Friday, February 3, 2017

एक क्लिक में मिलूंगा, बशर्ते नाम याद रहे

-वीर विनोद छाबड़ा
हमने जब होश संभाला तो बड़ा हैरां हुआ और परेशां भी। यह कैसा नाम है? क्या सोच कर नाम रखा था माता-पिता ने? मां ने बताया था सारे रिश्तेदार भी  हक़ में नहीं थे। यह भी भला नाम है? अरे वीर रखते या विनोद। दोनों को मिला क्यों दिया?
एक किवदंती और भी सुनी। पैदा हुआ था गोल-मटोल। गोरा चिट्टा। रुई जैसा मुलायम। नीली-नीली आंखें। बिलकुल अंग्रेज़ पुत्तर। लेकिन टाईम टेबुल गड़बड़ था। दिन में सोना और रात में जगना।
बड़ी बहन कहती - उल्लू कहीं का!
मां डांटती - अरे चुप। कोई सुन ले तो क्या कहेगा? इससे अच्छा तो बिल्लू कह दे।
बिल्लू के पीछे छुपा उल्लू। चलो यह तो हो गया घर का नाम।
अभी महीना भर नहीं गुज़रा था कि फ़िक्र होने लगी। बेटा बड़ा हो के स्कूल जायेगा। मगर नाम तो सोचा ही नहीं।
बनारस में थे उन दिनों। पंडित जी ने- जन्मपत्री बनाई। '' से रखा भैरो प्रसाद।
लेकिन पत्री से निकले वाले शब्द से नाम नहीं रखा जाता। यह हमारे ख़ानदान में रिवाज़ है।
मां को पसंद आया - वीर। पंजाब में बहनें भाई को वीर कहती हैं।
इधर दादा जी की चिट्टी आई। विनोद नया और अच्छा नाम है। आजकल खूब चल रहा है।
पिताजी ने मिला दिया। वीर विनोद। 
थोड़े दिन बाद मामा आये - यह क्या नाम हुआ? बोलने वाले को अटपटा लगे और सुनने वाले को भी। मोहन। मन मोहना। अहा! क्या सुंदर नाम है!
चलो मामा की पसंद भी शामिल हो गयी- वीर विनोद मोहन छाबड़ा।
इतना लंबा नाम। अबे ट्रेन छूट जायेगी...घर भर का नाम नहीं पूछा, सिर्फ़ तेरा नाम पूछा है.एक दिन मास्साब ने झापड़ मार किया। नाम के वीर हैं। आता-जाता कुछ नहीं।
हमने कहा हमारा पूरा नाम वीर विनोद मोहन छाबड़ा है सिर्फ़ वीर नहीं। उन्हें न हमारी वीरता भायी और न विनोदप्रियता। एक झापड़ और रसीद दिया - ठिठौली करता है।
हाईस्कूल का फॉर्म भर रहा था। मास्साब ने ताक़ीद की कोई ग़लती नहीं होनी चाहिये।
लेकिन गलती हो ही गयी। मोहन छूट गया। सिर्फ़ वीर विनोद छाबड़ा रह गया। मास्साब ने फिर एक झापड़ रसीद दिया - इत्ता समझाया। भेजे में न घुसा। अब ज़िंदगी भर यही नाम रहेगा।
घर में ख़बर हुई। बहुत डांट पड़ी। स्वर्गीय मामा की पसंद थी मोहन। हमें भी बहुत दुःख हुआ। 
एक बार इंटरव्यू देने गया। पैनल के एक सदस्य ने कहा - अच्छा तो वीर बहादुर नाम है। अरे यही नाम मेरे चौकीदार का भी है।

दिल में आया रसीद दूं। हमने थोड़ा सख्ती से कहा - वीर बहादुर हमारे यूपी के मुख्यमंत्री का नाम है। और मेरा नाम वीर विनोद है।
नतीजा यह हुआ कि हमारा चयन नहीं हुआ।
दुनिया में हर नाम के दर्जनों व्यक्ति हैं। राम लोटन, राम प्रसाद,  हरिहर आदि। और तो और लखनऊ से ही विनोद नाम के सौ से ज्यादा नाम तो हमने १९९९ की टेलीफोन डायरेक्टरी में देखे थे। मगर वीर विनोद के नाम एको नहीं दिखा। 
कोई दो साल पहले फेस बुक पर आया तो पता चला कि इस दुनिया में मैं अकेला नहीं हूं। एक और भी हैं - वीर विनोद रहेजा। बड़ी इच्छा है यह जानने की कि भई आप की क्या मजबूरी थी वीर विनोद होने की?
मैसेज बॉक्स में पूछा है दोस्ती करोगे? जवाब नहीं आया है।
बहरहाल, भले नाम के अनुसार बहादुर न सही लेकिन हंस तो लेता हूं। हास्य का सौंदर्यबोध तो है। इसका हमें गर्व है। हम सबसे कहते हैं - आइये फेस बुक पर। मेरा नाम वीर विनोद छाबड़ा है। विचित्र नाम है न? हमें सर्च करने में कोई परेशानी नहीं होगी। एक क्लिक में मिलूंगा। बशर्ते आपको मेरा नाम याद रह जाये।
नोट - मेरे नाम का कोई और बंदा मिले तो कृपया पता दें।
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