प्रस्तुति -वीर विनोद छाबड़ा
अरब देश में बुख़ारी नाम के एक ज्ञानी-ध्यानी रहते थे। वो अपने ईमानदारी और साफगोई
के लिए दूर दूर तक प्रसिद्ध थे। रोज़ सैकड़ों लोग उनसे सलाह-मशविरा करने आते थे।
एक बार बुखारी को समुंदर पार मुल्क से बुलावा आया कि अपने नेक ख्यालात और तजुर्बों
से इस मुल्क के बंदो को भी अमीर करें।
बुखारी निकल पड़े समुंद्री जहाज़ से। अपने नेक ख़यालात की वज़ह से उन्होंने बहुत जल्दी
उस जहाज के बाकी मुसाफ़िरों के दिलों में भी जगह बना ली।
उसमें एक मुसाफ़िर उनके बहुत करीब आ गया। वो भी बुखारी की तरह नेक और तालीमी बंदा
बनना चाहता था। बुखारी भी उस पर बहुत यकीन करने लगे थे।
नज़दीकियों की वज़ह से वो मुसाफ़िर बहुत जल्दी बुखारी के बारे में सब कुछ जान गया।
उसे यह भी पता चल गया कि बुखारी के पास सफ़र खर्च के लिए एक हज़ार दीनारें भी हैं जो
एक थैली में बंद हैं।
दौलत देख उस मुसाफ़िर का मन बेईमान हो गया। उसने उन दीनारों को हड़पने की एक चाकचौबंद
साज़िश रची।
अगली सुबह वो उठ कर चीखने-चिल्लाने लगा - हाय मैं बर्बाद हो गया। लुट गया। किसी
ने मेरी एक हज़ार दीनारें चुरा लीं हैं।
जहाज पर हड़कंप मच गया। सारे मुसाफ़िर एक-दूसरे को शक़ की निग़ाह से देखने लगे।
जहाज के मुलाज़िमों ने उस मुसाफ़िर से कहा - घबड़ा मत। जो भी चोर है। इसी जहाज में
है। वो बच कर जा नहीं सकता। अभी सबकी तलाशी हो जाती है।
बुखारी समेत तमाम मुसाफ़िर भी इसके लिए तैयार हो गए। इस पर उस मुसाफ़िर को हैरत हुई
- बुखारी इतनी जल्दी कैसे तैयार हो गए?
बहरहाल जब बुखारी का नंबर आया तो मुलाज़िमों ने उनकी तलाशी लेने से इंकार कर दिया
- आप जैसे नेक बंदे की तलाशी हम नहीं ले सकते।
मगर बुखारी ने सख्ती से कहा - नहीं भाई। मैं अनोखा नहीं। एक आम आदमी हूं। मेरी
तलाशी ज़रूर लीजिये।
बहुत ज़ोर देने पर बुखारी के तलाशी हुई। मगर चंद दीनारों के सिवा कुछ न निकला।
उस मुसाफ़िर को बड़ी हैरानी हुई - आखिर कहां चली गयी हज़ार दीनारों वाली वो थैली?
उसने डरते-डरते बुखारी से पूछा - मुझे यकीन नहीं हो रहा। आखिर वो थैली गयी कहां?
बुखारी मुस्कुराये - दोस्त, अगर मेरे सामान में से वो थैली बरामद हो जाती तो मेरी इज़्ज़त, ईमानदारी और मेरी सफाई
के मद्देनज़र मेरा कुछ न बिगड़ता। मगर शक़ के घेरे में ज़रूर हमेशा रहता। ज़िंदगी में मैंने
कड़ी मेहनत से ईमानदारी और इज़्ज़त कमाई है। इन पर आंच आये या धब्बा लगे यह मुझे किसी
कीमत पर मंज़ूर नहीं। इसे मैंने दौलत से नहीं खरीदा था। दौलत तो मैं फिर बेशुमार कमा
लूंगा। इसलिए मैंने वो थैली समुंदर में फ़ेंक दी।
वो मुसाफ़िर बेहद शर्मिंदा हुआ। और बुखारी का हमेशा के लिए मुरीद बन गया।
नोट - दादा-दादी, नानी-नाना और माता-पिता की पोटली की कहानियां जो आज इधर-उधर यूं ही बिखरी पड़ी हैं।
०३-०६-२०१५ मो. ७५०५६६३६२६
डी-२२९०, इंदिरा नगर, लखनऊ - २२६०१६
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