- वीर विनोद छाबड़ा
परदे के सामने की कहानी
जितनी मज़ेदार होती है, परदे के पीछे कहीं ज्यादा लुत्फ़ मिलता है। ऐसा ही किस्सा है
नासिर हुसैन और देवानंद और फिर शम्मी कपूर और नासिर हुसैन की दोस्ती का। यह बात पचास
के दशक की है। तब फिल्मिस्तान कंपनी के लिए नासिर हुसैन फ़िल्में लिखा करते थे। शम्मी
कपूर और देवानंद एक्टर थे। नासिर और देवानंद के बीच नज़दीकियां ज्यादा थीं। इसका लाभ
यह हुआ कि नासिर ने 'मुनीम जी' और फिर 'पेइंग गेस्ट'
में देव के किरदार को बड़े दिल से लिखा। 'पेइंग गेस्ट'
में तो नासिर हुसैन सहायक निर्देशक भी थे। एक के बाद एक दोनों ही फ़िल्में बड़ी हिट
साबित हुईं। दोस्ती का रंग चोखा हो गया।
फिल्मिस्तान की अगली
फिल्म थी - तुमसा नहीं देखा। ख़ासियत यह थी कि इस फिल्म से नासिर हुसैन पहली बार निर्देशन
के क्षेत्र में कदम रखने जा रहे थे। फिल्म पहली हो और साथ में दोस्त हीरो, तो सोने पे सुहागा।
लेकिन बदी में लिखे को कोई नहीं टाल सका है। दो हिट फ़िल्में देने के परिप्रेक्ष्य में
देवानंद ज्यादा भाव मांग रहे थे। लेकिन प्रबंधक तैयार नहीं थे। इससे बेहतर किसी सस्ते
हीरो को लिया जाए। किसी ने शम्मी कपूर का नाम सुझाया।
Nasir Hussain |
उन दिनों शम्मी लगातार
१७ फ्लॉप फ़िल्में करके रिकॉर्ड बना चुके थे
और उन्हें बड़ी शिद्दत से एक हिट फिल्म की तलाश थी। पहले भी फिल्मिस्तान के लिए शम्मी
'हम सब चोर हैं' कर चुके थे। लेकिन नासिर को शम्मी पसंद नहीं आये। लेकिन उनकी
भी अपनी मजबूरी थी। पहली फिल्म मिली थी। अपनी शर्तें लगाने का तो कोई सवाल ही नहीं
था। मगर जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ी, नासिर और शम्मी की दोस्ती ने रंग दिखाने शुरू
किये। दो महीने में 'तुमसा नहीं देखा' बन गयी और ज़बरदस्त
हिट भी हुई। शम्मी के लिये तो बहुत बड़ी बात थी। कैरियर की पहली बड़ी हिट।
नासिर-शम्मी की अगली
फिल्म थी - दिल देके देखो। इस बीच फिल्मिस्तान से शशधर मुख़र्जी ने अलग होकर फिल्मालय
कंपनी शुरू कर दी और 'दिल देके देखो' ही उनकी पहली फिल्म
होने जा रही थी। नासिर और शम्मी पर प्रेशर था यह साबित करने का कि 'तुमसा नहीं देखा'
की सफलता कोई तुक्का नहीं थी। दोनों ने बहुत मेहनत की। और 'दिल देके देखो'
भी हिट हो गयी। दोस्ती और भी प्रगाढ़ हो गयी।
नासिर का उत्साह इतना
बढ़ा कि खुद ही निर्माता बनने की ठान ली। एक दिन नासिर ने शम्मी कपूर से पूछा - 'जब प्यार किसी से होता
है' बना रहा हूं। आशा पारेख ने हां कर दी है और प्राण ने भी। तुम्हारा इरादा क्या है?
शम्मी को बहुत गुस्सा
आया की दोस्त होकर नासिर ऐसी बात पूछ रहा है। गरमा-गर्मी हो गयी।
बात कुट्टी तक पहुंच गयी। नतीजा यह हुआ कि अगले दिन जब प्यार...में देवानंद आ गए,
नासिर के पुराने दोस्त। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़ दिए। इसके मुक़ाबले
शम्मी की 'जंगली' ज्यादा बड़ी हिट हुई।
कई बरस बीत गए। नासिर
हुसैन ने एक साथ दो फिल्मों का ऐलान किया। नए हीरो राजेश खन्ना के लिये 'बहारों के सपने'
और देवानंद के साथ तीसरी मंज़िल। उनका इरादा था कि बहारों के सपने देव के छोटे भाई
विजयानंद निर्देशित करेंगे और तीसरी मंज़िल को वो खुद। विजयानंद इस निर्णय से खुश नहीं
थे। वो तीसरी मंज़िल चाहते थे।
एक बड़े स्टार की मंगनी
की पार्टी चल रही थी। वहां देवसाब ने नासिर के ज़िक्र छेड़ा कि तीसरी मंज़िल विजयानंद
निर्देशित करें। लेकिन नासिर नहीं माने। कुछ ज्यादा चढ़ भी गयी और ऊपर से फुटबाल साईज़
ईगो का नशा। ज़बरदस्त झगड़ा हुआ। देवसाब ने लात मार दी तीसरी मंज़िल को।
कुछ दिन बीत गए। एक
दिन राह चलते शम्मी की नासिर से भेंट हो गयी। दोनों गले मिले। दोस्ती की पुरानी यादें
ताज़ा हुईं। निर्णय लिया कि एक बार फिर दोस्त बनें। नासिर ने शम्मी को तीसरी मंज़िल का
ऑफर दे दिया। लेकिन शम्मी हिचकिचाए। उन्होंने तभी हामी भरी जब देवसाब ने पुष्टि कर
दी कि वो वास्तव में तीसरी मंज़िल से अलग हो गए हैं और उन्हें कोई ऐतराज नहीं है कि
शम्मी इसमें काम कर करें।
मज़े की बात देखिये
कि तीसरी मंज़िल को आख़िरकार विजयानंद ने ही निर्देशित किया, जैसा कि देवसाब चाहते
थे। और दुनिया जानती है कि तीसरी मंज़िल मील का पत्थर बनी।
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Published in Navodaya Times dated 15 Feb 2017
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