-वीर विनोद छाबड़ा
बंदे के घर के बाहर बालू-मोहरंग गिरी देखी तो पिछली गली के नुक्कड़
वाले प्रेमीजी को खुजली शुरू हो गयी। अभी पिछले ही महीने रसोई में टाईल्स लगीं थीं।
लगता है टॉयलेट लीक हो गया है या फिर गूं वाले विज्ञापन का असर।
मांस-मच्छी खाएंगे
तो दिन-भर लोटा लेकर दौड़ेंगे ही न! कभी लीकेज तो कभी जाम। फिर सरकारी बाबू हैं, जुगाड़ लगा कर सब्सिडी
पा लिए होंगे।
बंदा प्रेमीजी के तन-बदन में अक्सर होने वाली खुजली और दूसरों
को खुजलाने की आदत से परिचित हैं। फिर भी बंदे ने ऐसे चिपकू खड़ूस को एकदम से भगाना
उचित नहीं समझा। आखिर विरासत में मिली आदर-सत्कार संस्कार की परंपरा भी कोई चीज़ है।
प्रेमीजी तीखी नज़र से मुआयना करते हैं। सुना मकान बनवा रहे हैं? यह पूछते हुए वो मकान
के अंदर घुस गए।
बंदे के जी में आया, कमबख्त को दो अदद रसीद दूं कान नीचे। देख रहा है, निर्माण हो रहा है।
फिर भी पूछ रहा है। अंधा कहीं का।
प्रेमीजी के मुंह में पेचिश लगी है...अच्छा, तो यूं न कहिये कि
ऊपर कमरा बनवा रहे हैं। आपको खुद तो ज़रूरत है नहीं। लगता है, किरायेदार रखेंगे।
लेकिन बहुत सोच समझ कर रखियेगा। आजकल किरायेदार ही लूट- पाट, चोरी-डकैती, हत्या वगैरह कर रहे
हैं। हम तो हर तीसरे महीने बदल देते हैं। अब तो अपने भी लुटेरे होने लगे। किसी का क्या
भरोसा?
लेकिन प्रेमीजी की असलियत तो बंदा जानता है। एक नंबर के लीचड़
हैं। ऐसा वाहियात डिज़ाइन है इनके घर का कि काकरोच भी वहां तौबा करे। न हवा, न पानी। सीवर तो अक्सर
चोक ही रहता है। धूम्रपान, मदिरापान और नॉन-वेज की बंदिश अलग से। सुबह-दोपहर कुकुर भांति सूंघते फिरें। कोई
जिए तो कैसे? बड़े-बड़े चोर-डकैत किरायेदार भी तौबा करें।
प्रेमीजी धाराप्रवाह खुद से सवाल-जवाब कर रहे हैं। ईंटा कहां
से लिया? अच्छा नही है। हमसे कहे होते। हमारे दामाद के दोस्त के भाई का भट्टा है। सस्ता
दिलवा देते। ये सीमेंट खजुआ बेकार है। टीएंडटी का लेते, बिलकुल लोहा-लाट। सरिया…प्रेमीजी नुक्स पे
नुक्स निकाल रहे हैं। बंदे ने टीवी की आवाज़ ऊंची कर दी। न सुनो न जी जलाओ। याद नहीं
प्रेमीजी कब तक पोस्टमार्टम करते रहे।
अचानक प्रेमीजी ने रिमोट से टीवी बंद कर दिया। आप सुन रहे हैं
न कि हम क्या कह रहे हैं।
बंदा हड़बड़ा जाता है। प्रेमीजी ने एक और पांसा फेंका। प्रेमीजी
वास्तु-शास्त्र पर उतर आये। एंट्री लेफ्ट से लें। दीवार चार इंची नहीं, नौ इंची। टॉयलेट बायें
लें और किचेन पीछे…प्रेमीजी ने पूरा नक्शा ही बदल डाला। बंदे ने अंदाज़ा लगा लिया कि इनके हिसाब से
चले तो एक लाख का चूना लगा समझो।
इधर प्रेमीजी जारी हैं। उधर बंदे को लगा कि अब ब्रह्मास्त्र
छोड़ने बारी है। हमारी भूमिका मात्र फिनांसर की है। इस निर्माण की आर्किटेक्ट, स्वपन्नदृष्टा, ठेकेदार वगैरह-वगैरह
हमारी मेमसाब हैं। उन्हीं को सलाह दें। वो बाजार गई हैं सेनेटरी वाले से बात करने।
बस आती ही होंगी।
यह सुनते ही प्रेमीजी को प्रेशर महसूस होने लगा। अभी थोड़ी देर
में आया, कह कर अंतर्ध्यान हो लिए।
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Published in Prabhat Khabar dated 15 Feb 2016
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