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वीर विनोद छाबड़ा
वो एक विचित्र व्याधि से पीड़ित थे। भरी जवानी में उनके सर के काफ़ी बाल उड़ गए और
जो बचे वो सफ़ेद हो गए। भवों और पलकों पर भी बाल नहीं रहे। इसलिए वो सदैव कैप लगाते
थे। वो कैप वाले अनिल सिंह के नाम से भी जाने जाते थे। बॉस के बॉस के पास भी जाते तो
कैप लगी रहती थी। एक बार किसी बॉस ने आपत्ति भी की थी। लेकिन जब उन्हें वास्तविकता
का पता चला तो सॉरी बोल दिया।
हमारे जैसे कुछ करीबी ही थे, जिन्होंने ने उन्हें बिना कैप के देखा था। पहली दफा तो हम भी गश खा गए कि यह वही
अपने वाले अनिल सिंह हैं। लगा दूसरे ग्रह से आया कोई एलियन है।
एक बार हुआ यह कि माननीय मुख़्यमंत्री जी ने आधी रात को चेयरमैन फ़ोन किया कि फलां
अधिकारी का मामला अभी के अभी सुलझाना है। चेयरमैन ने संबंधित अधिकारी को जगाया। अब
उनके लिए तो हर मर्ज़ की दवा अनिल सिंह ही ठहरे। उस ज़माने में फ़ोन भी बड़े अधिकारियों
के घर में लगा होता था। अनिल सिंह ठहरे छोटे अधिकारी। उस दिन उस अधिकारी को अहसास हुआ
कि काम वाले अधिकारी के घर फोन ज़रूर होना चाहिए।
रात का ढाई बजा था। अधिकारी महोदय ने गाड़ी निकाली और अपने ड्राईवर को उठाया। तुमने
तो अनिल का घर देखा है। उसके घर ले चलो। वो अनिल के घर पहुंचे। अनिल घोड़े बेच कर सो
रहे थे। उनकी बेगम ने बामुश्किल उन्हें उठाया। डरते डरते बताया कि बाहर जाने कौन कार
लेकर खड़ा है? कोई बहुत बड़ा आदमी लगता है
अनिल सिंह आंखें मलते हुए उठे। उन्हें कैप लगाने का ख्याल भी नहीं रहा। सामने अपने
बॉस को देखा तो हैरान रह गए - सर, आप? और इतनी रात कैसे?
अब अधिकारी के होश तो वैसे ही उड़े हुए थे। ऊपर से सामने एक लगभग गंजा और दूसरी
दुनिया से आया विचित्र आदमी सामने खड़ा हो गया। वो चकरा गए। किस दुनिया में ले आया यह
ड्राईवर? कुछ घबराते हुए उन्होंने पूछा - अनिल सिंह हैं घर पर?
अनिल सिंह ने कहा - सर, मैं ही अनिल सिंह हूं।
अधिकारी महोदय मानने के लिए तैयार नहीं हुए। इतने में अनिल की पत्नी ने उनकी कैप
सर पर यथा स्थान रख दी। अनिल सिंह प्रकट हो गए। तब जाकर अधिकारी महोदय की सांस वापस
आई।
बहरहाल, अनिल सिंह तुरंत उनके साथ दफ्तर पहुंचे और कार्य संपन्न किया।---
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