र १९४९-५० में पीक पर था-१९ फ़िल्में। लेकिन इसके बाद शंकर-जयकिशन, सी.रामचंद्र, ओपी नैय्यर आदि के
आगमन से उनकी बुलंदी पहले जैसी नहीं रही। सफ़र की रफ़्तार बहुत धीमीहो गई। बी और सी ग्रेड
की फ़िल्में भी करनी पड़ी। और साठ का दशक आते-आते इनका सितारा गर्दिश में डूब गया। आपसी
विवाद भी इसका एक प्रमुख कारण बना।
हुस्नलाल दिल्ली चले गए और भगतराम बंबई में रह कर छोटा-मोटा काम करने लगे। इन्होने
लगभग ५७ फ़िल्में की। कुछ प्रमुख हैं -मीना बाज़ार, मिर्ज़ा-साहिबां अफ़साना
(बीआर चोपड़ा की पहली फिल्म), अमर कहानी, अप्सरा, प्यार की जीत, सनम, बड़ी बहन, बालम, अदल-ए-जहाँगीर, छोटी भाभी आदि।
वक़्त खत्म हो जाने के बाद पं.हुस्नलाल दिल्ली आ गए। पहाड़गंज में एक कमरा किराये पे लेकर रहने लगे। २८ दिसंबर १९६८
की सुबह मॉर्निंग वॉक से लौट रहे थे। हार्ट फेल हो गया। राहगीर उन्हें अस्पताल ले गए।
डॉक्टर ने मुआइना किया और रिपोर्ट में लिखा - लावारिस। ब्राट डेड। १९७३ में भगतराम
की भी मृत्यु हो गई।
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१४-०६-२०१५
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