Wednesday, February 8, 2017

मीना के बदले हेमा को मिल गया फ़िल्मफ़ेयर

- वीर विनोद छाबड़ा
दो राय नहीं हो सकती कि मीना कुमारी हिंदी सिनेमा की बहुत बड़ी स्टार थीं। ट्रेजेडी क्वीन कहलातीं थीं वो। कल तक वो तो हर एक्ट्रेस के लिए आइकॉन भी हुआ करती थीं। सिर्फ परदे पर ही उन्होंने दुःख नहीं सहे, उनकी निजी ज़िंदगी में भी बहुत उथल-उथल रही। वस्तुतः वो चैन से मर भी न सकीं। जब जब उन्होंने ख़ुशी चाही, कांटों का हार मिला। उन्होंने जब जब औलाद चाही, उन्हें एबॉर्शन के लिए फोर्स किया गया। सुना तो यह भी गया कि एक बार ज़बरदस्ती गर्भ गिराया गया।
दुखी होकर मीनाजी ने पति कमाल अमरोही का घर छोड़ दिया। हास्य अभिनेता महमूद उनकी बहन के पति थे। कुछ दिन वो उनके घर रहीं। फिर उनका घर भी छोड़ दिया। वो गहरे अवसाद में डूब गयीं। तन्हा तन्हा ज़िंदगी में  बोतल उनकी साथी बन गई। नतीजतन उन्हें लीवर कैंसर हो गया। वो तिल तिल कर मरीं। वो चाहती थीं कि ज़िंदा रहूं, लेकिन बोतल उनका साथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। और तब तक मौत भी उनके इतने करीब आ चुकी थी कि उसका लौटना नामुमकिन था। आखिरकार ३१ मार्च १९७२ को उन्होंने नश्वर शरीर त्याग दिया।

मीना जी को मरने से पहले यह तसल्ली रही कि 'पाकीज़ा' पूरी कर ली थी। उन्होंने पति कमाल अमरोही को दिया वचन निभाया दिया था कि अलग होने के बावज़ूद 'पाकीज़ा' ज़रूर पूरी करूंगी। पैसा भी दूंगी। बारह साल लग गए थे, फिल्म पूरी होने में। मीना कुमारी ने सिर्फ पूरी दौलत लुटाई बल्कि ज़िंदगी का बेहतरीन परफॉरमेंस भी दिया। ०४ फरवरी १९७२ को फिल्म रिलीज़ हुई। मीना जी किसी तरह चल कर प्रीमियर पर भी गयीं। फिल्म को शुरू के कुछ दिनों में अच्छा रिस्पांस नहीं मिला। यह खबर शायद मीना जी तक भी पहुंची थी। वो ज्यादा उदास हो गयीं।
लेकिन मीना जी की मौत ने फ़िल्म को आसमान पर उठा दिया। अचानक जनसाधारण के दिल में मीना जी के लिए प्यार उमड़ पड़ा। सिनेमा हाल हाऊसफुल चलने लगे। भीड़ की भीड़ मीना जी को अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए हर उस सिनेमा हाल की और बढ़ चली जहां 'पाकीज़ा' चल रही थी। इसका गीत-संगीत भी जन जन की ज़ुबान पर चढ़ गया... इन्हीं लोगों ने लीना दुपट्टा मोरा...चलो दिलदार चलो...मुझे कोई मिल गया था... मौसम है आशिकाना...ठाड़े रहियो ओ बांके यार...
लेकिन मीना जी की ट्रेजडी श्रृंखला मरने के बाद भी जारी रही। अस्पताल के बिल पेमेंट उत्पन्न संकट कुछ हमदर्द सामने आये तो हल हुआ। रही सही कसर पूरी कर दी फ़िल्मफ़ेयर ने। उन्होंने मीना जी के साथ न्याय नहीं किया। मीना जी की बेहतरीन अदाकारी के मद्देनज़र सबको उम्मीद थी कि बेस्ट एक्ट्रेस का प्रतिष्ठापूर्ण फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मीना जी से कोई नहीं छीन सकता। लेकिन तमाम उम्मीदों पर पानी फेरते हुए फ़िल्मफ़ेयर ने बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड 'सीता और गीता' के लिए हेमा मालिनी पर न्यौछावर कर दिया। बहुत छीछालेदर हुई फ़िल्मफ़ेयर की अवार्ड कमेटी और संपादक बीके करंजिया की। उनकी दलील यह थी कि दिवंगत को ईनाम देने की प्रथा नहीं है। लेकिन उनकी इस दलील थोथी साबित हुई जब इंगित किया गया कि केआर रेड्डी को दिवंगत होनेके बावज़ूद तेलगु फिल्म के बेस्ट डायरेक्टर अवार्ड के लिए चुना गया था। इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि बेस्ट परफॉरमेंस वाले के हाथ में जीना-मरना नहीं होता है। और इसके अलावा यह एक प्रकार से दिवंगत का अपमान है कि उसकी बेस्ट परफॉरमेंस को इसलिए उपेक्षित किया जाए कि वो अब इस दुनिया में नहीं है।
ज्ञातव्य है कि 'पाकीज़ा' के संगीत की बेमिसाल कामयाबी के बावज़ूद बेस्ट म्युज़िक अवार्ड गुलाम मोहम्मद की बजाये 'बेईमान' के लिए शंकर-जयकिशन को मिल गया। इसकी भी बहुत आलोचना हुई। सुप्रसिद्ध चरित्र अभिनेता प्राण तो इतने दुखी हुए कि उन्होंने करंजिया को चिट्ठी लिख कर विरोध जताया, गुलाम मोहम्मद के लिए पुरज़ोर सिफारिश तक की। वो यहीं तक नहीं रुके। उन्होंने 'बेईमान' के लिए दिया गया बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड लेने तक से इंकार कर दिया। काश, ऐसा ही उदाहरण हेमा मालिनी ने भी प्रस्तुत किया होता।
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Published in Navodaya Times dated 08 Feb 2017
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