Friday, June 19, 2015

लाइफटाइम अचीवमेंट!

-वीर विनोद छाबड़ा
आख़ीर वही हुआ जो पहले नहीं हुआ था।
रात बैचेनी शुरू हुई। फिर तीन बजे ढेर उल्टी। आराम मिला। सोचा अब नींद आ जाएगी। ज्यादा घी-तेल और मसालेदार खाने के कारण पहले भी कई बार हो चुका है। कोई नयी बात तो है नहीं।
आंख लगी ही थी कि फिर पलटी। और फिर एक लंबा सिलसिला। हमने गौर किया रात का खाया-पिया सब बाहर आया ही पिछले चार दिनों का खाया भी बाहर हो गया।

मेरा अपना कमरा और अटैच टॉयलेट-बाथरूम है। मेमसाब को सुबह छह बजे ख़बर हुई। वही हुआ जो होना था। डांट-फ़टकार। रात देर तक क्यों जगते हो? क्या मिलता है फेस बुक पर? कल शाम दोस्त के घर गए थे। वहां क्या खाया था? बेकरी का सामान क्यों खाते हो? कोल्ड ड्रिंक क्यों पीते हो? एक-एक करके सब बाजारू आइटम गिना डाले। लेकिन अपना बनाया हुआ एक भी व्यंजन न बताया।
मेमसाब ने अपना घरेलू इलाज़ शुरू किया। उलटी रोकने वाली टेबलेट एक घूंट पानी के साथ। कोई असर नहीं हुआ। नमक चीनी का घोल। वो भी बाहर आ गया। बीपी - हाइपरटेंशन की दवा भी नहीं ले पाया। बिना नाश्ता के कैसे लेता? पानी के दो घूंट तक तो रुक नहीं पा रहे थे। सबसे प्रिय पेय चाय तो बहुत दूर की बात।
किस डॉक्टर के पास चलें? आख़िर उस डॉक्टर पर मोहर लगी जो घंटे भर में ठीक कर देता है।
अब तक कमज़ोरी के कारण थकान बहुत आ चुकी थी। लेकिन कार ड्राइव करने की हिम्मत थी। मेमसाब ने मना कर दिया। रास्ते में भी उल्टी हुई तो? कहीं ठोक दोगे? मैं कैसे सम्भालूंगी? शुक्र है, मेमसाब को मेरी चिंता हुई! क्राइसिस में मेमसाब की फ़िक्र देखने लायक होती है। गर्व हुआ। गुड वाइफ।
एक दोस्त को फ़ोन किया। पता चला कि गाड़ी उनकी मेमसाब ले गयीं हैं। एक और को फ़ोन किया तो एंगेज मिला। तीसरे ने अटेंड ही नहीं किया। मेमसाब ने कहा फलाने को लगाओ। मैंने कहा - आये दिन तो वह अपनी गाड़ी ठोंकता फिरता है।
कुछ और फ़ोन ट्राई किये। सब एंगेज या आउट ऑफ़ रीच। भनभनाहट कि टाइम पर कोई नहीं मिलता। इस बीच उल्टियां भी रह-रह कर हो रही थी। अब खाया-पिया सब बाहर हो चुका था। सिर्फ़ पानी ही निकल  रहा था। मगर कमज़ोरी बहुत ज्यादा हो चुकी थी।    
इतने में मेमसाब पड़ोसी मित्र विजय भटनागर को बुला लाई। उसके पास न तो कार थी और न ड्राइविंग जाने। लेकिन वो सबसे समझदार निकला। मैन इन क्राइसिस। इतना टाइम क्यों वेस्ट कर रहे हो? कार वाला मिला भी तो उसका पेट्रोल फुंकवाओगे। वो ऑटो ले आया।
ऑफिस का टाइम। भीड़-भाड़ और जाम। कई जगह तो गऊ-माताओं का बीच सड़क पर डेरा। जैसे-तैसे पहुंचे डॉक्टर तक। वहां भी भीड़। नंबर लगा था। मैंने कहा तबियत ज्यादा ख़राब है। अटेंडेंट ने भी साथ दिया। लेकिन एक साब पसड़ गए। यहां सबकी तबियत ख़राब है। कोई शौक़िया नहीं बैठे। डॉक्टर ने सुन लिया। भला हो उसका कि फौरन बुला लिया।
इससे पहले कि डॉक्टर कुछ पूछे मेमसाब ने एक सांस में पूरा किस्सा बयां कर दिया कि तीन दिन पहले लगातार दो पार्टियों में गए थे।
डॉक्टर का पहला सवाल - ड्रिंक वगैरह किया।
यहां भी सर्टिफिकेट मेमसाब ने इशू किया - नहीं, मैं साथ थी। वैसे भी ये पीते नहीं।
उसके बाद फिर वही हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था। लाइफ में पहली बार भर्ती हुआ। इंट्रावीनस इंजेक्शन, वीगो और ड्रिप। मुझे ऐसा लगा कि किसी बड़े समारोह में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड मिल रहा है।
मुझे तो कुछ भी खाने को मना था। अस्पताल के पास रहने वाले दोस्त उदयवीर को फ़ोन किया। वो मेमसाब के लिए भोजन ले आया। बेटी घर में अकेली थी। एक और मित्र दीपक को फ़ोन किया ऑफिस से लौटते हुए मेमसाब को पिक करके घर पर ड्राप करदे। आश्चर्य यह कि सुबह इनमें किसी का मोबाइल नहीं लग रहा था।

रात नौ डॉक्टर राउंड पर आये। हाल-चाल पूछा।
मैंने कहा बिलकुल ठीक। भूख लग रही है।
वो बोले तो घर जाकर खाना खाओ। लेकिन हल्का। मैं बाहर आया।
ऑटो पकड़ा और सीधा घर। पतली मूंग की दाल मेरा इंतज़ार कर रही थी। रात गहरी नींद आई। सुबह मनपसंद पार्लेजी के दो बिस्कुट, आधे कप चाय के साथ। थोड़ी देर बाद नाश्ता, दो सिके हुए ब्रेड पीस। दोपहर में खिचड़ी और लौकी। अभी ये सिलसिला अगले दो दिन आगे चलने की पूरी संभावना है। और घर में क़ैद भी।  
मुझे वो दिन याद हो आये जब ऐसा भोजन मेमसाब के नाराज़ होने पर बना।
कान पकडे कि आइंदा किसी की भरी हुई प्लेट के आइटम नहीं गिनूंगा। न किसी को सलाह दूंगा कि क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। सिर्फ़ अपनी प्लेट पर ही ध्यान दूंगा। न किसी के ड्रिप लगी देख कर घमंड करूंगा कि मैं अब तक बचा हुआ हूं। 
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