Friday, February 26, 2016

अपर हैंड बहनजी का होगा।

- वीर विनोद छाबड़ा
हम बहन जी का फॉलोअर नहीं हैं। लेकिन सच को सच कहना ही चाहिए।

उनके राज़ में जाने-अंजाने बहुत गलतियां हुई होंगी। मगर प्रशासन की नकेल को खूब टाईट रखा। आईएएस और आईपीएस लॉबी उनके कब्ज़े में रही। यही वज़ह रही कि लॉ एंड आर्डर मेन्टेन रहा। किसी पर भ्रष्टाचार का चार्ज लगा या जुर्म में लिप्त पाया गया तो कान पकड़ कर बाहर करते देर न लगी। कुछ अपवाद ज़रूर रहे। हम जानते हैं कि दलित महिला मुख्यमंत्री के राज में कितने और कैसे लोग असहज थे। हमने भी उनके दौर में आरक्षण की व्यवस्था को झेला। ठीक है, जो भी सत्ता में आता है, अपने समुदाय के बारे में सोचता ही है। यही सोचा कि पूर्वजों की ख़ताओं का खामियाज़ा भुगत रहे हैं, सामाजिक न्याय हो रहा है। और जब बहनजी सत्ता से हटीं तो यही लोग सबसे ज्यादा खुश हुए।
बहन जी सत्ता से क्या हटीं कि उनके जहाज से सारे चूहे भाग निकले। जाते-जाते जहाज में छेद भी कर गए ताकि बहनजी हमेशा के लिए डूब जायें। कोई और होता तो शायद डूब भी जाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो इसकी वज़ह है कि बहनजी का नाम मायावती हैं। चतुर, घाघ और निडर पॉलिटिशियन। मौके का इंतज़ार करती हैं और फिर नफा-नुकसान देख कर वार करती हैं। दूसरी बात यह है कि उनके भक्तों की संख्या में कमी नहीं आई है। आज भी उनकी आवाज़ पर लाखों की भीड़ निकल पड़ती है, अनुशासित सिपाही की भांति। दलित की बेटी का इमोशनल ट्रंप कार्ड तो उनके पास है ही।
उनकी सोशल इंजीनियरिंग के कायल लोगों की संख्या भी अच्छी है।
अलावा इसके आम आदमी भी बहनजी को बेहतरीन प्रशासक के लिए याद करता है। खासतौर पर हर वर्ग की महिलाएं खुल कर कहती सुनी जाती हैं - कम से कम मां-बहनें सुरक्षित तो विचरण करती थीं।

अगले साल यूपी विधान सभा चुनाव में पॉलिटिक्स बहनजी के इर्द-गिर्द ही घूमेगी। अब राजनीति में ऊंठ किस करवट बैठेगा, यह कोई नहीं कह सकता। हंग असेंबली होने के आसार हैं। ऐसे में वो सपा के साथ तो जाने से रहीं। बीजेपी के साथ वो पहले भी रह चुकी हैं। और बीजेपी सत्ता के लिए अगर अफज़ल गुरू को शहीद मानने वाली पीडीपी को कश्मीर में साथ दे सकती है तो पानी पी पी कर कोसने वाली मायावती का फिर साथ पाने में भला उन्हें क्यों ऐतराज़ होगा। राखी ही तो बंधवानी है। उन्हें तो बहनजी का अपर हैंड होना भी मंजूर होगा।
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