- वीर विनोद छाबड़ा
एक ऑटोमोबाईल इंजीनियर ने तमाम सुख-सुविधाओं से लैस एक छोटी अजूबा कार तैयार की।
यह सोलर एनर्जी से चलती थी और संकरी सुरंग से भी निकल सकने में सक्षम थी। मालिक उसकी
उपलब्धि से बहुत खुश हुआ।
बस एक कमी रह गयी। इसकी छत आधा मिलीमीटर ऊंची थी। यह तब नोटिस हुई जब इसे ट्रायल
के लिए विशेष रूप से बनाई गई सुरंग से पास कराया जाने लगा। इंजीनियर साहब बहुत दुःखी
हुए। डिज़ाईन में कहीं कमी रह गयी।
कई सुझाव आये। डेंट-पेंट एक्सपर्ट ने कहा कि थोड़ा स्क्रेच आ जायेगा, आने दीजिये। उसे हम
ठीक कर देंगे। लेकिन इंजीनियर साहब को यह मंज़ूर नहीं हुआ। लाख कोशिश करो, निशान तो रह ही जाता
है। सिविल इंजीनियर ने सलाह दी कि सुरंग का फर्श गहरा कर तोड़ दो या सुरंग को तोड़ कर
फिर से बनाया जाए। लेकिन फैक्ट्री के मालिक को तोड़-फोड़ मंज़ूर नहीं थी। इसमें बहुत खर्चा
होगा।
काफी देर तक चक-चक चलती रही। फैक्ट्री का एक चौकीदार बहुत देर से यह ड्रामा देख
सुन रहा था। उसने अपना विचार प्रस्तुत करने की आज्ञा मांगी। इतने बड़े-बड़े एक्सपर्ट
कोई रास्ता नहीं निकाल पा रहे हैं तो यह अदना आदमी क्या कर लेगा? लेकिन ऑटो इंजीनियर
के कहने पर उसे एक मौका दे दिया गया।
चौकीदार ने कार के पहियों से हवा का थोड़ा प्रेशर कम कर दिया। कार की ऊंचाई एक मिलीमीटर
कम हो गयी। और कार आराम से सुरंग पार कर गयी। सब हतप्रद होकर चौकीदार को देखने लगे।
चौकीदार मुस्कुराया। इसे कहते हैं जुगाड़।
पुछल्ला - कभी कभी अदना सा आदमी भी बड़े काम का साबित होता है। उसके दिमाग में हर
समस्या के निदान का जुगाड़ होता है। हमारे एक सिविल इंजीनियर मित्र मकान बनवा रहे थे।
सीढ़ी मन मुताबिक नहीं बन पा रही थी। आर्टिटेक्ट की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था। कुछ
अन्य डिग्री-डिप्लोमा एक्सपर्ट भी आये। लेकिन सब फेल। वहां एक राज मिस्त्री भी खड़ा
था। तीस साल का तजुर्बा था उसे। मकान से लेकर बड़े-बड़े डैम के निर्माण में काम कर चुका
था। उसने दो मिनट में जुगाड़ करके सीढ़ी को इंजीनियर साहब के मन-मुताबिक कर दिया।
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