Friday, August 7, 2015

जब वो जूता चोरी की रपट लिखाने पहुंचे।

-वीर विनोद छाबड़ा
पड़ोसी मित्र का चेहरा उतरा हुआ है। उन्होंने बताया।
कल ही नया-नया जूता खरीदा था। पूरे १९९५ का। पैंट-कमीज़ की सिलाई सहित टोटल कीमत से ज्यादा का।
प्रभात खबर 
आज सुबह मंदिर गए। बहुत भीड़ भी नहीं थी। जूता बाहर द्वार पर उतार दिया। भगवान जी के दर्शन किये। ढेर खुशियां और दौलत मांगी।
वापस आये तो दिल धक्क सा हो गया। जूता गायब हो गया। या यूं कहें चोरी हो गया। बदले में ये पुरानी चप्पल छोड़ गया।
हे भगवान, यह कैसा अंधेर? अंदर आप और बाहर चोर घूम रहे हैं। सिपाही का कहीं अता-पता नहीं।
पास की पुलिस चौकी गए। पुलिस नदारद।
एक भिखारी खड़ा था वहां। बोला, मुंशी जी सुलभ शौचालय गए हैं, निपटने।
पूछा - तुम यहां ड्यूटी देने आये हो?
भिखारी बोला - नहीं। हमें तो मंदिर के सामने दिन भर भीख मांगनी है। सर्टिफिकेट लेने आया हूं। मुंशी जी यहां खड़ा कर गए हैं। तुम्हें क्या चाहिए? पहले तो कहीं देखा नहीं। भीख का सर्टिफिकेट या पॉकेटमारी का!
हम यह सुन कर दंग रह गए। जिसकी दुम उठाओ वही मादा। हमने कहा - नहीं हमारा जूता चोरी हुआ है। रपट लिखाने आये हैं। क्या तुम किसी जूता चोर को जानते हो?
भिखारी हंसा - जूता चोर? मुंशी जी का खुद का जूता गए दिन चोरी हुआ है, यहीं चौकी से। बाहर खटिया डाले सो रहे थे।
इत्ते में मुंशी जी आ गए। हमने अपनी व्यथा बताई।
मुंशी जी बोले - रिपोर्ट तो थाने में दीवान जी लिखेंगे।
फिर मुंशी ने सौ टके की बात बताई - रिपोर्ट लिखाने से कुछ नहीं होने वाला। लाखों की चोरी चकारी, हत्या, डकैती, लूटपाट की खोज-खबर तो कर नहीं पाते हम। आपके १९९५ रूपए जूते की क्या बिसात। एक काम करो। शाम को आप फिर मंदिर आओ। कोई न कोई जुगाड़ तो हो ही जायेगा। आज नहीं तो कल। हो सकता है आपका जूता चुराने वाला जूता चोर रहा ही न हो आप जैसा कोई भुक्तभोगी हो।

पडोसी की विपदा पर हमें अपनी विपदा याद आई - हमारे भी दो जोड़ी जूते मंदिर से चोरी हो चुके हैं। अभी महीना भर भी तो नहीं हुए हैं चोरी हुए। चार दिन हुए हैं नया खरीदे। पूरे १४९५ का। गाढ़े खून पसीने की कमाई का है।

यह कहते हुए हमने खटिया के नीचे निगाह दौड़ाई। जूता मौजूद है।
पड़ोसी ने भी झांक कर देखा। उनकी आंखें चमकीं - कुछ-कुछ ऐसा ही था मेरा जूता भी। मगर हमारी कंपनी दूसरी थी। बड़ी वाली। और महंगा भी।  
बहुत गुस्सा आया। अपनी कंपनी को बड़ा बता कर उसने तौहीन की थी हमारी। अपने को अंबानी समझता है। लेकिन हम खून का घूंट पी गए। दरअसल तसल्ली की बात यह रही कि शुक्र है इसे उसने अपना नहीं बताया।
---
07-08-2015 Mob 7505663626
D - 2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016

उक्त लेख प्रभात ख़बर के दिनांक ०७ अगस्त २०१५ अंक में प्रकाशित। 

No comments:

Post a Comment