-
वीर विनोद छाबड़ा
बीए तो १९७१ में कर लिया था, लेकिन डिग्री दो साल बाद मिली। फ़ौरन पहुंच गए अपने दोस्त सुरेश विग के स्टूडियो
- मेलाराम एंड संस।
उस ज़माने में गाऊन हर स्टूडियो में मौजूद रहता था। हो गयी फोटो क्लिक। माता-पिता
को बड़े गर्व से कहने का मौका मिला - जी हमारा पुत्तर बीए पास है।
हमने उसके बाद तीन पोस्टग्रेजुएट डिग्रियां हासिल कीं, लेकिन पहली तो पहली
ही होती है।
उन दिनों मुंडा घर पर नहीं होता था तो मां शादी-ब्याह के लिए पधारे लड़की के माता
पिता को यही तस्वीर दिखाती थी।
हमें याद है कि सयानी लड़की की भी कम से कम एक तस्वीर ज़रूर डिग्री के साथ गाऊन में
खिंचवा कर रखी जाती थी और गाहे-बगाहे काउंटर मारा जाता था - हमारी बेटी भी कोई कम है
क्या? ये देखिये, वो भी बीए पास है और वो भी अंग्रेज़ी, इकोनॉमिक्स और पॉलिटिक्स में। आपके लड़के की तरह एशियन कल्चर, हिस्टरी और सुसलाजी
में नहीं।
लड़के वाले चित्त हो जाते थे। ठीक है हमने दस हज़ार में लड़का बेचा। मेहमानों से अंग्रेज़ी
में बात करेगी। मान बढ़ेगा। और फिर शादी के बाद बच्चे होंगे तो उन्हें अंग्रेज़ी तो पढ़ा
ही लेगी। भगवान करेगा कहीं अच्छी नौकरी भी मिल जायेगी।
कुछ भी हो उन दिनों बड़ी इज़्ज़त थी बीए की डिग्री की। सरकारी नौकरी में विरले ही
विभाग थे जहां बीए से कम पर बाबू भर्ती नहीं होता था और वो भी कड़ी परीक्षा लेने के
बाद। उसी में एक हमारा इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड का हेडक्वार्टर भी था।
हां, तो हम चर्चा कर रहे थे तस्वीर की। हमें याद है कि टाई बांधने से हमने इंकार कर
दिया था। दोस्त ने समझाया - अबे, डिग्री की इज़्ज़त तभी होती है जब गाऊन के साथ-साथ टाई भी हो।
हमने इस तस्वीर को फ्रेम में मड़वा कर सालों दीवार पर टांगे रखा। एक दिन एक नए-नए
बने मित्र ने पूछा - आपके इन भाई की शादी हो चुकी है क्या?
फिर कुछ साल बाद एक साहब पूछ बैठे - वाह! बहुत खूब। हैंडसम। कौन है यह?
ऐसे ही कई सवाल अक्सर पूछे जाते। हद हो गई एक दिन जब एक पड़ोसी पूछ बैठे - बड़े भाई
हैं क्या? हमने कभी देखा नहीं इन्हें। दिवंगत हो चुके हैं क्या?
हमने उसे बड़ी बेदर्दी से घर से निकाला। तब एक हमदर्द ने हमें झाड़ा - अबे चूतिये, इतनी पुरानी तस्वीर
को देख कर लोग माला चढ़ाने की बात ही तो करेंगे?
हमने झटपट इसे उतार कर जैसे-तैसे फ्रेम से बाहर निकाला और बक्से में बंद कर लिया।
कंप्यूटर पर आये तो अपनी फाईल में महफूज़ कर लिया।
यदा-कदा देखता हूं। गुज़रे दौर की अनगिनित यादें और दोस्त याद आते हैं। आसमान में
बहुत ऊपर उड़ते हवाई जहाज़ की आवाज़ सुनते ही बाहर भागते थे। अब तो सैकड़ों गुज़र जाते हैं, आवाज़ ही नहीं सुनाई
देती। कुछ साथ हैं, कुछ ऊपर चले गए और कुछ खो गये। सुनहरे दिन, सुनहरी यादें सोने
नहीं देतीं।
---
06-02-2017 mob 7505663626
D-2290 Indira Nagar
Lucknow - 226016
No comments:
Post a Comment