Saturday, February 18, 2017

दिलीप और कामिनी की प्रेम कहानी थी 'गुमराह'

- वीर विनोद छाबड़ा
प्रेम के मामले में दिलीप कुमार की लाईफ़ रील में ही नहीं रीयल में भी त्रासद रही है। फिल्म में जान डालने के लिए वो अपनी नायिकाओं के इतने करीब चले जाते थे कि कई को सचमुच ही दिल दे बैठे। कामिनी कौशल उनका पहला प्यार था। कामिनी ने चालीस के दशक में लाहोर यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी में बीए आनर्स किया था। वो उन चंद लड़कियों में थी जो फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलती थीं। १९४६ में उन्हें चेतन आनंद 'नीचा नगर' से लेकर आये थे। इस फिल्म को अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई थी।
कामिनी का असली नाम उमा कश्यप था। उनका दिलीप कुमार से परिचय 'नदिया के पार' के सेट पर हुआ। लेकिन 'शहीद' (१९४९) उन दोनों की पहली रिलीज़ फिल्म थी। यह सुपर हिट फिल्म थी। इसके बाद उन्होंने शबनम और आरज़ू में काम किया। उनका प्यार परवान चढ़ने लगा।
लेकिन कामिनी के साथ एक समस्या थी। वो विवाहित थी। उनका विवाह असामान्य परिस्थितियों में हुआ था। उन दिनों वो उमंगों के रथ पर सवार रहती थीं।  नित नई ऊंचाई को छूने की तमन्ना रखती थी। सहसा परिवार में एक बहुत बड़ी ट्रेजडी हुई। उनकी बड़ी बहन का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। बहन की दो छोटी बेटियां थीं। यक्ष प्रश्न उठा कि कौन पालेगा इन्हें? सबकी आंखें कामिनी की ओर उठ गयीं। उनके पास कोई विकल्प नहीं था। और इस तरह वो अपनी बहन के विधुर पति की पत्नी बनी थीं।
मगर उमंगें यूं आसानी से मरा नहीं करतीं। कामिनी को पता ही नहीं चला कि वो दिलीप कुमार को दिल दे बैठीं। दिलीप कुमार भी उनके बिना बेचैन रहते थे। कामिनी के परिवार को भी खबर हुई। उनका भाई बंदूक लेकर सेट पर पहरा दिया करता था। लेकिन प्यार पहरों से नहीं रुका करता। परंतु इससे पहले कि मामला हद से आगे गुज़रता दोनों को अहसास हुआ कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है। कई ज़िंदगियां तबाह होंगी। बेहतर होगा कि प्यार को कुर्बान कर दिया जाए।
दिलीप कुमार के परिवार से बहुत निकट संबंध रखने वाली सितारा देवी ने एक लेख में लिखा है कि उस दिन दिलीप कुमार बहुत उदास थे। वो बात बदलने की बहुत कोशिश कर रहे थे। लेकिन आंखों से आंसू आना बंद नहीं होना चाहते थे। कई साल बाद कामिनी ने भी एक इंटरव्यू में स्वीकार किया कि उनका दिलीप कुमार से स्नेह था। लेकिन सब कुछ मिल तो नहीं जाता। यह जीवन ऐसा ही होता है।
१९६३ में एक फिल्म आयी थी गुमराह। यह इसी त्रासद प्रेम कथा पर आधारित थी। डायरेक्टर बीआर चोपड़ा चाहते थे कि दिलीप कुमार इसमें काम करें। लेकिन दिलीप ने मना कर दिया। दफ़न इतिहास को उखाड़ना नहीं चाहते थे।

प्यार ऐसा अहसास है, जिसे कोई भूल नहीं सकता। इंसान गाहे-बगाहे धूल की परतें झाड़ता ही रहता है। १९९८ में दिलीप कुमार को दिल की बीमारी हुई। डॉक्टरों ने उन्हें बाई-पास सर्जरी की सलाह दी। दिलीप कुमार बिस्तर पर आराम फ़रमा रहे कि एक फ़ोन आया। कामिनी ने उनसे मिलने की इच्छा प्रकट की। उनकी पत्नी सायरा बानो उन्हें सहर्ष लिवा लायीं।
कामिनी बहुत अच्छी लेखिका भी थीं। उन्होंने बच्चों की अनेक कहानियां लिखी थीं। उनमें से कई पर फ़िल्में भी बनी थीं। उन्होंने दिलीप कुमार को कुछ फिल्मों के कैसेट दिए। इन फिल्मों को देख कर आपका दिल बहलेगा और आपरेशन पूर्व की टेंशन भी दूर होगी।
प्रसिद्ध फ़िल्मी प्रेम तरानों में इस प्रेमकथा को शालीनता के लिए याद किया जाता है। दिलीप कुमार ९४ साल पूरे कर चुके हैं और अगली २४ फरवरी को कामिनी ९० साल की हो जाएंगी। कामना है कि दोनों शतायु हों।
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Published in Navodaya Times dated 18 Feb 2017
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