-वीर विनोद छाबड़ा
०४ अगस्त १९२९ को जन्मे
किशोर कुमार की सबसे बड़ी पहचान उनकी आवाज़ थी। कानों में उनका स्वर गूंजा नहीं कि सुनने
वाले गुनगुना उठते थे - अजनबी तुम जाने-पहचाने से लगते हो...। एक्टिंग उनका मजबूत पक्ष
कभी नहीं रहा, लेकिन इसके बावज़ूद उन्होंने बहुत हंसाया। याद करें - पड़ोसन,
चलती का नाम गाड़ी आदि। वो डायरेक्टर भी थे और संगीतकार भी, और गीतकार भी। वो बहुत
विचित्र जीव थे। एकांतवासी और ग़ैर-सामाजिक। सिगरेट और शराब से दूर। कोई दोस्त भी नहीं।
पत्रकार प्रीतीश नंदी बहुत हैरान हुए थे। कैसे कटता है जीवन? जवाब में किशोर पेड़ों
से बातें करने लगे। ये हैं मेरे दोस्त। उन पेड़ो के नाम भी रखे हुए थे।
निजी जीवन में भारी
उथल-पुथल रही। चार बार विवाह किया। सबसे पहले रूमा सेन से। पहला बेटा अमित उसी है।
मगर पटरी नहीं खायी। इस बीच मधुबाला के दीवाने हो गए। मधु नहीं चाहती थी, उनसे शादी करना। लेकिन
जब कहा कि पंखे से लटक जाऊंगा, तो मजबूर हो गयी। लेकिन बीमार मधु भी उन्हें
परिवार का सुख न दे पायी और एक दिन परलोक सिधार गयी। फिर उनके जीवन में योगिता बाली
आयी। कुछ चाइनीज़ टाईप अफेयर रहा, दो साल में ख़त्म। आखिर में आयी २० साल छोटी
लीना चंद्रावरकर। लीना के पिता शुरू में इस रिश्ते से नाखुश थे, लेकिन जब किशोर रात
भर बैठ कर भजन गाते रहे तो राजी हो गए।
अवांछित आगंतुकों से
दूरी बनाये रखने के लिए किशोर ने आर्किटेक्ट से ऐसा घर डिज़ाइन बनवाया जिसमें चारों
और गहरी खाई और उसमें पानी का प्राविधान हो। खासी आलोचना के बाद में उन्होंने यह प्लान
वापस ले लिया। बताते हैं कि उन्होंने अपने कमरे में अनेक इंसानी खोपड़ियां और हड्डियां
फैला रखी थीं। लाल-नीले और हरे-पीले बल्ब ध्वनि सहित जलते-बुझते थे। ताकि इस डरावने
माहौल से घबरा कर आगंतुक जल्दी से भाग जाये।
किशोर ने इंदिराजी
की इमरजेंसी का सख्त विरोध किया। कांग्रेस की एक रैली में उन्होंने गाने से मना कर
दिया। इसका खामियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ा। आकाशवाणी
से उनके गाने प्रसारित होने बंद हो गए।
किशोर कभी भरोसेमंद
नहीं रहे। न जाने, कब किससे नाराज़ हो जायें। एक बार अमिताभ बच्चन ने उनके प्रोग्राम
में जाने से मना कर दिया। बदले में किशोर ने प्लेबैक देने से मना कर दिया। कई साल बाद
सुलह हो पायी। ऐसा ही मिथुन चक्रवर्ती के साथ हुआ। मिथुन की गलती यह थी कि उन्होंने
किशोर की तलाकशुदा पत्नी योगिता से शादी की थी।
उनका सिद्धांत था पहले
पैसा, फिर काम। 'भाई-भाई' के सेट पर आधे मेक-अप
में आये। आधा पैसा, आधा काम। बड़े भाई अशोक कुमार के समझाने पर वो मान गए। लेकिन,
शॉट के दौरान पलटी मार गए। सेट के एग्जिट डोर से निकल भागे। राजेश खन्ना और डैनी
के लिए भी यही सिद्धांत रखा। निदेशक आरसी तलवार के घर बाहर खूब हंगामा किया। ओये तलवार,
दे दे मेरे आठ हज़ार...पैसा मिलने पर ही हटे।
निर्देशक एचएस रवैल
तो किशोर का बकाया पैसा देने उनके घर गए। रसीद मांगी तो उनके हाथ पर काट लिया - मिल
गई। एक बार जीपी सिप्पी उन्हें मिलने गए। लेकिन वो भाग खड़े हुए। सिप्पी ने उनका पीछा
किया। कई किलोमीटर दूर जा कर दबोचा। मगर किशोर ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया
और पुलिस बुलाने की धमकी दी। सिप्पी डर गए। अगले दिन एक रिकॉर्डिंग पर सिप्पी की उनसे
भेंट हुई। सिप्पी ने उनसे पिछले दिन की घटना के बारे में पूछा तो वो साफ़ इंकार कर गये
- जी, मैं तो कल खंडवा में था।
किशोर के मनमौजी व्यवहार
से क्षुब्ध एक निर्माता हाई कोर्ट से 'कहना मानने'
का आर्डर ले आये। अगले दिन शूटिंग पर आये तो उन्होंने कार से उतरने से मना कर दिया।
बोले, डायरेक्टर ने तो कहा नहीं। जब डायरेक्टर आये तब उतरे। उसी दिन
एक सीन में उन्हें कार से उतरना था। लेकिन कार २५ मील दूर रुकी। बोले, डायरेक्टर ने 'कट' नहीं बोला था। उनके
के असहयोग से नाराज़ निर्माता कालीदास की शिकायत पर इनकम टैक्स विभाग ने उन्हें बहुत
परेशान किया। सुलह के लिए उन्होंने कालीदास को घर बुलाया और एक कमरे में बंद कर दिया।
पूरे ढाई घंटे बाद इस शर्त पर रिहा किया कि आयंदा से सूरत मत दिखाना।
किशोर को बंगाली नाम
के एक स्टेज मैनेजर से बहुत खुन्नस थी। अपने दरबान से कह दिया कि बंगाली आये तो उसे
घर में घुसने मत देना। इस बीच ऋषिकेश मुखर्जी आये। दरअसल वो 'आनंद' के लिए किशोर को चाहते
थे। लेकिन दरबान ने बंगाली ऋषिदा को वही अवांछित बंगाली समझ लिया और घुसने नहीं दिया।
बाद में वो भूमिका राजेश खन्ना ने की।
द्वार पर 'किशोर से सावधान'
की तख़्ती लटकाने वाले विचित्र जीव किशोर मौत को आने से नहीं रोक पाये। १३ अक्टूबर
१९८७ को सिर्फ़ ५७ साल की आयु में उनका हार्ट फेल हो गया। उस वक़्त वो बड़े भाई अशोक कुमार
का जन्मदिन मना रहे थे।
बावज़ूद
लाख कमियों के किशोर बहुत बड़े सिंगर थे। उनके व्यक्तित्व का मानवीय पहलू भी था। उन्होंने
एक्टर बिपिन गुप्ता की आड़े वक़्त बहुत मदद। उनमें 'गायक' को पहचानने
वाले अरुण मुखर्जी थे। अरुण की मृत्यु के बाद भी किशोर उनके परिवार की नियमित आर्थिक
मदद करते रहे।---
Published in Navodaya Times dated 03 Aug 2016
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