-वीर विनोद छाबड़ा
मुझे याद पड़ता है कि पहली बार मैंने मैगी १९८३ या १९८४ में खायी थी। तब दो या ढाई
रूपये का पैकेट था। अंडे की भुजिया के साथ मिला कर खाते थे। बड़ा मज़ा आता था। साथ ही
महसूस हुआ था कि हम खाने-पीने के मामले में पाश्चात्य जगत के साथ एक और कदम आगे चले
हैं। समाज का निम्नआय वर्ग भी अब कम पैसे में उच्च वर्ग की बराबरी कर सकता है।
कुछ समय बाद टॉप रैमन नाम से नूडल्स आये। प्रतिस्पर्धा चली। कभी स्टील की कटोरी
और कभी प्लेट। छोटी-छोटी प्लास्टिक/मेटल की कारें भी। पीछे दौड़ाओ तो सरपट आगे भागती
थीं। और भी कई कंपनियां आई। लेकिन दौड़ में मैगी के सामने कोई टिक नहीं पाया। कई की
दुकान बढ़ गयी।
ऐसा भी हुआ कि नूडल्स किसी भी कंपनी के हों, नाम कुछ भी हो, लेकिन कहा उन्हें भी
मैगी ही गया।
मेहमानों का स्वागत मैगी से किया जाना ऊंची सोच के स्टेटस सिंबल को दर्शाता था।
फिर तरह-तरह के फ्लेवर वाली मैगी।
कई घरों में तो बच्चों को मैगी के अलावा कुछ और खाते ही नहीं देखा। एक पूरी पीढ़ी
जवान हो गयी मैगी खाते-खाते और दूसरी किशोरावस्था में है। यकीनन उन्हें धक्का लगा होगा
यह जान कर कि उनकी जान से प्यारी मैगी में कतिपय ऐसे गुण पाये गए हैं जो सरदर्द, स्किन एलर्जी, गले में जलन, पेटदर्द, दिमागी परेशानी, किडनी फेल होने का
सबब बन सकते हैं। हालांकि आज तक ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि किसी को उक्त वर्णित
बीमारी मैगी के कारण ही हुई है। यह भी नहीं मालूम कि कितनी मात्रा में और कितने दिन
लगातार मैगी खाने से शरीर को नुकसान होगा। यह भी तय नहीं हो पाया है कि मैगी में नुकसान
पहुंचाने वाले तत्व मिलावट के कारण हैं या प्राकृतिक।
फिलहाल तो मैगी को कई राज्यों में प्रतिबंधित कर दिया गया है। उसके प्रति किसी
ने भी सहानुभूति नहीं दिखाई है।
मुझे भी मैगी से कोई सहानुभूति नहीं है। अपने समोसे के समक्ष मैं मैगी को चौथे
-पांचवे नंबर पर ही रखता रहा। अगर मैगी के
नमूने मानकों पर फेल हैं तो मैगी पूर्णतया प्रतिबंधित होनी ही चाहिये। और साथ ही सजा
भी मिलनी चाहिये।
लेकिन सिर्फ़ मैगी ही क्यों? नूडल्स बनाने वाली कई अन्य कंपनियां भी हैं। और सिर्फ़ नूडल्स ही क्यों? चिप्स और कुरकुरे के
भी नमूने लेकर परिक्षण किया जाए। अलावा इसके इनके देसी वर्जन भी लोकल मार्किट में खूब
बिकते हैं। ज़रा उन पर ध्यान दिया जाये।
और यह गोलगप्पे का पानी और आलू की टिक्की वाले। समोसे और जलेबी-इमरती वाले। सब
नाली के किनारे ठेला लगाये मिलते हैं। गन्ने और तमाम तरह के फलों का जूस बेचने वाले।
तरबूज को इंजेक्शन देकर लाल करने वाले। लाल-पीली तरह-तरह की मिठाईयां। ज़िंदगी से खिलवाड़
करने वाला हर आईटम बंद होना चाहिये।
०४-०६-२०१५ मो. ७५०५६६३६२६
डी-२२९० इंदिरा नगर लखनऊ-२२६०१६
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