Tuesday, June 9, 2015

सी०रामचंद्र- ऐ मेरे वतन ले लोगों!

-वीर विनोद छाबड़ा
सी०रामचंद्र- ऐ मेरे वतन ले लोगों!
चितलकर, अण्णा साहेब और सी० रामचंद्र। यह तीन नाम एक ही व्यक्ति के हैं। महाराष्ट्र के जिला अहमदनगर के पुतंबा कसबे में जन्मे संगीतकार सी०रामचंद्र ने अपना कैरियर तमिल फिल्म 'नागानंद' से बतौर हीरो शुरू किया। फ्लॉप हुए। फिल्मों में संगीत देने लगे। तमिल, मराठी और फिर हिंदी फिल्मों में आये।

भगवान दादा की 'सुखी जीवन' (१९४३) में नोटिस हुए। पराकाष्ठा पर पहुंचे 'अनारकली' (१९५३) में। यह ज़िंदगी उसी की है.ज़िंदगी प्यार की दो चार घडी होती है.जाग दर्दे इश्क़ जाग
सी०रामचंद्र का कैरियर अनेक अजीबो-गरीब घटनाओं से भरा पड़ा है। मशहूर फ़िल्मकार और अभिनेता गजानंद जागीरदार एक फिल्म बना रहे थे। किसी ने उनको सी०रामचंद्र का नाम सुझाया। सी०रामचंद्र ने कई धुनें सुनायीं। जागीरदार बोले -अच्छी तो हैं। लेकिन वो एक नया संगीतकार चितलकर छाया हुआ है। उसकी तरह कुछ ताजा सुनाओ।
सी०रामचंद्र ने दूसरे दिन कुछ और धुनें सुनायीं। जागीरदार प्रसन्न नहीं हुए- कुछ और चितलकर जैसा लाओ।
सी०रामचंद्र अबकी तीन दिन बाद गए। इस बार उन्होंने पहले दिन वाली धुनें सुनायीं और बताया कि ये चितलकर जैसी हैं।
जागीरदार बोले - हां अब ठीक हैं। तब सी० रामचन्द्र ने उन्हें बताया वही चितलकर हैं।
अवसाद के दौर से निकले दिलीप कुमार को फ़ौरन कोई हलकी-फुल्की सुखांत कॉमेडी चाहिए थी। एसएम नायडू ने उन्हें 'आज़ाद'(१९५५) ऑफर की। दिलीप उछल पड़े। संगीत के लिए नौशाद से बात हुई। उन्होंने मना कर दिया। मुंहमांगी कीमत ऑफर हुई। नौशाद बिगड़ गए - कोई बनिए की दुकान समझ रखी है क्या? मैं क्या कोई भी नहीं कर सकता।
सी०रामचन्द्र ने सुना। उन्हें चैलेंज पसंद थे। कुछ दिन में छह गाने रिकॉर्ड हो गए। अपलम-चपलम, चप लायी रे तेरी दुनिया को छोड़ कर.कितना हसीं है या मौसमये दूसरा गाना लता के साथ उन्होंने गाया था।

एक और मशहूर वाक्या। २७ जनवरी को दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में लताजी ने 'ऐ मेरे वतन के लोगों' लाइव परफॉर्म किया। संगीत सी०रामचंद्र ने दिया था। मूल प्लान में पहली च्वॉइस नौशाद और फिर शंकर-जयकिशन और फिर मदन मोहन थे। लेकिन संयोजक दिलीप कुमार ने सी.रामचंद्र पर उंगली रखी। फटाफट कविवर प्रदीप ने गीत लिखा। लेकिन गायेगा कौन? सी०रामचंद्र की उन दिनों लता से ज़बरदस्त तनातनी थी। अतः आशा भोंसले के साथ रिहर्सल हुई। थी। फ्लाईट भी बुक हो गयी। लेकिन प्रदीप लता को चाहते थे। इधर लता इस ऐतिहासिक मौके को किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहती थीं। सी०रामचंद्र को मतभेद भी भुला देने का संदेशा भी भेज दिया। आशा को समझा-बुझा कर ऐन मौके पर बीमारी के बहाने बाहर करा दिया। सी० रामचंद्र मजबूर हो गए। इस गाने के प्रभाव के बारे में दुनिया जानती है। नेहरूजी की आंख भी भर आई।
सी.रामचंद्र ने १०४ फिल्मों में संगीत दिया। यादगार हैं - पतंगा, पहली झलक, समाधी, यास्मीन, शारदा, आज़ाद, अलबेला, बारिश, नदिया के पार, नवरंगपैगाम, स्त्री, तलाक, अमरदीप, आशा, अनारकली, तस्वीर, बहुरानी, देवता, इंसानियत, नास्तिक, ज़िंदगी और मौत, रूठा न करो आदि।
सी०रामचंद्र कितने उम्दा संगीतकार थे इसका अंदाज़ा उनके कंपोज़ इन गानों से लगता है - मेरे पिया गए रंगूनआधा है चंद्रमा रात आधीशाम ढ़ले खिड़की तले.ईना मीना डीकाशोला जो भड़केगोरी सूरत दिल के कालेदिल लगा के हम ये समझेमुझ पर इलज़ाम बेवफ़ाई का है.गोरे गोरे ओ बांके छोरेइंसान का इंसान से हो भाईचारादेख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान
सरकारें आई और चली गई। लेकिन सी०रामचंद्र को कोई ईनाम नहीं मिला।
०५ जनवरी १९८२ को पेप्टिक अल्सर के कारण उनकी इहलीला समाप्त हो गई। 
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-वीर विनोद छाबड़ा 
०९-०६-२०१५ मो. ७५०५६६३६२६ 
डी-२२९० इंदिरा नगर लखनऊ -२२६०१६ 

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