Thursday, February 11, 2016

तारीख़ पे तारीख़...

- वीर विनोद छाबड़ा
स्क्रैप बटोरने वाले की १३ साल की बेटी ज़ाहिरा ने कभी सोचा भी न था कि ०२ मई २००५ का वो दिन उसके लिए भयावह साबित होगा। एक नहीं छह अमीरजादों ने उसे अगवा करके कार में घसीट लिया।
रेप किया, सिगरेट के जला कर बेतरह प्रताड़ित भी किया और फिर उसके हाथ में बीस रूपये देकर सुनसान सड़क पर फ़ेंक दिया।
शायद यह घटना अमीरजादों के रोज़मर्रा आखेट का हिस्सा बन कर किसी कोने में दफ़न हो गयी होती, अगर अडवा और सांझी दुनिया की मधु गर्ग और रूप रेखा वर्मा जैसी जुझारू महिला नेत्रियों और प्रिंट मिडिया ने इसे अंजाम तक पहुंचाने की सौगंध न खाई होती।
यह काण्ड आशियाना रेप केस के नाम से चर्चित हुआ। चूंकि इसमें एक बड़े राजनैतिक दल के कद्दावर नेता का भतीजा भी शामिल था लिहाज़ा कानून के महान माहिर वकीलों ने भतीजे को नाबालिग साबित करने की एक नहीं कई चालें चलीं। तारीख़ पे तारीख़, तारीख़ पे तारीख़, तारीख़ पे तारीख़...
इस बीच दो अभियुक्तों की मौत हो गयी और तीन तो सजा। लेकिन उस कद्दावर नेता का भतीजा बचा रहा।
दिल्ली में निर्भया कांड हो गया। जनता सड़क पर उतर आई। नया कानून बना कर रेप करने वाले नाबालिगों को फांसी की सजा देने की मांग उठने लगी। असर आशियाना रेप केस पर भी पड़ा। मंथर गति से चल रहे इस केस ने रफ़्तार पकड़ी। इंसाफ़ की गुहार होने लगी।
अनेक दांव-पेंच चले। लंबे इंतज़ार के बाद आख़िरकार जुवेनाइल कोर्ट ने भतीजे को २१ मार्च २०१४ को बालिग़ करार दिया। मामला फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के सिपुर्द किया गया। मगर इसके बावजूद मूल पत्रावली के न मिलने के कारण मामला फिर अटका। १६ नवंबर २०१५ को हाई कोर्ट ने तीन महीने में ट्रॉयल पूरा करने को कहा। 
पीड़िता को ट्रायल के दौरान कितने ज़बरदस्त मानसिक संत्रास से गुज़रना पड़ा, इसका अंदाज़ा वो भली भांति लगा सकते हैं जिन्होंने 'दामिनी' फ़िल्म देखी है।
कल फैसले की घड़ी थी। भारी भीड़ जमा थी कोर्ट के अंदर और बाहर। मीडिया का भी ज़बरदस्त जमावड़ा। सबके दिलों की धड़कनें तेज़। लेकिन कहीं डर भी छुपा था कि कुछ गड़बड़ न हो जाए। और...

वही हुआ जिसका अंदेशा था। एक और कानूनी दांव। २४ मार्च २०१५ के हाई कोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया - ट्रॉयल चले लेकिन फैसला न सुनाया जाए।
पीड़िता के पक्ष पर कुठाराघात हुआ। फिर तारीख़ लगी। अब निगाहें १२ फरवरी पर टिकी हैं।
देखें इंसाफ जीतता है या कानून के माहिरों की चालें। एक तरफ़ सरमायेदार हैं जिनके पास बेशुमार धन-दौलत है, असरदार वकीलों की फ़ौज़ खड़ी कर सकते हैं और दूसरी तरह एक मजलूमा है, जिसके पीछे कुछ नारी संगठन हैं, एक्टिविस्ट हैं, कुछ वक़ालत को सिर्फ पेशा न समझने वाले समाजसेवी वकील हैं और मीडिया का एक वर्ग है।
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11-02-2016 mob 7505663626
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