-वीर विनोद छाबड़ा
दि ग्रेट डिक्टेटर - चार्ली चैपलिन की सबसे कामयाब और उद्देश्यपूर्ण फिल्म है।
यह चैपलिन की पहली बोलती फिल्म भी थी। हालांकि फिल्म का एक अच्छा हिस्सा साइलेंट है, चैपलिन की पिछली फिल्मों
की तरह।
१९४० की यह फिल्म चैपलिन ने उस दौर के एक वीभत्स सोच के जर्मन नस्लवादी और खब्ती
किस्म के इंसान एडॉल्फ हिटलर का मखौल उड़ाने की ग़रज़ से बनाई थी, जिसके सनकपन ने दुनिया
को दूसरे विश्वयुद्ध में धकेला था।
लेकिन चैपलिन को कई तरह का भय था। ऐसा न हो बजाये हिटलर के उनका और उनकी फिल्म
का मखौल उड़े। और नाज़ी सोच के लोग उनको दुनिया से उड़ा दें।
इस सिलसिले में उन्होंने एक लंबा रिसर्च भी कराया। अपने दोस्तों से सलाह ली।
कई ने मना किया कि रिस्क है। हो सकता है कि कई देशों में यह फिल्म प्रतिबंधित हो
जाए। नाज़िओं के समर्थकों और विरोधियों के बीच भीषण दंगे भी हो सकते हैं। युद्ध की विभीषिका
झेल रहा यूरोप ज्यादा बड़े संकट में आ जाये। यह भी संभव है कि इस युद्ध में नाज़िओं की
जीत हो और चार्ली चैपलिन को सूली पर चढ़ना पड़े।
मगर तमाम तरह से डराने वालों की सलाह को दरकिनार करते हुए उन्होंने अपने मित्र
डगलस फेयरबैंक्स की सलाह पर फैसला किया कि दुनिया के महाखलनायक का मुक़ाबला उसी की शक्ल
का दुनिया का महाविदूषक करेगा। ऐसा करना उनका फ़र्ज़ है और मानवता व सच की सेवा भी। जान
जाती है तो जाए। संसार की सबसे बड़ी घटना के तौर पर ज़माना इसे याद रखेगा।
और जब दि ग्रेट डिक्टेटर रिलीज़ हुई तो सुपर हिट हुई।
मगर हिटलर की नाज़ी सोच के समर्थकों के डर दक्षिण अमरीका के कई देशों में प्रतिबंधित
हुई। यूरोप में भी इसके विरुद्ध प्रदर्शन हुए। कई जगह से फिल्म उतार ली गई।
इंग्लैंड ने शुरू में विरोध के दृष्टिगत इसकी रिलीज़ रोकने का फैसला किया। लेकिन
फिल्म देखने के बाद फैसला किया गया कि नाज़ियों के विरुद्ध प्रोपेगंडा के लिए ये फिल्म
मज़बूत हथियार है।
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