Saturday, February 13, 2016

मां तुझे सलाम।

- वीर विनोद छाबड़ा
हमारे एक मित्र हैं अशोक दुबे। कांग्रेस के कर्मठ और ईमानदार नेता दिवंगत अधीर दुबे जी के पुत्र।
अधीर दुबे जी दो बार कांग्रेस के एमएलसी रहे हैं। एनडी तिवारी जब सीएम बने थे तो दुबे जी ने उनके लिए सीट खाली की थी।
उन दिनों चुनाव में उन्हीं का टिकट फाईनल होता था जिसके लिए दुबे जी हरी झंडी दिखाते थे। इंदिरा जी के बहुत करीबी दुबे जी ताउम्र पक्के गांधीवादी रहे। अपने लिए न कमाया और न बनाया। पुत्रों के लिए भी कुछ नहीं किया। सब अपने पैरों पर खड़े हुए।
दुबे जी ने अपनी विधवा पत्नी श्रीमती मोहिनी दुबे जी के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा। लेकिन खुद्दार पत्नी को यकीन था कि पेंशन तो है ही। उसी पर निर्वाह करेंगी। मगर ट्रैजेडी यह रही कि कांग्रेस को ज़िंदगी अर्पण कर देने वाले दुबे जी पेंशन योजना से वंचित रहे। दुबे जी मार्च १९९० में ब्रम्हलीन हुए थे और तत्कालीन नियमों के कारण पेंशन योजना से आवरित नहीं हो पाये। यह बात पुत्र-पुत्रियों ने मां को नहीं बताई ताकि उन्हें दुःख न हो।
सभी पुत्र मिलकर उन्हें हर माह तीन हज़ार रूपये देते रहे। यह रख ले मां, बाबू जी की पेंशन आई है। मां खुश हो जाती। हज़ार बार माथे को लगाती और चूमती कि पति की कमाई आई है। पाई पाई का हिसाब रखतीं। नाती-पोतों को दुलारतीं और उन पर दिल खोल कर खर्च करतीं। शादी आदि उत्सवों में अपना हिस्सा देतीं। बेटों को डांट लगातीं कि वो दो रुपया दिए थे उसका हिसाब दो। यह पार्टी को समर्पित मेरे कर्मठ पति की ईमानदारी की कमाई है। इसके एक एक पैसे पर मुझे गर्व है। इन पर सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा ही हक़ है।
इन पैसों में से वो अपनी सेवा करने वाली आया को भी दो सौ रूपए महीना दिया करती थीं। जबकि वास्तव में उसका मेहताना १५०० रूपए था। बाकी १३०० रूपए पुत्र दिया करते थे। आया को सौगंध दिला रखी थी कि असलियत माताजी के सामने कभी नहीं आये।
लेकिन एक दिन वो हो गया जिसे पुत्रों ने पिछले कई वर्षों से मां से छुपा रखा था। दोनों राज एक के बाद एक खुल गए। 

मां ने बहुत डांटा पुत्रों को। पुत्रों ने किसी तरह शांत किया मां को। लेकिन पुत्रों ने भी जो किया था, ग़लत भले ही था लेकिन मां का दिल भी तो नहीं तोड़ना था।
उस दिन के बाद से वो पुत्रों के साथ भले ताउम्र रहीं, लेकिन पुत्रों से कभी कुछ नहीं लिया। पुत्रों ने बहुत इसरार किया, लेकिन वो नहीं मानी। तुम लोग हो ही। खर्चा कर रहे हो, मुझे क्या ज़रूरत?
पुत्रों, पुत्रियों, बहुओं, नाती-नतिनों, पोते-पोतियों और अन्य परिवारीजनों ने बहुत देख-भाल की उनकी।
२७ मार्च २००६ को यह खुद्दार मां और एक कर्मठ पति की पत्नी ब्रम्हलीन हो गयीं।
नोट - उक्त घटना हम करीबी मित्रों को भी नहीं मालूम थी। यह तो कल हम सब बैठे अपनी जननी को याद कर रहे कि ज़िक्र हो गया।
---
13-02-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016


No comments:

Post a Comment