-वीर विनोद छाबड़ा
२७ अगस्त, अमेरिका का एक शहर। गीत-संगीत के चाहने
वालों के बीच उस दिन मुकेश जी को परफॉर्म करना था। वो सुबह उठे। नहाने के बाद वो
बाहर आये। दिल में दर्द उठा। गिर पड़े। फ़ौरन अस्पताल ले जाया गया। हर कोई यही सोच
रहा था कि बेहोश हैं। डॉक्टर कोई इंजेक्शन देगा, उठ कर बैठ जाएंगे। मगर बहुत बड़ा झटका लगा।
डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। यकीन न आने वाली ख़बर। किसी की कुछ समझ नहीं
आ रहा था कि क्या किया जाये। लेकिन परंपरा का निर्वाह तो करना है। शो जारी रहे।
लता जी ने उस दिन गाया और मुकेश जी के बेटे नितिन मुकेश में भी।
मुकेश चंद्र माथुर का फिल्मों में आना
दिलचस्प घटना है। वो अपनी बहन की शादी में सहगल की नकल कर रहे थे। दूर के
रिश्तेदार मोतीलाल उसी समारोह में मौजूद थे। उन्होंने उस आवाज़ को सुना। हैरान हुए
कि सहगल यहां कैसे? पलट कर
देखा तो स्टेज पर एक नौजवान को पाया। वाह! इतनी परफेक्ट नक़ल! यह ज़रूर बड़ा सिंगर
बनेगा। मोतीलाल बड़े एक्टर थे। वो उन्हें बंबई ले आये। पंडित जगन्नाथ प्रसाद ने
उनकी आवाज़ को संवारा। उन दिनों सिंगर को एक्टर होना या एक्टर को सिंगर होना निहायत
ज़रूरी था। लिहाज़ा मुकेश का फ़िल्मी सफ़र एक्टिंग से शुरू हुआ। उनकी पहली फ़िल्म थी
निर्दोष (१९४१).
Mukesh |
उन दिनों कुंदन लाल सहगल की सेहत अच्छी
नहीं चल रही थी। संगीत की दुनिया में असमंजस्य की स्थिति थी। सहगल की जगह कौन लेगा? क्या दूसरा सहगल पैदा होगा? ऐसे ही फ़िक्रमंद माहौल में संगीतकार अनिल
विश्वास मुकेश को ले आये- बोले यह है हीरा। मुकेश ने पूरे विश्वास से और दिल की
गहराईयों से गाया - दिल जलता है तो जलने दो....(पहली नज़र-१९४५). जिसने सुना उसे लगा वाकई सहगल का विकल्प मिल
गया है। सहगल जैसा ही दर्द है। दिल की गहराइयों से गाया है। यह एक संयोग है कि यह
गाना मुकेश को दिल्ली से लेकर आये मोतीलाल पर फिल्माया गया।
बहरहाल, मुकेश की असल परीक्षा बाकी थी। यह गाना
सहगल साहब को सुनाया गया। सहगल ने बड़े ध्यान से गाना सुना और फिर पूछा - मैंने कब
गाया यह गाना? लेकिन मुकेश नहीं चाहते थे कि दुनिया उनको
सहगल की नक़ल या उनके क्लोन के रूप में याद करे। उन्होंने रियाज पे रियाज किये। दिन
रात एक कर दिया। ताकि सहगल से अलग अपना मुक़ाम बना सकें। इस बीच सहगल साहब दिवंगत
हो गए। मैदान खाली था। मगर मुकेश ने कभी दावा नहीं किया कि सहगल के 'बड़े शून्य' को भर देंगे।
Rajkapoor & Mukesh |
मुकेश ने सहगल से अलग अपनी दुनिया बसायी।
इसमें उनका साथ दिया नौशाद ने। उन्हें तराशा। 'मेला' और 'अंदाज़' में मौका दिया। दिलीप कुमार की आवाज़ बने।
दिलीप को तो वो इतना भाये गए कि उन्हें अपनी स्थाई आवाज़ बनाने का फैसला किया।
लेकिन इस बीच राजकपूर ने उन्हें अपनी आवाज़ बना लिया। यहां से मुकेश ने पीछे मुड़ कर
नहीं देखा। उनकी अपनी पहचान बनी। लेकिन फिर भी बरसों तक संगीत प्रेमी मुकेश को
सहगल की 'छाया' से बाहर देखना गवारा नहीं कर पाए। कारण था
कि सहगल जैसा दर्द सिर्फ़ मुकेश के स्वर
में ही झलकता था।
मुकेश की ज़िंदगी में बेहतरीन लम्हा आया।
उन्हें 'रजनीगंधा' में गाये गीत 'कई बार यूं ही देखा है...' के लिए बेस्ट सिंगर का नेशनल अवार्ड मिला।
उन्हें चार बार बेस्ट सिंगर का फिल्मफेयर भी अवार्ड मिला - सब कुछ सीखा हमने न
सीखी होशियारी(अनाड़ी)…सबसे
बड़ा नादान वही है जो समझे नादान मुझे(पहचान)…न इज़्ज़त
की चिंता न फ़िक्र कोई ईमान की, जय बोलो
बेईमान की(बेईमान)…कभी कभी
मेरे दिल में ख़्याल आता है(कभी-कभी)...
इसके अलावा इन गानों के गायन के लिए भी
मुकेशजी को फिल्मफेयर ने बेस्ट सिंगर नॉमिनेट किया - होंटों पे सच्चाई रहती
है...दोस्त दोस्त न रहा...सावन का महीना पवन करे सोर...बस यही अपराध हर बार करता
हूं आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं...इक प्यार का नगमा है... मैं न भूलूंगा इन
कसमों इन वादों को...इक दिन बिक जायेगा तू माटी के मोल...मैं पल दो पल का शायर
हूं...चंचल शीतल निर्मल कोमल…
मुकेश जी ने सैकड़ों यादगार गीत गाये हैं।
हर गाना जैसे आत्मा से निकला और ईनाम उन्हें ईनाम देकर खुद सम्मानित हुआ। २२ जुलाई
१९२३ को दिल्ली में जन्मे मुकेश जी की आयु
निधन के समय सिर्फ़ ५३ साल के थे। किसी कलाकार के लिए तो यह अल्पायु है। मुकेश जी
का अंतिम गाना राजकपूर की 'सत्यम
शिवम सुंदरम' के लिए रिकॉर्ड हुआ था - चंचल शीतल निर्मल
कोमल…यह राजकपूर ही थे जो मुकेश जी की निधन की
सूचना पर बिलख पड़े थे - मेरी तो आवाज़ ही चली गयी। और वाकई मुकेश जी जैसी आवाज़ नहीं
लौटी।
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Published in Navodaya Times dated 27 Aug 2016
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