Saturday, August 29, 2015

आई एम मोर क्लेवर देन यू।

-वीर विनोद छाबड़ा
जब हमने होश संभाला तो घर में उर्दू का माहौल पाया। पिताजी अंग्रेज़ों के ज़माने के दसवां दरजा पास थे मगर उर्दू और हिंदी के साथ अंग्रेज़ी के नावेल फर्राटे से पढ़ते थे और बोलते भी थे। हमें कई अंग्रेज़ी फ़िल्में दिखायीं
और अर्थ भी बताते रहे।
इसके अलावा क्रिकेट और सिनेमा के शौक ने अंग्रेज़ी में रनिंग कमेंटरी, अख़बार में स्कोर बोर्ड और मैच का तब्सरा, सिनेमा के विज्ञापन पढ़ने को बाध्य किया। इंटरमीडिएट तक अंग्रेज़ी सब्जेक्ट भी रहा। लेकिन पुरखों और हमारे ज़माने की अंग्रेज़ी में ज़मीन-आसमान का अंतर रहा। जैसे-तैसे हिंदी मीडियम में एमए किया। इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में नौकरी की। १९९० में जनता दल की  सरकार आने से पहले तक काम-काज की भाषा अंग्रेज़ी रही।
मक़सद ये बताना है कि काम चलाऊ से थोड़ा बेहतर अंग्रेज़ी का ज्ञान रहा है हमें।
जब डबल एमए पास पत्नी के अंग्रेज़ी ज्ञान का हमें ज्ञान हुआ तो थोड़ी राहत मिली। वो मेट पर रैट, कैट आफ्टर रैट, सिट ऑन चेयर, टेबुल पे डिनर रेडी टाइप की अंग्रेज़ी में प्रवीण थीं। कभी-कभी 'एज़ ए मैटर ऑफ़ फैक्ट' भी बोल देती थी। इसी ज्ञान की धमक पर ससुराल में ज़बरदस्त इज़्ज़त मिली। अड़ोस-पड़ोस वालियां भी दहशत में रहीं।
ये बात नब्बे के दशक के मध्य की है। बेटा एक अंग्रेज़ी स्कूल में था। सातवें या आठवें में रहा होगा।
बलिहारी अंग्रेज़ी स्कूलों की और अंग्रेज़ी का एक सेंटेंस भी ढंग से न बोल सकने वाली हमारी मेमसाब की। बेटे को पढ़ाने में उन्हें ज़रा भी दिक्कत नहीं होती थी।
एक दिन स्कूल से बेटे को 'लीडर ऑफ़ इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल' पर निबंध लिखने को कहा गया।
मेमसाब बोली, पापा की अंग्रेज़ी अच्छी है उनसे हेल्प ले लो।
बड़ी ख़ुशी हुई कि मेमसाब ने कहीं तो हमारी लियाकत का लोहा माना। हमने बेटे को बड़ी ख़ुशी और उत्साह से निबंध लिखवा दिया। आखिर में ये भी लिखवा दिया -हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है। 
टीचर ने रिमार्क लिखा -वेरी पूअर। री-राईट।
अब मेमसाब की बारी थी। उस दिन ज़बरदस्त क्लास लगी। क्या गत हुई हमारी और हमारी अंग्रेज़ी की, हम ही जानते हैं।
हमने लाख समझाया -हमारी अंग्रेज़ी हाई-क्लास है। टीचर को समझ में नहीं आई होगी।
लेकिन सब बेकार। मेमसाब को तो हमेशा से हमारे कुल ज्ञान पर शक़ रहा। अब स्कूल वालों ने भी पुष्टि कर दी। बेटे की नज़रों में भी गिर गया - मम्मी ठीक कहती हैं। पापा को कुछ भी नहीं आता।
बहरहाल, मेमसाब के अल्प अंग्रेज़ी ज्ञान की मदद से बेटे ने फिर से निबंध लिखा।
टीचर का रिमार्क आया -एक्सलेंट ।
हमने माथा पीट लिया। राम मिलाइंन जोड़ी एक अंधा,एक कोढ़ी। अंधेर नगरी,चौपट राजा। कई कहावतें और मिसालें मेरे दिमाग में कई दिन तक गर्दिश करती रहीं।

इस घटना से हमें अपूर्व नुकसान और मेमसाब को फ़ायदा ये हुआ कि उनकी रोज़मर्रा की अंग्रेज़ी में एक और पंक्ति जुड़ गयी - एज़ ए मैटर ऑफ़ फैक्ट आईएम मोर इंटेलीजेंट एंड क्लेवर देन यू।
मित्रों आजकल जिस तरह की स्पोकन इंग्लिश मोटी रक़म वसूल कर पढ़ाई, सिखाई और रटाई जा रही है उससे ज्यादा तो हमारे ज़माने के लड़के अंग्रेज़ी फ़िल्में देख देख कर और नेशनल हेराल्ड और पायनियर के स्पोर्ट्स पेज पर छपी क्रिकेट की ख़बर के हिज़्ज़े हिज़्ज़े पढ़ कर कर सीख जाते थे। कई होनहार तो नेशनल हेराल्ड के एडिटर चेल्लापति राव का एडिटोरियल पढ़ कर आईएएस का इम्तिहान पास कर गए।
हमारे दौर में इस तरह के एकलव्य आये दिन पैदा होते रहे।
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