- वीर विनोद
छाबड़ा
यूनिवर्सिटी में जब हम शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो हमारी कक्षा में ढेर लड़कियां थी। हम लड़कों से भी अधिक। दिन भर चेंचें करती थीं। सेशन ख़तम। तू अपने घर और मैं अपने।
यूनिवर्सिटी में जब हम शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो हमारी कक्षा में ढेर लड़कियां थी। हम लड़कों से भी अधिक। दिन भर चेंचें करती थीं। सेशन ख़तम। तू अपने घर और मैं अपने।
लेकिन, कुछ कमबख्त तो कुछ के दिल का चैन ले गयीं। ग्रुप फोटोग्राफ से भी ज्यादातर ने किसी न किसी कारण से हिस्सा लेने से मना कर दिया। हमारे एक मित्र तो बिगड़ गए। लड़कियों के बिना ग्रुप फोटोग्राफ का भला क्या मतलब? किसे देख के कर जियेंगे। चूंकि वो खुद ही आयोजक थे, लिहाज़ा आयोजन ही कैंसिल हो गया।
हम तो सेशन ख़तम होने के बाद भी डिवीज़न बनाने के चक्कर में पढ़ते रहे। उसी दौरान हमें नौकरी मिल गयी। लेकिन फिर भी हम दो साल तक मॉर्निंग क्लासेज अटेंड करते रहे। एक और एमए कर लिया। फिर अज़ीज़ आ गए। इधर ऑफिस की ज़िम्मेदारियाँ भी बढ़ गयीं। शाम को हज़रतगंज में टहल कर जी बहलाने लगे।
यूनिवर्सिटी वाली तो बहुत दिखती थीं, लेकिन अलग-अलग अवसरों पर सहपाठिनियां दो ही दिखीं। अचानक ही सामने पड़ गयीं। उन्होंने हमे देखा और हमने उनको। लेकिन दोनों ही विवाहित और पति के साथ। उनमें एक तो गर्भवती भी थी। ऐसे में हमने वही किया जो हमें एक भद्र पुरुष होने के नाते करना चाहिए था। हम कन्नी काट गए। शायद वो भी यही चाहतीं थीं, क्योंकि उन्होंने हमें देख कर पति की आड़ लेने का प्रयास किया। कुछ समय बाद हमारा भी ब्याह हो गया। कुछ दिन तक पत्नी के साथ हज़रतगंज टहले और फिर इधर-उधर देखने के इलज़ाम लगने पर सब बंद हो गया।
यह एक संयोग था कि अस्सी के दशक के प्रारंभ हमारी दो सहपाठिनें हमारी सहकर्मी बन गयीं। हम हेडक्वार्टर में तो वो जोनल ऑफिस में। किसी न किसी काम से वो आया करती थीं हेड ऑफिस। काम हुआ और चली गयीं। जाने क्यों अक्सर पूछा करती थीं कि तुम रिटायर कब होगे? हम टाल देते थे। हमारे रिटायरमेंट पर तुम्हारा प्रमोशन तो होना नहीं?
कुछ साल बाद दोनों ही हमसे पहले ही रिटायर हो गयीं। सठियाई हुईं स्पष्टीकरण देने लगीं - क्या करें पिताजी ने उम्र ही गलत लिखा दी थी वरना चार-पांच साल तो नौकरी ज्यादा करते ही।
हमने देखा है कि लगभग हर महिला रिटायर होने पर यही कहती है। बहरहाल, उन दोनों को एक-एक बेटा था। हमने उन दोनों की शादी भी अटेंड की। जब कभी वो मिलती थीं तो कहा करती थीं, आओ कभी घर पर। लेकिन हम नमस्कार कर देते। अब यह भी एक संयोग था कि दोनों के बेटे पुलिस में बड़े अधिकारी थे। पुलिस वालों से न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी। पिछले साल रिटायर बिजली कर्मियों के वार्षिक सम्मलेन में दिखीं थीं। एक बंगलुरु में है, बेटा गुप्तचर सेवा में है। और दूसरी विदेश से आयी थी। उसका गुप्तचर पुलसिया बेटा डेपुटेशन पर है। हमने कहा - तुच्छ आदमी का सलाम कबूल फरमाइये।
दोनों हंस दीं। एक ने पीठ पर धौल जमा दिया - तू न बदला।
---
30-08-2016 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
No comments:
Post a Comment