Friday, February 10, 2017

कथा श्री छुन्नू महाराज की

-वीर विनोद छाबड़ा
ये उस दौर की कथा है जब पचास का नोट आज के पांच सौ के बराबर था।
छुन्नू बाबू मुहं में चांदी का चम्मच रख पैदा हुए थे। इतनी दौलत थी कि सात पुश्तें दोनों हाथ से लुटाएं तब भी कम न हो। खूब उड़ाया-खाया। पढाई-लिखाई में जीरो-जीरो। लेकिन नो फ़िक्र।
दौलत आदमी विलासता की और धकेलती है। छुन्नू के साथ भी यही हुआ। शराब और सिगरेट। हर वक़्त टुन्न और धुआं-धुआं। वो थोड़ा भोंदू किस्म के भी थे। इसलिए जल्दी ही ख़राब संगत ने उन्हें दबोच लिया। ये संगत उन्हें अय्याशी के रास्ते पर ले गई। पूर्ण बरबादी के लक्षण दिखने लगे। लगा सात पुश्तों के लिए जमा दौलत इसी जन्म में खर्च कर देंगे।

हम दोस्तों ने इस बिंदु पर आकर छुन्नू का साथ छोड़ दिया। कुछ ने अपने घर में उनकी आमद पर रोक भी लगा दी।
माता-पिता ने बहुतेरी कोशिश की कि छुन्नू का किसी तरह घर बस जाये। शायद इसी बहाने उनकी विलासिता और अय्याश लाइफ स्टाइल पर ब्रेक लग जाए और वो सही राह पर आ जाएं।
लेकिन छुन्नू का तो समाज ने मानो बहिष्कार कर रखा हो। दरअसल उनका जीवन वृत्त इस कदर सार्वजनिक था सात लोक भी उनकी खबर रखते थे। माता-पिता छुन्नू के विवाह का अरमान दिल में लिए एक के बाद एक चल बसे। और हम दोस्तों पर ज़िम्मेदारी डाल गए ये कह कर कि छुन्नू के साथ बचपन गुज़ारा है, सो उसे सुधारने का फ़र्ज़ भी बनता है।
हम दोस्तों ने बीड़ा उठाया। इधर छन्नू भी पहले पिता और फिर फ़ौरन बाद माता की मृत्यु से व्यथित हो गए। माता-पिता की मृत्यु के लिए खुद को दोषी मानने लगे। दिन-रात शराब पीते और रोते रहते। वो उन कंधो को शिद्द्त से तलाशने लगे जिन पर वो सर रख कर गम गलत कर सकें। उनके ख़राब संगी-साथी भाग खड़े हुए। ऐसे ग़मगीन माहौल में हम साथ छोड़ चुके दोस्तों को अपने इर्द-गिर्द पाकर छुन्नू निहाल हो गए। हम धीरे-धीरे उन्हें सही राह पर ले आये।
छुन्नू ने शराब और शबाब दोनों से तौबा कर ली। दोस्तों ने बंद दरवाज़े खोल दिए। भाभियां भी भैया-भैया करके आदर-सत्कार करने लगीं। लेकिन समाज में एक बार बिगड़ी छवि को उजला करना बहुत मुश्किल होता है। यही छुन्नू के साथ हुआ। बामुश्किल दूसरे शहर जाकर उनका रिश्ता बना। शादी भी दूसरे शहर जाकर करनी पड़ी।  
छुन्नू को ऐन सुहागरात के रोज़ खूब समझाया कि अब उनकी बाकी ज़िंदगी उनके हाथ में है। कोई गड़बड़-शड़बड़ और उलटी-सीधी बात नहीं करनी। गुज़रे पल दफ़न हो चुके हैं। उन्हें बाहर मत आने देना। नहीं तो बना-बनाया खेल बिगड़ जायेगा।

सुहागरात के दूसरे दिन सुबह-सुबह छुन्नू आ धमके। उनके चेहरे पर हवाइयां उडी हुई थीं। लगा ये भोंदुराम सब गड़बड़ कर गए हैं। कुछ पूछने से पहले ही उसने खुलासा किया - यारों, हुआ ये कि सुबह जब मैं उठा तो याद ही नहीं रहा कि कहां हूं और ये कौन सा काल है। लगा वही पुराना दौर है। उसे सौ नोट पकड़ा दिया।
हम लोग जोर से हंसे - बस इसी बात से परेशान हो। अरे भोंदूराम उसने गिफ्ट समझ कर रख लिया होगा। तुम्हारे विगत की परछाई नहीं पड़ी होगी।
मगर छुन्नू की घबराहट कम नहीं हुई - नही ऐसी बात नहीं हुई। दरअसल, उसने हमें पचास रूपये लौटा दिए।


पुछल्ला - इस घटना को गुज़रे ४० साल हो चुके हैं। छुन्नू और उनकी पत्नी दोनों अपना अतीत भुला चुके हैं और दूसरे शहर में हैं। छुन्नू एक बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक हैं। एक बेटी और एक बेटा है। दोनों की शादी कर चुके हैं। बहुत सुखी परिवार है। ये सब पत्नी के प्रताप के कारण है। वो उन्हें सही राह पर ले आई। हम मित्रों का सपरिवार आना-जाना है। और हां छुन्नू पहले की तरह भोंदू भी नहीं हैं। श्री छुन्नू महाराज कहलाते हैं। एक नंबर के कंजूस हैं। 
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