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वीर विनोद
छाबड़ा
लगभग सैंतीस
साल नौकरी की है मैंने बिजली बोर्ड के हेडक्वार्टर पर। इस दौरान ज्यादतर एचआर और
कुछ साल इंडस्ट्रियल रिलेशन देखा।
पश्चिम, खासतौर पर मेरठ, के कार्मिकों और नेताओं से अच्छा साबका पड़ा।
आपस में खूब बहस करते थे। थोड़ा बहुत गाली-गलौज भी। शुरू-शुरू में बहुत डर लगा कि
कहीं झगड़ न बैठें या हम पर हमला न कर दें। लेकिन जल्दी ही समझ आ गया
कि प्यार जताने का यह उनका स्टाईल है। जब तक आपस में चों-चों न करें, चैन न आवे इनको। और हां, जब भी आते थे, गज़क ज़रूर लाये। बहुत कोशिश की, पैसे देने की। लेकिन हर बार मुंह बंद करा
दिया यह कह कर - पराया समझो हो हमें।
फिर हमने भी
शर्त लगा दी - ठीक है, लंच हमारे साथ।
थोड़ी
ना-नुकुर के बाद मान जाते। जाते-जाते मेरठ आने का न्यौता देना कभी न भूले। फोन कर
दियो,
टेशन पर
गड्डी ले के आ जायेंगे।
आज भी
त्योहारों पर फोन करते थे - जै हिंद सर। बधाई...
हमारा कई
बार मेरठ होते हुए हरिद्वार जाना हुआ। बस में ट्रेन में खूब मिलते थे। हमें जाट और
गैर जाट का फ़र्क कभी पता ही नहीं चला। हमने हमेशा बर्थ छोड़ दिया उनके लिए। सब दिल
के बहुत करीब लगे। वही प्यार से लड़ने-भिड़ने वाला अंदाज़। हमें इनकी स्थानीय बोली
बहुत अच्छी लगी। सीधी बात करते थे। न कुछ छुपाव और न दुराव। कभी-कभी लट्ठमार भी
लगती। मगर ज़मीन से जुड़ी हुई। सच बताऊं हमें इतना मज़ा आया कि मन हुआ कि सुनता ही
रहूं। एक ही बोली एक ही लिबास और रहन-सहन। कुछ दिन और रह लूं इनके साथ। उन्हें एक
साथ हुक्का भी गुड़गुड़ाते देखा और बीड़ी-सिगरेट शेयर करते हुए भी। लौट कर लखनऊ आया
तो कई दिन तक ज़हन में चढ़ी रही उनकी बोली उनका बिंदास अंदाज़।
पिछले दिनों
हरियाणा में जो हुआ,
हमें दिली
तकलीफ़ हुई। हम आरक्षण की बात नहीं करते हैं। हमें इंसानो के बंटने का दुख है। एक
ही बोली,
एक ही लिबास और एक ही रहन-सहन। फिर ये आपसी बैर और नफ़रत
क्यों?
किसने किसका
घर जलाया। ये किसका लहू है, कौन मरा?
जबसे सुना
मेरठ में भी इसकी आग पहुंची। हमें तो फ़िक्र लग गयी।
मेरठ में
हमारे दो मित्र हैं। इनमें जाट कौन है और गैर-जाट कौन, हमें नहीं मालूम। कल हमने दोनों को मोबाईल
लगाया।
हमारे 'हेलो' करने से पहले ही, वही चिर-परिचित आवाज़ - जै हिंद सर। जी, यहां सब ठीक है....
सच, हमें बहुत राहत मिली।
---25-02-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
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