-वीर विनोद छाबड़ा
एक राजा हुआ करता था। बड़ा दयालू। जो कोई उसके द्वारे आया, कभी खाली हाथ नहीं
लौटा।
एक दिन राजा ने एक बहुत गरीब आदमी को कद्दू दान में देते हुए निर्देश दिया - घर
जाकर कद्दू काट कर खाना ज़रूर। देखना,
तुम्हारे सब दुःख दूर हो जाएंगे।
लेकिन उस भिखारी को संतुष्टि नहीं मिली। वो बहुत रोया। राजा को भरपूर गलियां दी
- भला कद्दू से भी किसी का भला हुआ। कितने दिन चलेगा कद्दू? मुश्किल से चार या
पांच दिन। मैंने तो हीरे और जवाहरात की ख्वाहिश की थी। लेकिन मिला क्या, कद्दू! इस राजा के
महल को आग लगे।
तभी उसके दिल में एक ख्याल आया कि इस कद्दू को बेच दूं तो कम से कम पांच रूपये
मिल सकते हैं। यह इरादा बना कर वो बाजार गया।
कद्दुओं की कदर करने वाले एक अमीर दुकानदार ने देखा कि इस कद्दू की डिज़ाइन दूसरे
कद्दूओं से भिन्न है। ज़रूर कोई खास बात है इसमें। उसने उस भिखारी से पूछा - ए नाशुक्रे
से दिखने वाले ईश्वर के बनाये आदमी। तू रोते हुए कद्दू क्यों बेच रहा है?
भिखारी ने बताया - मैं बहुत गरीब हूं। राजा के पास गया था अपनी गरीबी दूर करने
के लिए कुछ मदद मांगने। मगर राजा का इंसाफ तो देखो। कद्दू पकड़ा दिया। अब इसे बेचना
चाहता हूं, ताकि इसे मिले पैसों से कुछ ज़रूरी चीज़ें खरीद सकूं।
दुकानदार ने कहा - राजा को ऐसा नहीं करना चाहिए था। ऐसा करो कि तुम यह कद्दू मुझे
दे दो। मैं तुम्हें इसके तुम्हें बदले बीस रूपए दूंगा।
उस ज़माने में बीस रूपये आज के बीस हज़ार के बराबर हुआ करती थी। भिखारी झट से तैयार
हो। उसने सोचा यह दुकानदार ज़रूर कोई मूर्ख आदमी है। उसने यह भी नहीं पूछा कि इसमें
क्या खासियत है। और बीस रूपये दे रहा है।
बहरहाल, भिखारी बीस रूपये लेकर अपनी राह और दुकानदार कद्दू लेकर अपनी राह।
घर पहुंच दुकानदार ने जल्दी से कद्दू काटा। उसका शक़ सही निकला। कद्दू में ढेर हीरे-जवाहरात
और सोने के सिक्के भरे हुए थे। वो इन्हें पाकर झूम उठा।
कई दिन गुज़र गए। एक दिन वो भिखारी फिर राजा के दरबार में पहुंच गया और मदद की गुहार
लगाने लगा।
राजा उसे देखकर भौंचक्का रहा गया- अरे तुम! मैंने तुम्हें वो कद्दू दिया था? क्या किया उसका?
भिखारी ने सारी राम कहानी सुना दी।
राजा ने माथा पीट लिया - तू भिखारी का भिखारी ही रहा। तेरी किस्मत में ज्यादा की
चाह है, संतोष की नहीं। किसी ने ठीक ही कहा है कि वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी
को जब कुछ मिलता है तो उसका हश्र तुझ भिखारी जैसा ही होता है।
नोट - उक्त कथा एक प्राचीन लोक-कथा पर आधारित है।
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