Monday, February 13, 2017

बेटा, बहु और नॉमिनी

- वीर विनोद छाबड़ा
हमारे मित्र ने इकलौते बेटे को बड़े लाड़-दुलार से पाला-पोसा। अच्छी शिक्षा दी। उसे अपने दम पर बढ़िया नौकरी मिली। दुनिया की सबसे अच्छी लड़की तलाश कर उसकी शादी की। लाखों का दहेज़ मिला। बहु क्या आई मानों लक्ष्मी आई। एक पुरानी पड़ी ज़मीन का सौदा हो गया। कौड़ियों के भाव खरीदी पूरे दो करोड़ का मुनाफ़ा दे गयी।
लेकिन इधर पिछले कुछ दिनों से मित्र परेशान हैं। बेटा पराया हो गया। वह वो दिन भूल गया जब उसे छींक भी आई तो हम रात-रात भर जागे उसके लिए। उसकी लंबी उम्र के लिए हर साल कितनी बार उसकी मां व्रत रखे। कोई तीर्थ-दरगाह नहीं छोड़ी। उसके गले में और बाहों में तावीज़ बांधे ताकि दुश्मनों की उसे भूल कर भी नज़र न लगे। एक करोड़ का एकमुश्त बीमा कराया उसका। नॉमिनी में उसने मेरा नाम भरा था। लेकिन मेरा नाम हटा कर बहु का नाम लिखवा दिया। यह सब बहु की चाल है। डायन कहीं की। अभी छह महीना भी नहीं हुआ शादी को। यही नहीं ऑफिस के रिकॉर्ड में भी पत्नी को नॉमिनी घोषित कर दिया है। जैसे हम मर गए हैं। 

हमने समझाया - अरे भाई, इसमें हर्ज़ ही क्या? हमारे पिता ने तो हमारी शादी के दूसरे ही दिन हमें बीमा कंपनी भेजा था। नॉमिनी से अपना नाम हटवा कर पत्नी का नाम डलवा लो। जीपीएफ और पेंशन के लिए भी पत्नी को नॉमिनी बनवा दिया। हमें खुला छोड़ दिया। जा जी ले अब अपनी ज़िंदगी जी। तुझ पर तेरी पत्नी का अधिकार पहले। सात फेरे लिए हैं तूने दुनिया के सामने। और जानते हो, हमारी पत्नी ने क्या किया। ससुराल को ही मायका समझा। मैं तो भूल चली बाबुल का देश कि पिया का घर प्यारा लगे। सास-ससुर की अंतिम सांस तक सेवा की। उन्होंने खूब आशीर्वाद दिया। पत्नी ने खुश होकर कहा, असली दौलत तो यही है। मैं तो धन्य हो गयी....
मित्र पर कोई असर नहीं हुआ - तू किताबों की दुनिया में रहता है। इल्मी-फ़िल्मी बातें करता है। आभासी दुनिया में रायता फ़ैलाता है। इसलिए किस्से-कहानियां बना लेता है। मैं दुनियाबी आदमी हूं। धरती का रहने वाला हूं, धरती की बात करता हूं। असली बात यह है कि बेटे को मुझ पर यक़ीन नहीं रहा। उसे लगता है कि अगर उसे कुछ हो गया तो हम उसकी पत्नी का ख्याल नहीं रखेंगे।

हमने मित्र के हृदय में बैठे डर को भगाने की कोशिश की - वो तेरा बेटा है। तुझको उससे अच्छा और कौन जानेगा। वो दुनियादारी को तुझसे बेहतर जानता है। यह तेरे बेटे की ड्यूटी है कि उसकी पत्नी उसके जाने के बाद आत्मनिर्भर रहे। ऐसा करके बहुत अच्छा किया तेरे बेटे ने। उसने अपनी पत्नी के मन में विश्वास पैदा किया है कि उसका पति उससे प्रेम ही नहीं करता बल्कि उसके भविष्य के प्रति भी बहुत फ़िक्रमंद भी है। वो रहे या न रहे, पत्नी की सुरक्षा की गारंटी बनी रहे।
लेकिन मित्र नहीं मानते हैं - अरे तू नहीं जानता। आज दुनिया में पैसा ही सब कुछ है। सबको कंट्रोल में रखता है। नॉमिनी में मैं रहा तो बहु भी कंट्रोल में रहेगी। यह सब उस कल आई छोकरी की लगाई आग है। मायके से लाई पचास लाख इसी तरह तो वसूल करेगी।
हम उन्हें फिर समझाते हैं - तेरे पास ईश्वर का दिया सब कुछ है और फिर कफ़न में जेब नहीं होती है...
मित्र नाराज़ होकर चले गए, बिना चाय पिए और बड़बड़ाते हुए।

हम सोच रहे हैं कि पैसा बुरा है। बाप-बेटे के रिश्तों में भी दरार डाल देता है। और यह साला मित्र तो शुरू से ही पैसे का हवसी रहा है। बाप मरा तो खुद को फटे-हाल घोषित कर दिया। झूठा कहीं का। इसीलिये डरता है कि कल बेटे को कुछ हो जाए तो बीमा के एक करोड़ रुपये से बहु राज करेगी और उसे दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी। इसे तो मित्र कहते हुए भी शर्म आती है। सोचता हूं कि दरवाज़े पर इसके नाम का बोर्ड लगा दूं - प्रवेश निषेध। 
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Published in Prabhat Khabar dated 13 Feb 2017
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1 comment:

  1. बहुत सही कहा। पर यह भी सच है कि बुढापा बहुत सारी असुरक्षा की भावना को जन्म देता है। युवाओं को इसका ख्याल रखना चाहिये।

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